Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati Death: देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए स्वरूपानंद ब्रिटिश शासन में दो बार जेल भी गए थे. इतना ही नहीं शंकराचार्य ने अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर दबाव भी बनाया था.
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नई दिल्ली : द्वारका पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार दोपहर मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में निधन हो गया. वह 98 वर्ष के थे. वह पिछले एक साल से अधिक समय से बीमार चल रहे थे. सोमवार शाम 5 बजे आश्रम में ही उन्हें समाधि दी जाएगी.
शिष्य दण्डी स्वामी सदानंद ने पीटीआई-भाषा को बताया, स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तपोस्थली परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर में दोपहर 3.30 बजे अंतिम सांस ली. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश में सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था.
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उनके बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था. नौ साल की उम्र में वह अपना घर छोड़कर धर्मयात्राएं करने लगे थे. इस दौरान वह काशी पहुंचे और वहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्रीस्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली.
1981 में मिली थी शंकराचार्य की उपाधि
1942 में जब ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा लगा तो वह भी देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वह दो बार जेल में रहे. स्वरूपानंद ने एक बार नौ माह की, जबकि दूसरी बार छह महीने की सजा काटी. अनुयायियों के मुताबिक स्वरूपानंद 1981 में शंकराचार्य बने.
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पूर्व कांग्रेस विधायक और जबलपुर की पूर्व महापौर कल्याणी पांडे के मुताबिक शंकराचार्य ने अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर दबाव बनाया था. स्वामी स्वरूपानंद का कहना था कि अयोध्या में राम मंदिर कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर की तर्ज पर होना चाहिए. अंकोरवाट कंबोडिया में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, जो करीब 163 हेक्टेयर में फैला हुआ है. उनके अनुयायियों ने बताया कि शंकराचार्य को उस समय भी हिरासत में लिया गया था, जब वह राम मंदिर निर्माण के लिए एक यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे.