Arvind Kejriwal News: दिल्ली एक्साइज पॉलिसी घोटाला (Delhi Excise Policy Scam) मामले में तिहाड़ जेल में बंद अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर रिहाई हो गई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश पर उन्हें लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) में प्रचार करने की इजाजत भी मिल गई. हालांकि प्रवर्तन निदेशालय (ED) के वकीलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था. फैसले के बीच कुछ लोगों ने कहा कि हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने तो CM पद छोड़ दिया था. उन्होंने भी चुनाव के लिए जमानत मांगी, लेकिन उनकी याचिका सर्वोच्च अदालत से खारिज हो गई. वहीं अरविंद केजरीवाल को जमानत मिलने के बाद अलगाववादी अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) की खूब चर्चा हो रही है, क्यों हो रहा है ऐसा? आइए जानते हैं. 


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Amritpal Singh Nomination: पंजाब से लोकसभा चुनाव लड़ रहा अमृतपाल सिंह


'वारिस दे पंजाब' चीफ अमृतपाल सिंह ने पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से पर्चा दाखिल किया है. वो निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है. आरोपी अभी NSA के तहत डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में बंद है. उसके वकील आरएस बैंस के मुताबिक उनके मुअक्किल ने लोकसभा चुनाव की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए एक सप्ताह की पैरोल या जेल के भीतर से औपचारिकताएं पूरी करने की अनुमति देने की याचिका लगाई थी. 


अमृतपाल ने नामांकन दाखिल करने के लिए 7 दिनों के लिए अस्थायी रिहाई की मांग करते हुए 9 मई को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया था. 'इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जैसे ही केस जस्टिस विनोद एस भारद्वाज की बेंच के सामने सुनवाई के लिए आया, पंजाब के डिप्टी एडवोकेट जनरल अर्जुन श्योराण ने हाईकोर्ट को बताया कि डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल अधीक्षक से प्राप्त टेलीफोनिक निर्देशों के आधार पर, नामांकन फॉर्म और अन्य कागजी कार्रवाई के दो सेट 9 मई, 2024 को बंदी की ओर से भरे गए और उस पर हस्ताक्षर भी किए गए.


ऐसे में केजरीवाल को जमानत मिलने के बाद सवाल उठने लगे कि क्या जेल में बंद खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह भी चुनाव के आधार पर अपना प्रचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से जमानत मांग सकता है.


शुक्रवार को SC में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल (SH) तुषार मेहता ने अमृतपाल सिंह द्वारा जमानत के लिए हाई कोर्ट जाने पर चिंता जताने के साथ-साथ केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने पर आपत्ति जताई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये दो अलग-अलग मामले हैं. लाइव लॉ और बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने एसजी से कहा कि ऐसे मामलों में कोई 'सरल और स्ट्रेटजिक' फॉर्मूला नहीं है. 


सवाल अब भी वही है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया तो तकनीकि रूप से बात खत्म हो जानी चाहिए, हालांकि ऐसा नहीं हुआ. 


केजरीवाल के मामले की तुलना अमृतपाल सिंह से क्यों नहीं की जा सकती?


कानूनी जानकारों के मुताबिक इस सवाल का जवाब आसान है और दोनों के खिलाफ आरोपों की प्रकृति में छिपा है. दरअसल खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह चरमपंथी और अलगाववादी शख्स है. उस पर बेहद सख्त कानून (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, NSA) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है. यह अधिनियम तभी लागू हो सकता है जब कोई शख्स देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करता हो. 


सरकार ने पिछले महीने अलगाववादी अमृतपाल सिंह और उनके नौ सहयोगियों के खिलाफ NSA बढ़ा दिया था. अमृतपाल सिंह को पिछले साल 2023 में गिरफ्तार किया गया था. जब उसके सैकड़ों समर्थकों ने जेल में बंद एक साथी की रिहाई की मांग को लेकर पंजाब के अजनाला थाने पर तलवारों और बंदूकों के साथ धावा बोल दिया था.


NSA के अलावा, अमृतपाल सिंह के खिलाफ 10 से अधिक मामले पेंडिंग हैं. HT की रिपोर्ट के मुताबिक, अमृतपाल पर पहले आपराधिक धमकी, अपहरण, धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने. लापरवाही से गाड़ी चलाने, जबरन वसूली और गैरकानूनी सभाएं आयोजित करने समेत दर्जनों आरोपों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. 


