बुर्के पर बवाल: दुनिया के वे देश जहां इसके इस्‍तेमाल पर लगी है पाबंदी
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बुर्के पर बवाल: दुनिया के वे देश जहां इसके इस्‍तेमाल पर लगी है पाबंदी

बुर्के के संबंध में श्रीलंका की घोषणा और शिवसेना की मांग के साथ ही इस मुद्दे पर सत्‍ता पक्ष और विपक्ष के बीच सियासी बयानबाजी शुरू हो गई है. इस परिप्रेक्ष्‍य में आइए नजर डालते हैं कि किन देशों में बुर्का पहनने पर पाबंदी लगी हुई है?

बुर्के पर बवाल: दुनिया के वे देश जहां इसके इस्‍तेमाल पर लगी है पाबंदी

नई दिल्‍ली: शिवसेना ने पीएम मोदी से कहा है कि जिस तरह उन्‍होंने सर्जिकल स्‍ट्राइक किया, उसी तरह भारत में मुस्लिम महिलाओं में बुर्के के चलन पर पाबंदी लगाने का साहस दिखाएं. दक्षिणपंथी समूह हिन्दू सेना ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर मांग की है कि आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए श्रीलंका की तर्ज पर सार्वजनिक स्थानों और सरकारी तथा निजी संस्थानों में बुर्का, नकाब आदि पर पूर्ण रोक लगाई जाए.  

श्रीलंका में सार्वजनिक स्थानों पर मुस्लिम महिलाएं अब नकाब नहीं पहन पाएंगी क्योंकि देश में ईस्टर के दिन हुए बम धमाकों के मद्देनजर राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना द्वारा घोषित नए नियम सोमवार से प्रभावी हो गए. राष्ट्रपति ने रविवार को नए नियम की घोषणा की थी जिसके तहत चेहरे को ढंकने वाली किसी भी तरह की पोशाक पहनने पर रोक लगा दी गई है. इससे एक हफ्ते पहले श्रीलंका के तीन गिरजाघरों और तीन आलीशान होटलों में हुए सिलसिलेवार धमाकों में 250 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 500 से अधिक लोग घायल हुए थे.

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बुर्के के संबंध में श्रीलंका की घोषणा और शिवसेना की मांग के साथ ही इस मुद्दे पर सत्‍ता पक्ष और विपक्ष के बीच सियासी बयानबाजी शुरू हो गई है. इस परिप्रेक्ष्‍य में आइए नजर डालते हैं कि किन देशों में बुर्का पहनने पर पाबंदी लगी हुई है?

जहां लगी है पाबंदी
ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, फ्रांस, बेल्जियम, तजाकिस्‍तान, लातविया, बुल्‍गारिया, कैमरून, चाड, कांगो-ब्राजाविले, गेबोन, नीदरलैंड्स, चीन, मोरक्‍को, कनाडा का क्‍यूबेक प्रांत और श्रीलंका में बुर्का के इस्‍तेमाल पर पाबंदी अख्तियार की गई है.

बुर्का
बुर्का को 'चादरी' भी कहा जाता है. मध्‍य एशिया में इसको 'परांजा' भी कहा जाता है. यह एक इस्‍लामिक परंपरा है जिसके मुताबिक महिलाएं सार्वजनिक रूप से अपने शरीर और चेहरे को कवर करती हैं. कई विद्वानों का मानना है कि इस्‍लाम के उदय के पहले से ही अरब महिलाओं और पख्‍तूनों में ये परंपरा पाई जाती रही है.

ऐसा माना जाता है कि बाइजेंटिन साम्राज्‍य के कुछ खास तबकों में इस प्रथा का सबसे पहले चलन था. उसके बाद अरबों ने जब मध्‍य एशिया को जीता तो ये प्रथा मुस्लिम संस्‍कृति का हिस्‍सा बनी. अनेक इस्‍लामिक विद्वानों का मानना है कि चेहरे को ढकना कोई धार्मिक जरूरत नहीं है लेकिन सलाफी आंदोलन से जुड़े कई विद्वानों का मानना है कि अपरिचित मर्दों की उपस्थिति में महिलाओं को इसे धारण करना चाहिए.

बुर्के से ही मिलता-जुलता शब्‍द 'हिजाब' है लेकिन इन दोनों के अर्थ थोड़ा भिन्‍न हैं. हिजाब के तहत बाल और गले को तो ढका जाता है लेकिन चेहरे को नहीं ढका जाता.

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