DNA विश्लेषण: शाहीन बाग में 'कागज न दिखाने' की बात करने वालों ने कागज दिखाकर ही डाला वोट
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DNA विश्लेषण: शाहीन बाग में 'कागज न दिखाने' की बात करने वालों ने कागज दिखाकर ही डाला वोट

तस्वीरों में आप लोगों के हाथ में वोटर आईडी कार्ड और दूसरे प्रमाण पत्र देख सकते हैं. ये कागज़ बताते हैं कि ये लोग भारत के ही नागरिक हैं और इन्हें इन्ही कागज़ों की वजह से भारत में वोट डालने का अधिकार है लेकिन आज हमारा इन लोगों से सवाल ये है कि क्या ये लोग आज कागज़ दिखाने के बाद कल फिर विरोध प्रदर्शन में जुट जाएंगे?

DNA विश्लेषण: शाहीन बाग में 'कागज न दिखाने' की बात करने वालों ने कागज दिखाकर ही डाला वोट

एग्जिट पोल्स के नतीजे देखकर तो ऐसा नहीं लगता बीजेपी के लिए शाहीन बाग का मुद्दा पूरी तरह से फेल रहा. इसकी वजह यह है कि पिछली बार के मुकाबले आम आदमी पार्टी को 2 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है तो बीजेपी को 5 प्रतिशत का फायदा हो रहा है. इसी तरह आम आदमी पार्टी को 12 सीटों का नुकसान हो रहा है तो बीजेपी को 11 सीटों का फायदा हो रहा है. यानी जिस मुद्दे को लेकर बीजेपी ने पिछले एक महीने में जबरदस्त मेहनत की, उस मुद्दे ने बीजेपी को कुछ फायदा तो पहुंचाया ही है. 

हैरानी की बात ये है कि दिल्ली के शाहीन बाग में जो लोग कह रहे थे कि वो कागज नहीं दिखाएंगे वो लोग आज कागज़ दिखाकर ही वोट डाल रहे थे. ये तस्वीरें जो आप देख रहे हैं. वो शाहीन बाग़ के एक पोलिंग बूथ की है. इन तस्वीरों में आप लोगों के हाथ में वोटर आईडी कार्ड और दूसरे प्रमाण पत्र देख सकते हैं. ये कागज़ बताते हैं कि ये लोग भारत के ही नागरिक हैं और इन्हें इन्ही कागज़ों की वजह से भारत में वोट डालने का अधिकार है लेकिन आज हमारा इन लोगों से सवाल ये है कि क्या ये लोग आज कागज़ दिखाने के बाद कल फिर विरोध प्रदर्शन में जुट जाएंगे?

इन नतीजों से एक बात और साफ होती है और वो ये कि दिल्ली में इस बार जिन मुद्दों और शब्दों पर चुनाव लड़ा गया, उनका जनता पर कोई खास असर नहीं हुआ. दिल्ली में इस बार गोली, गद्दार, गज़वा ए हिंद, हिंदुस्तान-पाकिस्तान, हिंदू-मुसलमान, बिरयानी, और हनुमान और हनुमान चालीसा जैसे मुद्दे छाए रहे लेकिन ये सारे मुद्दे दिल्ली वालों को प्रभावित नहीं कर पाए. पाकिस्तान की जगह मुफ्त पानी, बिरयानी की जगह मुफ्त बस यात्रा और गद्दार जैसे मुद्दों की जगह फ्री बिजली के वादे दिल्ली की जनता को ज्यादा पसंद आए. 

ऐसा लग रहा है कि दिल्ली में चुनाव सिर्फ सोशल मीडिया पर ही ट्रेंड कर रहा था और लोग सोशल मीडिया पर होने वाले पोल्स में ही हिस्सा लेते रह गए लेकिन जमीन पर वोट डालने नहीं निकले. दिल्ली के लोगों को सुविधाएं तो सारी चाहिए, सबकुछ मुफ्त में चाहिए लेकिन वोटिंग का दिन. दिल्लीवालों के लिए सिर्फ छुट्टी का दिन बनकर रह जाता है. 

