दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे में क्लीन एयर जोन बनाया गया है. य़े जोन बना तो जून 2018 में था लेकिन मंगलवार को इसे एनपीएल ( नेशनल फीजिकल लेबोरेटरी) से सर्टिफिकेशन मिला है.
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नई दिल्लीः दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील है. सरकार, एनजीटी, सीपीसीबी इनकी ओर से उठाए कदम नाकाम होते दिख रहे हैं क्योंकि मंगलवार का दिन पल्यूशन के सारे रिकार्ड तोड़ रहा था और संकेत ऐसे हैं कि आने वाले कुछ दिन और हालात बुरे होंगे. ऐसे में शुद्ध हवा के लिए दिल्ली वाले तरस रहे हैं. आपको बता दें कि ऐसा मुमकिन भी है कि दिल्ली वालों को शुद्ध हवा मिले, क्लीन एयर जोन के जरिए. हम आपको समझाते हैं कि ये क्लीन एयर जोन है क्या और कैसे काम करेगा.
दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे में क्लीन एयर जोन बनाया गया है. य़े जोन बना तो जून 2018 में था लेकिन मंगलवार को इसे एनपीएल ( नेशनल फीजिकल लेबोरेटरी) से सर्टिफिकेशन मिला है. इस क्लीन एयर जोन में हवा 90 फीसदी शुद्ध होगी. गुरुद्वारे के बाहर पीएम 2.5 350 के पास था जो इस जोन के अंदर सिर्फ 50 था. जोन की क्षमता 50- 100 स्केवर मीटर तक की हवा को शुद्ध कर सकता है. इसमें ऐसे फिल्टर का इस्तेमाल किया गया है जो बाहर की प्रदूषित हवा को अंदर फिल्टर करके एक बबल पैदा करती है और शुद्ध हवा को आस-पास ही रखती है, बाहर निकलने नहीं देती. मतलब अगर प्रदूषित हवा अंदर आती है और अंदर भी प्रदूषित हवा रहेगी तो शुद्ध हवा कैसे मिलेगी.
इसलिए अंदर ऐसे एयर फिल्टर का इस्तेमाल किया गया है जो बाहर की प्रदूषित हवा को अंदर फिल्टर करके शुद्ध हवा के संस्पर्श में लाती है. ये तकनीक भारत की नहीं है लेकिन भारत में पहली बार इसका पायलट प्रोजेक्ट लगाया है. हवा को रोकना या पूरे शहर की हवा को शुद्ध करना संभव नहीं है लेकिन इस तरह के क्लीयर एयर जोन से कम से कम आप अपने आस-पास के इलाकों की हवा शुद्ध कर सकते हैं. ये छोटे छोटे फिल्टर के साथ खुले में लगाए जाएंगे. जैसे स्कूल, कालेज, अस्पताल, मॉल, सड़क किनारे, बस स्टॉप या होटल में जहां खुली जगह है वहां ये एयर फिल्टर लग सकते हैं.
ये तकनीक बनाने वाली कंपनी एवरजेन के कंट्री हेड सोधी जी बी सिंह ने बताया कि विदेशों में ये तकनीक है लेकिन भारत में पहली बार ऐसा कुछ बनाया गया है. जो बहुत सस्ती तकनीक है. इसको लगाने में कम से कम खर्च 6-7 लाख रुपए का आएगा. हमने एनडीएमसी, एमसीडी, एनजीटी से बात की है. हर किसी ने तकनीक को सराहा है लेकिन कोई अब तक इसे लगाने के लिए आगे नहीं आया है. दिल्ली के जो हाल है उसे देखते हुए इसकी जरूरत बढ़ गई है. इसमें खर्च भी ज्यादा नहीं है. ये हमारी पेटेंट तकनीक है.