Corona: बुजुर्गों के लिए दुखदाई बन गया Lockdown, 73 प्रतिशत लोगों ने मानी उत्पीड़न की बात
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Corona: बुजुर्गों के लिए दुखदाई बन गया Lockdown, 73 प्रतिशत लोगों ने मानी उत्पीड़न की बात

कोरोना महामारी (Coronavirus) की दूसरी लहर लाखों लोगों को जीवन भर का दुख देकर चली गई. इसका सबसे ज्यादा असर देश के बुजुर्गों पर देखने को मिल रहा है.

घर में चेस खेलते बुजुर्ग (साभार Agewell Foundation )

नई दिल्ली: कोरोना महामारी (Coronavirus) की दूसरी लहर लाखों लोगों को जीवन भर का दुख देकर चली गई. इस बीमारी को कंट्रोल करने के लिए लॉकडाउन लगा. इस लॉकडाउन (Lockdown) से फायदा तो हुआ लेकिन देश की 73 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी (Elderly people) को अपने ही घरों में हिंसा और दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ रहा. 

  1. सर्वे में 5 हजार लोगों से पूछे सवाल
  2. 73 प्रतिशत ने मानी दुर्व्यवहार की बात
  3. 'समाज को जागरूक करने की जरूरत'

सर्वे में 5 हजार लोगों से पूछे सवाल

Agewell Foundation की एक रिपोर्ट के मुताबिक उसने World Elder Abuse Awareness Day के मौके पर एक सर्वे किया था. इस सर्वे में करीब 5 हजार बुजुर्गों (Elderly people) से संपर्क कर उनसे सवाल पूछे गए. सर्वे में शामिल 82 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से उनकी जिंदगी पहले से बदतर हो गई है. 

73 प्रतिशत ने मानी दुर्व्यवहार की बात

सर्वे रिपोर्ट में 73 प्रतिशत लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद उनके साथ अपने ही घरों में दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ गईं. वहीं 61 परसेंट ने दावा किया कि इस दुर्व्यवहार का बड़ा कारण ये था कि वे संयुक्त परिवारों में रहते हैं और बीमारी के दौरान घर के बच्चों ने ही उन्हें बोझ समझ लिया.

सर्वे में शामिल 65 परसेंट लोगों ने कहा कि वे अपने घरों में नजरअंदाज किए जाने का सामना कर रहे हैं. वहीं 58 प्रतिशत ने दावा किया कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद से वे परिवार और समाज में उपेक्षा का सामना कर रहे हैं. रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि देश में करीब एक तिहाई यानी 35.1 प्रतिशत बुजुर्ग बुढ़ापे में घरेलू हिंसा का सामना करने को मजबूर हैं. 

Agewell Foundation के चेयरमैन हिमांशु रथ कहते हैं कि कोरोना महामारी और उसे नियंत्रित करने के लिए देश में लगे लॉकडाउन ने हरेक इंसान को प्रभावित किया है. इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित देश के बुजुर्ग (Elderly people) हैं. महामारी के दौरान कई घरों में उन्हें बोझ मान लिया गया है और उनके साथ बदसलूकी और हिंसा की घटनाएं हो रही हैं.

'समाज को जागरूक करने की जरूरत'

हिमांशु रथ कहते हैं कि बुजुर्गों के साथ हो रहे इस तरह के व्यवहार को रोकने के लिए समाज को जागरूक करने की जरूरत है. साथ ही बुजुर्गों के साथ होने वाले गलत व्यवहारों को रोकने के लिए उन्हें भी कानूनी प्रावधानों और सपोर्ट सिस्टम के बारे में अवगत कराया जाना जरूरी है. 

रिपोर्ट कहती है कि बुजुर्ग अपनी देखभाल के लिए परिवार के लोगों पर निर्भर हैं. इसके चलते वे अपने साथ गाली-गलौच, मिसट्रीटमेंट और उत्पीड़न होने के बावजूद चुप रहने को मजबूर रहते हैं. वे सोचते हैं कि अगर उन्होंने इस बारे में किसी से कहा तो उनकी बेइज्जती होगी और उत्पीड़न पहले से ज्यादा बढ़ जाएगा. 

बुजुर्ग महिलाओं की हालत ज्यादा खराब

रिपोर्ट के मुताबिक बुजुर्गों (Elderly people) में भी महिलाओं की हालत पहले से ज्यादा खराब है. अधिकतर के पास आजीविका के लिए कोई साधन नहीं है. इसके चलते वे पूरी तरह परिवार के लोगों पर आश्रित रहने को मजबूर रहती हैं. चूंकि उनका जीवन पुरुष की तुलना में आमतौर पर लंबा होता है. ऐसे में उत्पीड़न भी ज्यादा सहना पड़ता है. 

शिकायत नहीं करना चाहते बुजुर्ग

स्टडी के मुताबिक इतना सब कुछ सहने के बावजूद बुजुर्ग (Elderly people) अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहारों की कहीं शिकायत नहीं करते. इसकी कई वजह हैं. अपने बच्चों की बदसलूकी को बाहर बताने पर उन्हें समाज में और उत्पीड़न का डर रहता है. उन्हें कानूनी प्रावधानों की जानकारी का अभाव है. समाज में भी उन्हें अपने लिए सहयोग का अभाव नजर आता है. 

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