देश को पैरालंपिक में मेडल दिलाने का सपना देख रहे तीरंदाज ने PM से लगाई मदद की गुहार
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देश को पैरालंपिक में मेडल दिलाने का सपना देख रहे तीरंदाज ने PM से लगाई मदद की गुहार

बचपन में पिता को खोया, सिलाई सीखकर घर चलाया. मुश्किल हालातों से निकलकर दिल्ली के पदक दिलाने वाले पैरा तीरंदाज आसिफ का नहीं खत्म हो रहा संघर्ष. दिल्ली की झोली को पदक से भरने वाले तीरंदाज आसिफ पाई-पाई को मोहताज है पैरालंपिक का सपना पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री और खेल मंत्री से मदद की गुहार लगाई है.

देश को पैरालंपिक में मेडल दिलाने का सपना देख रहे तीरंदाज ने PM से लगाई मदद की गुहार

नई दिल्लीः देश की राजधानी में खेल को भले ही बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन कुछ पैरा खिलाड़ियों को सम्मान और साधन सुविधा के रूप में सिर्फ निराशा हाथ लग रही है. दिल्ली की झोली को पदक से भरने वाले ऐसे ही एक पैरा तीरंदाज आज पाई-पाई को मोहताज हैं. दरअसल, सामान्य कद काठी वाले दिव्यांग मोहम्मद आसिफ को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि वो इतने दर्द, तड़प, उलाहना सहकर खेल जगत में आगे बढ़े होंगे. सरकार से भले ही उन्हें साधन और सुविधा ना मिली हो, लेकिन लंबे संघर्ष के बाद भी आसिफ ने अपने खेल जुनून के आगे आर्थिक चुनौतियों को सामने नहीं आने दिया.

खाली जेब से आसिफ देख रहे भारत को पदक दिलाने का सपना

आसिफ का सपना पैरालंपिक में पदक हासिल करना है. साधन और सुविधा के अभाव में आसिफ ने कभी हार नहीं मानी. पैरालंपिक का जुनून ऐसा है कि घर के पास एक बड़े से मैदान में कड़ी धूप में पसीना बहाकर इन दिनों तीरंदाजी का अभ्यास कर रहे हैं. कहने को उनकी जेब खाली है, लेकिन उनके जीवन में लक्ष्य बस यही है कि भारत के लिए पैरा ओलंपिक में किसी भी सूरत में पदक हासिल करना है.

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एक हादसे ने बदल दी जिंदगी, छूट गई पढ़ाई

आसिफ बताते हैं कि परिवार में मां नसीम बानो व चार भाई हैं, पिता का बीमारी के चलते मौत हो गई. पिता की मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति काफी बदहाल हो गई थी. परिवार के पालन पोषण के लिए मात्र पिता एक कमाई का जरिया थे. कड़कड़डूमा स्थित अमर ज्योति विद्यालय में 8वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई को बीच छोड़ना पड़ा, जिसके चलते विद्यालय से तीरंदाजी का अभ्यास भी छूट गया. इतने रुपये नहीं हुआ करते थे कि किसी तीरंदाजी सेंटर में जाकर अपने अभ्यास को बरकरार रख सकें.

दर्जी की दुकान में सिलाई कर खरीदा लकड़ी का साधारण धनुष

उन्होंने आगे बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति को देखकर महज 12 साल की उम्र से ही एक दर्जी की दुकान पर सिलाई का काम सीखा. इसके बाद उसी दुकान पर तीन हजार रुपये महीने की सैलरी पर काम भी किया. उन तीन हजार रुपये से परिवार का खर्च व तीरंदाजी की तैयारी शुरू की. इसके अलावा आगे पढ़ना था तो ओपन से 10वीं व 12वीं की पढ़ाई की.

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उन्होंने आगे बताया कि दर्जी की दुकान पर दिन रात काम कर कुछ रुपये जुटाकर उन्होंने एक लकड़ी का साधारण सा धनुष खरीदा. उसी धनुष से तीरंदाजी का अभ्यास शुरू किया और जिला स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर पदक जीते. इसके अलावा हर महीने अपनी कमाई का तीसरा हिस्सा कंपाउंड बो (धनुष) के लिए जोड़ना शुरू किया. देर से ही सही उन्होंने एक पुराना कंपाउंड बो खरीद लिया. इसी से उन्होंने नेशनल तीरंदाज खिलाड़ी की पहचान बनाई.

आसिफ राष्ट्रीय स्तर पर जीत चुके हैं कई पदक

आसिफ बताते हैं कि हरियाणा में आयोजित पैरा थर्ड तीरंदाजी नेशनल चैंपियनशिप 2019 में टीम दिल्ली के लिए रजत पदक जीता. महाराष्ट्र में आयोजित पैरा थर्ड तीरंदाजी नेशनल चैंपियनशिप 2009 में दिल्ली के लिए दो स्वर्ण पदक हासिल किए थे. इसके अलावा चीन में आयोजित एशियाई खेल 1994 में भारतीय टीम की ओर से खेल चुके हैं. भविष्य में आयोजित होने जा रहे पैरा तीरंदाजी विश्व चैंपियनशिप के लिए अभी से ही दिन रात एक कर कंपाउंड बो से तैयारी कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री और खेल मंत्री को ट्वीट कर लगाई मदद की गुहार

आसिफ बताते हैं कि उनका सपना भारत की झोली को पदक से भरना है, लेकिन साधन और सुविधा के अभाव में वो अपनी तैयारी भी ठीक से नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने ट्वीट के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से साधन सुविधा के लिए मदद की गुहार लगाई.

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