chandrayaan-2 mission: आज विक्रम लैंडर से संपर्क का अंतिम दिन है. अगर आज इसरो के वैज्ञानिक इसमें सफल नहीं हो पाए तो शायद उससे कभी संपर्क ना हो पाए.
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नई दिल्ली: चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद पर भेजे गए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों का संपर्क अभी तक नहीं हो पाया है. 22 जुलाई को लॉन्च किए गए चंद्रयान-2 मिशन के तहत 7 सितंबर को विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर लैंड कराया जाना था. लेकिन चांद की सतह से कुछ ऊपर ही उससे संपर्क टूट गया था.
अब आज विक्रम लैंडर से संपर्क का अंतिम दिन है. अगर आज इसरो के वैज्ञानिक इसमें सफल नहीं हो पाए तो शायद उससे कभी संपर्क ना हो पाए. इसके पीछे का कारण है कि इसकी मिशन लाइफ महज 14 दिन की थी, जो कि आज खत्म हो रही है.
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7 सितंबर की सुबह हार्ड लैंडिंग के साथ चंद्रमा की सतह पर पहुंचे लैंडर से संपर्क दोबारा साधने की कोशिशों को अब तक कोई कामयाबी नहीं हाथ लगी है. चंद्रमा के एक दिन की अवधि धरती के 14 दिन के बराबर होती है. खगोलशास्त्री के अनुसार सूर्य की रोशनी समाप्ति की ओर है. आज दोपहर बाद पूरी तरह अंधकार में डूब जायेगा चंद्रमा का दक्षिण ध्रुव.
इसरो ने विक्रम लैंडर की कार्य करने की निर्धारित अवधि पहले 14 दिन तय की थी. अब सारा फोकस ऑर्बिटर पर है. अपने सभी निर्धारित लक्ष्यों को इसरो ऑर्बिटर द्वारा हासिल करेगा. ऑर्बिटर सौ प्रतिशत सही है. ऑर्बिटर में लगे सभी 8 पेलोड पूरी तरह से एक्टिव हैं. वे योजना के अनुसार लगातार काम कर रहे हैं.
विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग के बाद इसरो ने ये उम्मीद जताई थी कि विक्रम से एक बार फिर से संपर्क साधने के लिए उनके पास 14 दिनों की अवधि है. इन 14 दिनों में इसरो ने थर्मल ऑप्टिकल तस्वीरों के सहारे विक्रम की स्थिति की जानकारों हासिल की. ये पता चला कि लैंडिंग हार्ड हुई है पर इसकी वजह से इसके ढांचे को कोई नुकसान नहीं हुआ है.
वैज्ञानिकों ने अपनी उम्मीदों को कायम रखा और लगातार इसरो अपने डीप स्पेस सेन्टर से सिग्नल भेजता रहा. भेजे जाने वाले सिग्नल को ऑर्बिटर ने हर बार रेस्पांड किया पर विक्रम तक सिग्नल पहुंचे जरूर पर उधर से किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. इस क्रम में नासा ने भी विश्व के अलग अलग जगहों पर स्थापित डीप स्पेस सेन्टर से 8 घंटे प्रति स्पेस सेन्टर से 24 घंटे सिग्नल भेजने की प्रक्रिया को अपनाया है. बावजूद इसके इस दिशा में सफलता नही मिल पाई है.
चन्द्रयान 2 ने मूलतः प्रयोग की दो प्रक्रिया की परिकल्पना की थी. ऑर्बिटर को जहां चंद्रमा की सतह से 100 किमी की दूरी से ऑब्सर्व करना था. वही लैंडर और रोवर को चंदमा की जमीन पर उतरकर, वहां मौजूद मिट्टी को खुरचकर उसे जलाना था, ताकि उसमें मौजूद रासायनिक तत्वों की जानकारी इकट्ठा किया जा सके. लेकिन विक्रम से संपर्क टूटने की स्थिति में इस प्रयोग को अब नहीं किया जा सकता.
इसरो द्वारा दिये गये 14 दिन के समय मे अब कुछ घंटे ही बचे हैं. वैज्ञानिकों को प्राप्त तस्वीरों के आधार पर 19 सितंबर की दोपहर को ही वहां लंबी-लंबी छाया बनने लगी थी. चंद्रमा पर सूर्य की किरणें अस्ताचल हो रही हैं. ऐसे में ये अनुमान लगाना आसान है कि अब तक वहां पूर्ण अंधकार हो चुका है. अब इसरो को एक बार फिर सूर्य उदय का इंतजार करना होगा. 14 दिनों के बाद जब सूर्योदय होगा तो इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि विक्रम लैंडर में मौजूद बैटरी चार्ज होंगी.
निश्चित रूप से लैंडर के हाथों से निकल जाने के बाद कुछ प्रयोग नहीं हो पाएंगे पर चन्द्रयान-2 का ऑर्बिटर बिलकुल दुरुस्त है. उसके 8 पेलोड अपना काम सही तरह से कर रहे हैं. ऑर्बिटर में लगे कैमरे आज के समय के बहुत हाई रेसॉल्युश युक्त कैमरे हैं जो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म पदार्थ की बेहद शार्प तस्वीरें ले सकते हैं. ऐसे में ऑर्बिटर इस योग्य है कि मिट्टी को जलाने के प्रयोग को छोड़कर बाकी तमाम निर्धारित प्रयोग ऑर्बिटर सम्भव कर दिखाएगा.