दिल्ली प्रति व्यक्ति आय, जीडीपी और रहन-सहन के हिसाब से देश के सबसे संभ्रांत राज्यों में से एक है. प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से गोवा के बाद दिल्ली देश में दूसरे नंबर पर है. दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय 3 लाख 65 हज़ार 529 रुपये प्रतिवर्ष है. यानी दिल्ली के लोग औसतन 30 हज़ार रुपये प्रति महीना कमा लेते हैं जबकि देश के लोगों की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 1 लाख 25 हज़ार रुपये प्रति वर्ष है. यानी देश के लोग एक महीने में औसतन सिर्फ 10 हज़ार रुपये ही कमा पाते हैं. यानी दिल्ली के लोगों की आमदनी देश के लोगों के मुकाबले तीन गुनी है. 

यानी मोटे तौर पर दिल्ली एक अच्छी आमदनी वाला संभ्रांत राज्य है. दिल्ली के लोगों के पास देश के बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा सुविधाएं हैं, ज्यादा पैसे हैं और ज्यादा अवसर हैं लेकिन क्या दिल्ली के लोग वोट भी एक संभ्रांत नागरिक की तरह डालते हैं? इसका जवाब थोड़ा मुश्किल है. फिलहाल दिल्ली की राजनीति का केंद्र फ्री वाले ऑफर्स हैं. ये ऑफर्स अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की तरफ से दिल्ली के वोटरों को दिए गए थे. यानी अच्छी आमदनी के बावजूद दिल्ली के लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं मुफ्त में चाहिए. अभी दिल्ली में 200 यूनिट बिजली फ्री है, 20 हज़ार लीटर तक पानी भी लोगों को फ्री में मिलता है और महिलाओं के लिए बसों में यात्रा भी बिल्कुल मुफ्त है. हम ये बिल्कुल नहीं कह रहे कि दिल्ली के सभी लोग कम से 30 हज़ार रुपये प्रति महीना कमा लेते हैं या फिर दिल्ली में गरीबी बिल्कुल नहीं है. हम सिर्फ अर्थव्यवस्था के पैमानों के हिसाब से दिल्ली को एक संभ्रांत और पैसों वाला राज्य कह रहे हैं. 

National Sample Survey के मुताबिक दिल्ली की कुल संपत्ति को अगर दिल्ली के सभी लोगों में बराबर बांट दिया जाए तो हर परिवार के पास औसतन 70 लाख 64 हज़ार रुपये की संपत्ति होगी । दिल्ली के 13 प्रतिशत परिवारों के पास ही दिल्ली की करीब 77 प्रतिशत संपत्ति है. 
 
यानी ये 13 प्रतिशत लोग दिल्ली के सबसे दौलतमंद लोग हैं लेकिन क्या ये लोग बड़ी संख्या में वोट डालने भी निकलते हैं? इस संबंध में सिर्फ दिल्ली से जुड़ा कोई आंकड़ा तो हमारे पास नहीं है लेकिन राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा वोटिंग गरीब परिवारों के लोगों ने की थी जबकि धनवान परिवारों में वोटिंग प्रतिशत काफी कम है. क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में सबसे कम वोटिंग कौन सा वर्ग करता है? सबसे कम वोटिंग का आरोप मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग पर लगता है. ये वो लोग हैं..जो सबसे ज्यादा शिकायतें करते हैं जिन्हें सबसे ज्यादा सुविधाएं मुफ्त में चाहिए, इस वर्ग के लोग अपने घर में हर फंक्शन और पार्टी में सिर्फ राजनीति की चर्चा करते हैं लेकिन जब बारी वोट देने की आती है..तो ये वर्ग पंक्ति में सबसे पीछे खड़ा होता है. ये लोग राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय तो रखते हैं लेकिन वोट डालने नहीं जाते. यानी दिल्ली की जनता ने बता दिया है कि दिल्ली के लोग बहुत आलसी हैं. 

मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के ज्यादातर लोगों के लिए वोटिंग का दिन सिर्फ एक छुट्टी का दिन होता है और इस दिन इस वर्ग के लोग बहुत कम संख्या में वोट डालने निकलते हैं लेकिन इस वर्ग के लोग मुफ्त सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाना चाहते हैं. पढ़ाई लिखाई और शिक्षा के क्षेत्र में भी दिल्ली की स्थिति काफी बेहतर है. दिल्ली में रहने वाले करीब 97 प्रतिशत लोग साक्षर हैं. अब आप सोचिए पढ़ा-लिखा राज्य होने के बावजूद, इनकम टैक्स चुकाने में नंबर दो होने के बावजूद और प्रति व्यक्ति आय में इतना आगे होने के बावजूद भी दिल्ली के लोग मुफ्त वाली राजनीति को ध्यान में रखते हुए वोट डालते हैं. 

