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नई दिल्ली. देश की सेना हर वक्त बॉर्डर पर तैनात रहती है. भारत में सीमाओं की सुरक्षा करना काफी मुश्किल काम है. सेना की सुरक्षा के मद्देनजर उत्तराखंड में All Weather Road Project की शुरू किया गया. इस प्रोजेक्ट का देश के कुछ पर्यावरण कार्यकर्ता और NGO विरोध कर रहे हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला देने वाला है. इस फैसले में साफ हो जाएगा कि सीमा सुरक्षा के लिए उत्तराखंड में सड़कों को चौड़ा करने की इजाज़त मिलेगी? या पर्यावरण के लिए इस प्रोजेक्ट को रोक दिया जाएगा. आपको बता दें इस प्रोजेक्ट से जरूरत पड़ने पर ब्रह्मोस जैसी मिसाइल सीमा तक ले जाई जा सकती हैं.
ये प्रोजेक्ट उत्तराखंड के चार धाम यानी बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री से जुड़ा है. इस प्रोजेक्ट के तहत करीब 880 किलोमीटर की सड़कों को चौड़ा किया जाना है. ये प्रोजेक्ट दो वजहों से बहुत महत्वपूर्ण है. पहला इससे चार धामों के बीच Connectivity में सुधार होगा. मौजूदा समय की तुलना में यात्रा ज्यादा सुरक्षित और सुविधाजनक होगी. इसके साथ ही उत्तराखंड में रोजगार और व्यापार के नए अवसर पैदा होंगे.
लेकिन इस प्रोजेक्ट का सबसे प्रमुख लक्ष्य है उत्तराखंड में भारत चीन सीमा पर सेना की पहुंच को आसान बनाना. इस प्रोजेक्ट के तहत जिन सड़कों को चौड़ा किया जाएगा, वो देहरादून और मेरठ में सेना के Camps को Line of Actual Control से जोड़ने में काफी अहम होंगी. सेना के ये दो ऐसे महत्वपूर्ण Camps हैं, जिन्हें Missile Base के तौर पर स्थापित किया गया है और जहां भारी गोला बारूद मौजूद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था. एक अनुमान के मुताबिक इस प्रोजेक्ट के तहत अब तक 400 किलोमीटर की सड़कों को चौड़ा भी किया जा चुका है.
इस प्रोजेक्ट में सड़कें चौड़ी करने के लिए कुछ पहाड़ों और पेड़ों को कटाना पड़ेगा. इसीलिए उत्तराखंड के कुछ पर्यावरण कार्यकर्ता इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं और इस पूरे मामलें में अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक NGO ने कहा है कि इस प्रोजेक्ट की वजह से उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थियों को जबरदस्त नुकसान पहुंचेगा, जिससे लैंडस्लाइड और अचानक बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाएंगी. उनका कहना है कि इससे पहाड़ों पर लोगों के लिए सुरक्षित जीवन मुश्किल हो जाएगा.
इस मामले में अदालत में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि अगर भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया और ऐसी स्थिति में सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइल को ले जाना पड़ा तो ये कैसे मुमकिन होगा? सड़कें चौड़ी और अच्छी गुणवत्ता की नहीं हुईं तो भारतीय सेना ऐसा नहीं कर पाएगी. इसका सीधा फायदा चीन को मिलेगा. केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि सेना इसलिए हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठ सकती क्योंकि उसके यहां सड़क बनाने से लैंडस्लाइड और पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है.
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रक्षा मंत्रालय ने पिछले साल नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट में एक Affidavit दिया था, जिसमें ये कहा गया था कि उसे LAC तक हथियार और सैनिक पहुंचाने के लिए Double Lane की सड़क की जरूरत होगी. इसमें एक तरफ की सड़क की चौड़ाई 7 मीटर होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में पर्यावरण संबंधी मुद्दों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को संतुलित करके देखना भी जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक High Powered Committee भी बनाई थी, जिसके कुछ सदस्यों के बीच इस बात को लेकर मतभेद थे कि सड़कों को कितना मीटर चौड़ा किया जाना चाहिए. तब इस कमेटी ने जुलाई 2020 में दो रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी. जिनमें एक में कहा गया कि सड़कों को साढ़े 5 मीटर तक चौड़ा किया जा सकता है. जबकि एक अन्य रिपोर्ट में 7 मीटर तक सड़कें चौड़ी करने की मांग की गई. अब कोर्ट को ये तय करना है कि इस प्रोजेक्ट में सड़क की चौड़ाई कितनी बढ़ाई जा सकती है या नहीं बढ़ाई जा सकती.