बिहार में फिर एक बार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की ही सरकार बन रही है, लेकिन हार तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की भी नहीं कही जाएगी.
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पटना: बिहार में फिर एक बार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की ही सरकार बन रही है, लेकिन हार तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की भी नहीं कही जाएगी. तेजस्वी यादव सरकार बनाने में नाकाम जरूर रहे, लेकिन जनता ने उन्हें पूरी तरह नकारा नहीं है.
सबसे बड़ी पार्टी रही आरजेडी
बिहार में तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी (RJD) 144 सीटों पर चुनाव लड़ी और 75 सीटों पर जीत मिली. आरजेडी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. और उसे 23 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट हासिल हुए हैं. इस तरह तेजस्वी यादव की पार्टी का स्ट्राइक रेट 52.1 प्रतिशत रहा. आंकड़े बता रहे हैं कि चुनाव में तेजस्वी की लड़ाई यशस्वी रही. इसकी झलक उनकी रैलियों में नजर आई. तेजस्वी यादव ने बिहार में रिकॉर्ड 251 रैलियां की. वो न सिर्फ आरजेडी बल्कि महागठबंधन (Bihar Mahagathbandhan) का भी सबसे बड़ा चेहरा बने. उन्होंने पूरे चुनाव की रणनीति तैयार की.
ट्रेंड सेटर रहे तेजस्वी यादव
2020 के चुनावों में तेजस्वी का अंदाज अलग दिखा. चुनावी मुद्दे हों या चुनावी सभाएं. हर जगह तेजस्वी ने तीखे हमले किए और चुनावों में अपने मुद्दों से हिले नहीं. तेजस्वी ने बिहार में बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाया. युवाओं से वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो एक दस्तखत से 10 लाख नौकरी देंगे.
लालू के बिना लड़ी सबसे मुश्किल लड़ाई
तेजस्वी जानते थे कि जंगलराज और परिवारवार जैसे मुद्दों पर एनडीए हमला करेगा, इसलिए उन्होंने ऐसी चुनावी रणनीति बनाई ताकि ये मुद्दे हावी नहीं हो सकें. लालू के दामन पर लगे भ्रष्टाचार और जंगलराज के दाग को दूर करने के लिए चुनावी पोस्टर्स में लालू और राबड़ी को जगह नहीं दी. इतना ही नहीं तेजस्वी के भाषण देने का अंदाज और लोगों से संवाद का तरीका भी लोगों को पसंद आया.
सामाजिक समीकरण से पढ़ाई, कमाई, मंहगाई तक
इस बार तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक समीकरण को लेकर थी. उन्होंने इसके लिए बहुत मेहनत की. टिकट वितरण से लेकर गठबंधन को आकार देने में बहुत प्रयोग किए. इसे लेकर कई तरह की चर्चा हुई. सभी जातियों को जोड़ने को लिए नया फार्मूला बनाया. तेजस्वी ने जनता से जुड़े मुद्दों को उठाया. पढ़ाई, कमाई और महंगाई की बात की. बेशक वो सरकार बनाने में नाकाम रहे. लेकिन महागठबंधन के 110 विधाय़कों के साथ अगले 5 साल तक वो बीजेपी-जेडीयू के लिए एक मजबूत विपक्ष बनकर खड़े दिखेंगे. इस बार विधानसभा में उनकी ताकत को कम आंकना मुश्किल होगा.