चुनावी वर्ष में भारतीय जनता पार्टी बड़ा झटका लगा है. पार्टी के बड़े नेता और आदिवासी समाज की आवाज माने जाने वाले नंद कुमार साय ने भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़कर अब कांग्रेस का दामन थाम लिया है. नंद कुमार को छत्तीसगढ़ में भाजपा का बड़ा चेहरा माना जाता था. हालांकि, अब वो राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के हो गए हैं. साल के आखिर में होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले साय के पाला बदलने के कदम को प्रदेश में विपक्षी दल बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.


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साय 5 बार चुनावी जीत दर्ज कर चुके हैं. उन्हें दो बार लोकसभा चुनावों में जीत मिली है, वहीं वो 3 बार विधायक भी रह चुके हैं. पूर्व में नंद कुमार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं, जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ एक ही राज्य हुआ करते थे. माना जाता है कि उत्तर छत्तीसगढ़ में मौजूद आदिवासी लोगों में वो काफी प्रभावी चेहरा हैं.


उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से अलग होने के बाद कहा कि उनके साथी ही उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं और उनके चरित्र को खराब करने के लिए झूठे आरोप लगा रहे हैं. वर्षों तक बीजेपी का प्रमुख आदिवासी चेहरा रहे सय पहली बार 1977 में तपकरा विधानसभा सीट से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे.


इसके बाद 1985 और 1998 के विधानसभा चुनावों में भी उन्हें तपकरा विधानसभा सीट से जीत मिली थी. एक के बाद एक चुनाव जीतने की वजह से उनका कद बढ़ता चला गया. पार्टी ने उनके कद को देखते हुए लोकसभा का टिकट थमाया जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने 1989, 1996 और 2004 में रायगढ़ लोकसभा सीट से जीत हासिल की. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें 2009 और 2010 में राज्यसभा का सांसद बनाया.


उन्हें वर्ष 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया था. उन्हें बीजेपी का पोस्टर ब्वॉय माना जाता था. हालांकि, रमन सिंह का कद बड़ा होने के बाद साय राज्य की राजनीति में नीचे जाते दिखे और फिर वापस नहीं आ सके. उन्होंने कई बार पार्टी के समक्ष अपनी नाराजगी भी जाहिर की. उनके कांग्रेस में जाने से बीजेपी को छत्तीसगढ़ के सरगुजा इलाके में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.


 


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