Dushyant Chautala BJP Alliance: हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी ने अलग-अलग रास्ते चुन लिए हैं, लेकिन इसके बावजूद गठबंधन टूटने को लेकर दोनों ही पार्टियां खुलकर कुछ ज्यादा नहीं बोल रही हैं. ऐसे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ये पहले से ही तय था कि दोनों पार्टियों का गठबंधन टूटने वाला है.
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Haryana BJP-JJP Alliance: हरियाणा में मंगलवार को ऐसी सियासी उठापटक हुई कि सुबह जो मुख्यमंत्री थे वो शाम को पूर्व सीएम हो गए और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्मयंत्री पद की शपथ ले ली. मंगलवार को मनोहर लाल समेत पूरी कैबिनेट के इस्तीफा देने के बाद जननायक जनता पार्टी भी सरकार से बाहर हो गई. राज्य में दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हो गए. इसके बाद ये चर्चाएं तेज हो गईं कि जेजेपी और बीजेपी के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनीं, जिसके बाद दोनों पार्टियों ने अलगाव का रास्ता चुना, लेकिन अब सवाल ये है कि क्या सच में ऐसा है? इस सवाल का एक टूक में जवाब शायद नहीं दिया जा सकता है.
जेजेपी के व्हिप पर उठे सवाल
हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी की अलग-अलग होने की खबरों से राजनीतिक जानकार इत्तेफाक नहीं रखते. दरअसल, साल 2019 में जब हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए थे. इस दौरान सरकार बनाने के लिए बीजेपी के लिए सत्ता की चाबी लेकर जेजेपी ही आई थी. यहां गौर करने वाली बात है कि दोनों ही पार्टियों के वोट बैंक और चुनावी रणनीतियां अलग-अलग हैं. आज जब हरियाणा में दोनों पार्टियां अलग हो गई हैं तो इसके बावजूद भी इन पार्टियों के नेता गठबंधन टूटने के बारे में खुलकर बात करने से परहेज कर रहे हैं. वहीं, फ्लोर टेस्ट के दिन जेजेपी ने व्हिप जारी कर अपने विधायकों को विश्वासमत के दौरान विधानसभा से दूर रहने बात कही थी. ऐसे में जब दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन खत्म हो गया है तो व्हिप जारी कर विश्वासमत से दूर रहने की बात पर भी सवाल उठ रहे हैं.
सोच समझकर गठबंधन से बाहर?
बता दें कि जब साल 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे तो जेजेपी आम आदमी पार्टी संग मिलकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इसका कुछ भी फायदा दोनों पार्टियों को नहीं मिल पाया. यहां तक कि दुष्यंत चौटाला खुद हिसार की सीट से चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में हरियाणा की पूरी 10 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी, लेकिन अब लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले दोनों पार्टियों ने अलग-अलग राह अपना लिए हैं. इसको लेकर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन टूटा नहीं है बल्कि दोनों पार्टियां सोच समझकर इस गठबंधन से बाहर हुई हैं.
कोर वोटर्स की राजनीति के इतर गठबंधन
दरअसल, बीजेपी और जेजेपी दोनों ही पार्टियों के वोट बैंक अलग हैं. साथ ही दोनों ही पार्टियों की राजनीतिक रणनीति भी अलग-अलग है. एक ओर जहां, हरियाणा में बीजेपी गैर जाट वोट की राजनीति करती है तो वहीं, जेजेपी के कोर वोटर्स जाट हैं. बीजेपी ने साल 2014 में ही हरियाणा में गैर जाट मुख्यमंत्री बनाया था. इसके बाद हरियाणा के जो नए मुख्यमंत्री हैं वो भी जाट नहीं हैं. ऐसे में अब जब जेजेपी बीजेपी से अलग हो गई है तो ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि JJP अपने कोर वोटर्स के बीच अपनी पकड़ और मजबूत करने में कामयाब हो जाए. साथ ही जो विरोधी स्वर किसान आंदोलन और पहलवानों के धरने के वक्त जेजेपी के लिए उठ रहे थे, जेजेपी उन्हें भी अब अपने खेमे में करने में कामयाब हो जाए.
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गठबंधन से खड़ी हो सकती थी मुसीबत?
हरियाणा की राजनीतिक समझ रखने वालों का यह भी मानना है कि इस गठबंधन से दोनों ही पार्टियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता था. साथ ही गठबंधन की वजह से दोनों ही पार्टियों को कोर वोटर्स की राजनीति से समझौता करना पड़ रहा था. किसान आंदोलन और पहलवानों के धरने के समय भी जेजेपी को विरोधी स्वरों का सामना करना पड़ा था. स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि पार्टी के अंदरखाने भी विरोध की अवाजें उठने लगी थीं. साथ ही गठबंधन तोड़ने की मांग भी उठने लगी थी. इस दौरान दुष्यंत चौटाला को कोई बार सफाई देनी पड़ी थी. ऐसे में इस गठबंधन से आगामी चुनाव में दोनों ही पार्टियों को गठबंधन की वजह विरोध का सामना करना पड़ सकता था.
भूपेंद्र हुड्डा ने उठाए सवाल?
इससे पहले जब हरियाणा में जेजेपी और बीजेपी की गठबंधन टूटने की खबर सामने आई थी तब हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने कहा था, "मालूम था सबको एक दिन बेवफा यार बदलेंगे, नाटक वही रहेगा, किरदार बदलेंगे, तुम CM बदलते रहना, हम एक दिन पूरी सरकार बदलेंगे." उन्होंने कहा कि दोनों दलों ने जनता को झांसा देने के लिए गठबंधन तोड़ा है. सच्चाई यह है कि जिस समझौते के तहत बीजेपी-जेजपी ने सरकार बनाई थी उसी के तहत इन्होंने गठबंधन खत्म भी किया है. दोनों दल आज भी अंदरखाने एक ही हैं, लेकिन चुनाव में सत्ता विरोधी वोटों को बांटने के लिए अलग-अलग ड्रामा करेंगे. भूपेंद्र हुड्डा के इन बयानों के बाद ये सवाल अहम हो जाता है कि क्या सच में दोनों पार्टियां एक दूसरे से दूर हो चुकी हैं?