अब बात केजरीवाल के मामले की तो मुख्यमंत्री केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के संबंध में गिरफ्तार किया गया था. सुप्रीम कोर्ट (SC) ने केजरीवाल को 'समाज के लिए खतरे' के रूप में नहीं देखा. क्योंकि उनका कोई क्रिमिनल हिस्ट्री नहीं थी. उन्हें किसी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया और वो एक नेशनल पार्टी का नेता होने के साथ मुख्यमंत्री भी हैं.


इस मामले में एपेक्स कोर्ट ने ये भी कहा कि लोकसभा चुनाव इस साल की सबसे महत्वपूर्ण घटना है. केजरीवाल और संजय सिंह के अलावा, 'मनीष सिसोदिया ने लोकसभा चुनाव प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत की मांग करते हुए पहले दिल्ली की एक अदालत का रुख किया था. तब दिल्ली की अदालत ने सिसौदिया की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जवाब मांगा था.


कानूनी जानकार क्या कहते हैं?


कई लोगों का कहना है कि केजरीवाल और सिंह के मामलों की तुलना नहीं की जा सकती है. 'लाइव मिंट' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के वकील निपुण सक्सेना का कहना है कि अरविंद केजरीवाल और अमृतपाल सिंह के खिलाफ मामले अलग-अलग कारकों से जुड़े हैं. दोनों मामलों की तुलना नहीं कर सकते क्योंकि अमृतपाल पर लगे आरोप बेहद गंभीर प्रकति के हैं, उस पर NSA लगा है. उसके 33 समर्थकों के खिलाफ 307 के तहत 10 से अधिक मामले लंबित हैं. IPC की धारा 149 के तहत भी केजरीवाल का मामला अलग स्तर पर है क्योंकि इससे पहले उनकी कोई क्रिमिनल हिस्ट्री नहीं रही है.


उन्होंने ये भी कहा, 'केजरीवाल और सिसोदिया दोनों ही मनी-लॉन्ड्रिंग के मामलों का सामना कर रहे हैं, लेकिन सबूतों और आरोपों की प्रकृति (जैसे जो आरोप ED ने लगाए हैं) दोनों व्यक्तियों के खिलाफ बहुत अलग है. ऐसे में सबूतों की प्रकृति पर गौर करने के बाद ही अदालत अपना फैसला लेगी.'


जमानत देने की टाइमिंग भी देखिए


वकीलों के मुताबिक केजरीवाल के मामले में जमानत का आधार चुनावों की टाइमिंग भी रहा क्योंकि चुनाव हर 5 साल में आते हैं. SC ने बेल देते हुए ये भी कहा, 'लोकसभा के चुनाव इस साल सबसे महत्वपूर्ण और महत्वपूर्ण घटना हैं. अंतरिम जमानत/रिहाई देने के सवाल की जांच करते समय, देश की अदालतें हमेशा संबंधित व्यक्ति से जुड़ी विशिष्टताओं और आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखती हैं. क्योंकि वास्तव में, उन्हें नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण और गलत होगा.'


दरअसल दिल्ली में लोकसभा चुनाव के बस 15 दिन बचे थे, तभी उन्हें जमानत दी गई. इसे लेकर ये भी कहा जा रहा है कि चुनाव पांच साल में होते हैं, ये कोई फसल नहीं है, जिसे आप हर साल काट सकते हैं.


क्या अमृतपाल या जेल में बंद अन्य नेताओं की अंतरिम जमानत की सुनवाई को प्राथमिकता दी जा सकती है?


कुछ अन्य वकीलों का कहना है कि केजरीवाल का मामला जेल में बंद अन्य राजनीतिक नेताओं के लिए मिसाल बन सकता है जो चुनाव के लिए अंतरिम जमानत की मांग करेंगे. हालांकि, किसी को भी जमानत केस-दर-केस में अलग-अलग आधार पर दी जाती है. 


अगर अमृतपाल सिंह चुनाव लड़ने के लिए अंतरिम जमानत मांगी है, तो जरूरी नहीं है कि ऐसा हो ही जाए. यदि जेल में बंद कोई नेता चुनाव के लिए जमानत चाहता है, तो कोर्ट कोई भी राहत देने से पहले उसके खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड, सबूत और आरोपों पर गौर कर सकती है.


केजरीवाल के जमानत के फैसले ने कैसी मिसाल कायम की'?


इस विषय पर न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई ने कहा कि इस फैसले से खतरनाक मिसाल कायम हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा, 'अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे के तर्क से सम्मानपूर्वक असहमत हैं. क्योंकि कानून की नजर में, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई CM या VVIP है. आप, सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष पेश किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह होते हैं. चूंकि केजरीवाल को 9 समन दिए गए थे, और वो उनसे बचते रहे थे. इसलिए आखिर में नौबत यहां तक पहुंच गई.'