हिंदुस्तान में आज भी कई ऐसे मंदिर जिनके रहस्यों से आज भी पर्दा नहीं उठ पाया है. यह वो मंदिर हैं जो दुनिया और लोगों की नजरों से आज भी दूर हैं. ऐसा ही एक मंदिर है "श्री माता भीमेश्वरी देवी" का मंदिर है. इस मंदिर का राज महाभारत काल में होने वाले युद्ध से जुड़ा हुआ हैं और इस मंदिर के निर्माण में भगवान श्रीकृष्ण की सबसे अहम भूमिका थी तो चलिए कृष्ण जन्माष्टमी के खास मौके पर जानते हैं इस मंदिर के बारे में...
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Shree mata Bheemeshvari Devi Mandir: हमारे देश में आज भी ऐसे मंदिर हैं जो दुनिया और लोगों की नजरों से बचे हुए हैं और इन मंदिरों का राज आज तक कोई नहीं जान पाया है. ऐसा ही एक मंदिर है "श्री माता भीमेश्वरी देवी" का मंदिर है. कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल के समय में हुआ था. यह मंदिर हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी में है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस पूरे मंदिर में मूर्ति तो एक ही है मगर मंदिर दो. कहते हैं कि इस मूर्ति की स्थापना पांडु पुत्र भीम ने की थी. तो चलिए आज जानते हैं कि क्या है इस मंदिर की खासियत? और इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में.
क्या सरहद पार से मूर्ति लेकर आए थे भीम?
कहते हैं कि महाभारत का युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने भीम को कुल देवी का आशीर्वाद लेने भेजा था. कुल देवी उन दिनों हिंगलाज पर्वत पर विराजमान थी, लेकिन यह पर्वत अब पाकिस्तान में मौजूद है. जब भीम कुल देवी का आशीर्वाद लेने के लिए वहां पर पहुंचे तो उन्होंने देवी को साथ चलने के लिए कहा, उस वक्त कुल देवी ने भीम के सामने एक शर्त रखी और उन्होंने कहा कि अगर तुम मुझे गोद में लेकर चलोगे तो ही साथ चलूंगी और जहां पर तुम मुझे उतारोगें, मैं वहीं पर हमेशा के लिए विराजमान हो जाऊंगी.
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भीम ने कुल देवी हिंगलाज की बात को स्वीकार कर लिया और भीम देवी को साथ लेकर निकल पड़ें. कहते हैं कि बेरी कस्बे से गुजरते समय भीम को लघुशंका लग गई, जिस वजह से भीम को गोद से उतारना पड़ा. इसके बाद जब भीम ने उन्हें फिर से साथ चलने के लिए कहा तो उन्होंने साथ चलने से इंकार कर दिया और भीम को उनकी शर्त याद दिलाई. देवी की शर्त के मुताबिक भीम ने पूजा कर बेरी के बाहर ही मां स्थापना कर दी और तभी से मां को भीमेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है. यहां मां की मूर्ति चांदी के सिंहासन पर विराजमान है.
मूर्ति एक और मंदिर दो, जानें क्या है इसके पीछे का इतिहास?
इतिहास के मुताबिक, मां भीमेश्वरी देवी की मूर्ति एक थी, लेकिन इस जगह पर दो मंदिरों की स्थापना की गई है. कहते हैं कि मां रात में अंदर विश्राम करती हैं और दिन में भक्तों को दर्शन देने के लिए बाहर वाले मंदिर में विराजती है. महाभारत के इतिहास के मुताबिक, अंदर वाला मंदिर ऋषि दुर्वासा का आश्रम है, ऋषि ने मां से आग्रह किया था कि वे उनके आश्रम में भी आएं इसलिए मां रोज रात में वहीं विश्राम करती हैं.
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हिंदू धर्म के अनुसार चैत्र व शारदीय नवरात्र के दौरान, इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु मां भीमेश्वरी के दर्शन के आते हैं. हर रोज सुबह 5 बजे मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को बाहर वाले मंदिर में लाया जाता है और दोपहर 12 बजे मूर्ति को अंदर वाले मंदिर में वापस विराजमान किया जाता है. मान्यता है कि मां रात भर अंदर वाले मंदिर में आराम करती हैं. ज्योतिष के अनुसार आज भी इस मंदिर में दुर्वासा ऋषि द्वारा रचित आरती से पूजा की जाती है.