2015 में दिल्ली चुनाव के बाद किए गए एक सर्वे के मुताबिक जिन लोगों ने बीजेपी की जगह आम आदमी पार्टी को वोट दिया था, उनमें से ज्यादातर लोग गरीब तबके से थे. इनमें से बहुत सारे लोग अवैध कॉलनियों में रहने वाले थे, इनमें दलित और पिछड़े वर्ग के लोग भी बड़ी संख्या में थे. इनकी साक्षरता दर भी कम थी. हैरानी की बात ये है कि इन लोगों की सोशल मीडिया और मीडिया तक पहुंच..बाकी वर्गों जितनी ही थी । ऐसा शायद इसलिए संभव हो पाया क्योंकि दिल्ली सूचना क्रांति के भी केंद्र में है. 

दिल्ली की जनसंख्या सवा दो करोड़ है लेकिन दिल्ली में मोबाइल फोन कनेक्शन 8 करोड़ 50 लाख हैं. यानी दिल्ली में हर व्यक्ति के पास 3 से ज्यादा मोबाइल फोन कनेक्शन है. इसलिए दिल्ली ही नहीं देश में भी जब कोई घटना घटती है तो उसकी सूचना दिल्ली के लोगों के पास बहुत तेज़ी से पहुंच जाती है. दिल्ली के लोग अपनी सारी राय सोशल मीडिया पर ही दे देते हैं लेकिन वोट डालने के लिए घरों से बाहर नहीं निकलते. शायद अब दिल्ली के लोगों के लिए वोटिंग की सुविधा भी स्मार्ट फोन पर ही देनी पड़ेगी. फिर भी इस बात की कोई गारंटी नहीं दिल्ली की जनता वोट डाल ही देगी. 

नए नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो या फिर चुनावी घोषणा पत्रों का प्रचार और प्रसार. सोशल मीडिया और मीडिया से दिल्ली की नजदीकी ने इसे बहुत आसान बना दिया है. देशभर के तमाम बड़े न्यूज चैनल और अखबारों के दफ्तर भी दिल्ली या दिल्ली के बहुत करीब हैं. इन अखबारों और न्यूज़ चैनलों के संपादकर अक्सर दिल्ली की बड़ी-बड़ी कॉपी शॉप्स में बैठकर देश की राजनीति पर चर्चा करते हैं. स्टूडियो से बाहर निकले बगैर. चुनाव और राजनीति को लेकर भविष्यवाणियां करते हैं. ये सब इसलिए हो पाता है क्योकि दिल्ली सत्ता का भी केंद्र है. यहां देश की संसद है, प्रधानमंत्री का कार्यालय है. सभी सांसदों के बंगले हैं और बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों के मुख्यालय भी दिल्ली में ही हैं. ऐसे में मीडिया को देश के दूर दराज के इलाकों में नहीं जाना पड़ता. डिजाइनर पत्रकार इन नेताओं से बात करके और इनके दफ्तरों में चाय की चुस्कियां लेते हुए ही ये बता देते हैं कि किस राज्य में कौन सी पार्टी सरकार बनाने जा रही है और दिल्ली की इन्हीं कॉफी शॉप्स में बैठकर ये डिजाइनर पत्रकार देश का एजेंडा सेट करते हैं. 

दिल्ली में वाहनों की संख्या भी देश के दूसरे बड़े शहरों के मुकाबले ज्यादा है. दिल्ली में करीब 1 करोड़ 10 लाख वाहन हैं जिनमें से 35 लाख कार हैं और 70 लाख दो पहिया वाहन हैं. दिल्ली में गाड़ियों की संख्या चेन्नई, मुंबई और कोलकाता की कुल गाड़ियों से भी ज्यादा है लेकिन फिर भी दिल्ली के लोग वोट डालने पोलिंग बूथ नहीं जा पाते. फिलहाल दिल्ली में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त मकान और मुफ्त स्कूटी और मुफ्त बस यात्रा जैसे ऑफर्स दिए जा रहे हैं. लेकिन सोचिए अगर किसी दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान दिल्ली आकर कह दें कि वो दिल्ली के लोगों की सारी ईएमआई भी भर देंगे. क्या दिल्ली के लोग इमरान ख़ान को भी जिता देंगे ? आज आपको इस पर विचार करना चाहिए. हालांकि एग्जिट पोल्स के नतीजे देखकर लगता है कि अब इस पर विचार करने का समय निकल चुका है. 

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