Haryana News: सरकारी दावे के बावजूद फरीदाबाद में बच्चे पढ़ने की उम्र में कचरे बीन रहे हैं. बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं या फिर कूड़ा कचरा चुनने में ही अपना दिन व्यतीत कर देते हैं. सूरज की पहली किरण के साथ ही ये बच्चे पीठ पर प्लास्टिक का बोरा लिए कबाड़ चुनने के लिए निकल पड़ते हैं.
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Haryana News: लाख सरकारी दावे के बावजूद फरीदाबाद में बच्चे पढ़ने की उम्र में कचरे बीन रहे हैं. सरकार बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित होने का दावा कर करती है, लेकिन फरीदाबाद में नगर निगम प्रशासन और इकोग्रीन नामक कंपनी की मेहरबानी से फरीदाबाद का नौनिहाल देश के प्रधानमंत्री और सड़क परिवहन मंत्री के सपनों के एक्सप्रेसवे के नीचे देश के इन बच्चों का सपना इस कूड़े के ढेर के नीचे दबता हुआ नजर आ रहा हैं.
सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया, ताकि गरीबों के बच्चों को भी बेहतर तालीम मिल सके, लेकिन यहां बच्चे कूड़े के ढेर पर अपना भविष्य तलाश रहे हैं. उनकी रोजी-रोटी इसी कचरे की ढेर पर टिकी हुई है. यानी कूड़े के ढेर में कबाड़ चुनकर ही वे अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं. कूड़े के ढेर में कबाड़ चुनने के चलते बच्चे गंभीर बीमारियों की चपेट में भी आ रहे हैं, लेकिन वह करें तो क्या करें.
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क्योंकि, उनके पास कोई दूसरा साधन नहीं है. कूड़े के बीच से लोहा, शीशा व प्लास्टिक की बोतलें, लकड़ी के सामान व कागज आदि चुनने वाले यह बच्चे सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हैं. जहां तक शिक्षा के अधिकार अधिनियम की बात है तो सरकारी आंकड़ों में सब कुछ दुरुस्त है. यानी ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं या फिर कूड़ा कचरा चुनने में ही अपना दिन व्यतीत कर देते हैं. सूरज की पहली किरण के साथ ही ये बच्चे पीठ पर प्लास्टिक का बोरा लिए कबाड़ चुनने के लिए निकल पड़ते हैं.
इन बच्चों के स्वास्थ्य सुरक्षा की कोई गारंटी लेने को तैयार नहीं है. इन नौनिहालों के प्रति सरकारी महकमा बिल्कुल उदासीन है. कबाड़ से चुने गए हैं सामान को लेकर, बच्चे कबाड़ी वालों के पास जाते हैं. कबाड़ी वाले इन्हें कुछ पैसे देकर उनका सामान खरीद लेते हैं. यह पैसा न्यूनतम मजदूरी के बराबर भी नहीं होता है. कभी झुंड में तो कभी अकेले, कंधे पर बोरा उठाए ये बच्चे की निगाह हमेशा कूड़े के ढेर पर होती है.
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घरों व अन्य स्थानों से निकालकर फेंके गए, जिस कूड़े की ओर कोई दुबारा देखना गंवारा नहीं करता, उसी कूड़े से इनका प्रेम देखते ही बनता है. ऐसा हो भी क्यों न, कूड़े में मिले टूटी प्लास्टिक व अन्य बिक जाने वाली चीजें ही इनके जीवन का आधार जो ठहरीं. सुबह से रात तक गर्मी, बरसात व ठंड को बेअसर बनाते ये बच्चे स्कूल का रास्ता भूल गए हैं. कूड़े के बीच से लोहा, सीसा, बोतल, लकड़ी, कागज आदि चुनने वाले ये बच्चे उपेक्षा के शिकार होते हैं.
कूड़े-कचरे के बीच से जीविका यापन के लिए कूड़ा बिनना इनकी नियति बन गई है. लगभग रोजाना इस बन रहे एक्सप्रेसवे सड़क का इस्तेमाल करने वाले आभास चंदेला कहते हैं कि यह कूड़े का पहाड़ सब देख रहे हैं. यहां से केवल बदबू नहीं आ रही है, यह बीमारी है जो पूरे वातावरण में घूम रही है. यहां छोटे-छोटे बच्चे कुछ ना कुछ कूड़ा बिन रहे हैं, जिसकी वजह से इनका बचपन बर्बाद हो रहा है. यहां गाय भी नजर आती.
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कूड़े का ढेर में जो पॉलीथिन और गंदगी खा रही है. यह जगह शहर के दिल के अंदर है. यह गडकरी और मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. क्या यहां के सांसद विधायक मंत्री यहां से नहीं निकलता होगा? क्या उन्होंने इन बच्चों को नहीं देखा कूड़ा बिनते हुए? कभी सोचा है कि बच्चों का भविष्य अंधकार में जा रहा है. साहिल मदान कहते हैं कि मैं रोजाना यहां से जाता हूं. अचानक आज गाड़ी खराब हो गई. बदबू के कारण मैं यहां खड़ा नहीं हो पा रहा हूं. हमारे यहां के मंत्री, विधायक सब कहते हैं कि हरियाणा फरीदाबाद को सबसे बड़ी सौगात दे रहे हैं.
दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे देकर इसकी चर्चा करते हैं हर कार्यक्रम में आप देख सकते हैं कि क्या सौगात यहां मिल रही है. आपने सुना होगा अरावली के पहाड़ होते थे पूर्वजों के जमाने में, आज वह अरावली के पहाड़ तो रहे नहीं आज हमें चारों तरफ कूड़े के पहाड़ दिख रहे हैं. हमारे प्राचीन पहाड़ खत्म हो गए और अब ये कूड़े के पहाड़ हैं. यहां कूड़ा बिन रहे बच्चों का भविष्य तो अंधकार में है.
चाइल्ड प्रोटक्शन यूनिट के सदस्य प्रवीण से जब यहां कूड़े के ढेर में कबाड़ बीन रहे बच्चों के विषय पर सवाल किया गया तो, प्रवीण कहते हैं कि यहां पर हमारी सीडब्ल्यूसी की जो टीम बनी हुई है वहां जाकर एक रेस्क्यू ऑपरेशन कर लेंगे और अगर बच्चे वहां पाए जाते हैं तो इन बच्चों का रेस्क्यू करके हम सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी) के सामने प्रोड्यूस करेंगे और अगर इनके आधार कार्ड नहीं बने हुए हैं, तो उनका आधार कार्ड बनवाएंगे.
अगर स्कूल नहीं जा पा रहे हैं तो इनका स्कूल में एडमिशन करवाएंगे. हमारा मुख्य काम है इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना. प्रवीण कहते हैं कि हमारे यहां हर महीने अलग-अलग रेस्क्यू करते रहते हैं और इस तरह के बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास करते हैं.
(इनपुट- अमित चौधरी)