कांग्रेस ने 54 साल तक केंद्र की सत्ता में रही है और देश को 7 प्रधानमंत्री दिए हैं. अध्यक्ष पद की बात करें तो पार्टी ने आजादी के बाद से कुल 19 नेताओं को अध्यक्ष पद पर बिठाया है. लेकिन इसमें नेहरू-गांधी खानदान के सिर्फ पांच लोग ही रहे हैं. लेकिन एक दूसरे नजरिए से देखें तो आजादी के 75 सालों में 40 साल इस परिवार का ही कोई न कोई सदस्य अध्यक्ष पद पर टिका रहा.
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Non-Gandhi Presidents of Congress: कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने दिग्गज नेताओं को खोती जा रही है. ऐसे में कांग्रेस की कोशिश है कि 2024 के चुनावों से पहले अपनी खोई जमीन को वापस पाया जाए. इसके लिए पार्टी को जरूरत है कि एक नया अध्यक्ष ढूंढा जाए. इस पद के लिए कई कयास लगाए जा रहे हैं. लेकिन गांधी परिवार के होते वो कयास भी निर्थरक साबित हो सकते हैं.
तो अब गांधी परिवार से नहीं होगा अध्यक्ष?
वैसे यह तो स्पष्ट है कि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी शायद अब इस पद पर न बैठें क्योंकि उनकी तबीयत को लेकर आए दिन खबरें आती हैं. जबकि पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पार्टी अध्यक्ष के रूप में वापसी के मूड में नहीं हैं. हाईकमान ये भी स्पष्ट कर चुका है कि इस बार गांधी परिवार से बाहर का कोई शख्स अध्यक्ष बनना चाहिए. ऐसे में पार्टी एक नए नेतृत्व की तलाश में है.
यह आंकड़ा दिलचस्प
इस बीच यह जानना भी दिलचस्प है कि पार्टी पर अब तक कैसे राज होता आया है. क्योंकि पिछले कई सालों में पार्टी का नेतृत्व गांधी परिवार ही संभाल रहा है. आइए आपको बताते हैं कि ऐसे कौन से और कितने लोग रहे हैं जो पार्टी के अध्यक्ष बने लेकिन गांधी परिवार से नहीं रहे. कांग्रेस ने 54 साल तक केंद्र की सत्ता में रही है और देश को 7 प्रधानमंत्री दिए हैं. अध्यक्ष पद की बात करें तो पार्टी ने आजादी के बाद से कुल 19 नेताओं को अध्यक्ष पद पर बिठाया है. लेकिन इसमें नेहरू-गांधी खानदान के सिर्फ पांच लोग ही रहे हैं. लेकिन एक दूसरे नजरिए से देखें तो आजादी के 75 सालों में 40 साल इस परिवार का ही कोई न कोई सदस्य अध्यक्ष पद पर टिका रहा. वहीं मौजूदा सदी में तो 1998 के बाद लगातार सोनिया या राहुल गांधी ही अध्यक्ष रहे हैं.
स्वतंत्र भारत में कांग्रेस पार्टी के पहले अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैय्या (Pattabhi Sitaraimayya) थे. इन्होंने 1948-1949 तक पार्टी की कमान संभाली. वो पेशे से डॉक्टर थे और जयपुर अधिवेशन के पार्टी प्रमुख के रूप में चुने गए थे. साल 1930 में आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम के पास समुद्र तट पर स्वयंसेवकों का नेतृत्व करके और नमक बनाकर नमक कानून तोड़ने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था. इनके अलावा पुरुषोत्तम दास टंडन साल 1950 में अध्यक्ष बने और नासिक सत्र की अध्यक्षता की. भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी को प्रतिष्ठित करवाने में उनका खास योगदान माना जाता है और देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भी उन्हें दिया गया था.
आंध्र प्रदेश के एक प्रमुख नेता, नीलम संजीव रेड्डी 1960-1963 तक INC के अध्यक्ष थे. वह साल 1977 से 1982 तक भारत के छठे राष्ट्रपति थे. उन्होंने 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए कॉलेज में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी. इनके अलावा के कामराज साल 1964 से 1967 तक INC के अध्यक्ष रहे. उन्हें भारतीय राजनीति में किंगमेकर माना जाता था. INC वेबसाइट के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू के निधन से लेकर 1969 में कांग्रेस के विभाजन तक भारत के भाग्य को आकार देने में अग्रणी भूमिका निभाई. उन्हें भारत रत्न पुरस्कार दिया गया था.
एस सिद्धवनल्ली निजलिंगप्पा पेशे से वकील थे जिन्होंने कर्नाटक के एकीकरण में अग्रणी भूमिका निभाई और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. वह साल 1968-69 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे. जब कांग्रेस का विभाजन हुआ, तो उन्होंने ही इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले गुट के खिलाफ संगठन के मोर्चे का समर्थन किया था. साथ ही 1970-1971 तक जगजीवन राम ने पार्टी संभाली जिन्हें कि बाबूजी भी कहा जाता है, उनका विचार था कि दलित नेताओं को न केवल सामाजिक सुधारों के लिए लड़ना चाहिए, बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व की भी मांग करनी चाहिए. महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वे सविनय अवज्ञा आंदोलन और सत्याग्रह में शामिल हो गए. वे पिछड़े वर्गों, अछूतों और शोषित मजदूरों के नेता थे. उन्होंने सामाजिक न्याय को संविधान में शामिल करने पर जोर दिया और 1946 में नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री थे.
1972-1974 में शंकर दयाल शर्मा ने चार साल तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. वह 1992 से 1997 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे और साल 1959 में कराची, पाकिस्तान में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. फिर देवकांत बरुआ ने साल 1975-1977 तक आपातकाल के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था. उन्हें अपनी 'इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया' टिप्पणी के लिए जाना जाता है. वह गांधी परिवार के वफादार थे, लेकिन बाद में कांग्रेस के विभाजन के बाद इंदिरा विरोधी गुट में शामिल हो गए.
फिर एक दौर में पीवी नरसिम्हा राव ने साल 1992 से 1996 तक कांग्रेस के अध्यक्ष की कमान संभाली. पीवी नरसिम्हा राव, भारत के नौवें प्रधान मंत्री थे और उन्हें एक ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली जो सोवियत संघ के पतन के कारण एक अंतरराष्ट्रीय चूक के कगार पर थी. प्रधानमंत्री पद के अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की देखरेख की. 1996-1998 में बिहार से तालुक रखने वाले सीताराम केसरी को 1996 में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गए थे. सीताराम केसरी 13 साल के बच्चे के रूप में बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और अंतत अपने राज्य के एक युवा नेता बन गए.
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