World Book Fair : कौन सा व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता, सपनों की रोशनी में मिलेगा इसका सही जवाब
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World Book Fair : कौन सा व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता, सपनों की रोशनी में मिलेगा इसका सही जवाब

Sapno Ki Roshni : जो लोग सपने पूरे होने पर घमंड में चूर होकर खुद का नुकसान कर लेते हैं, जो सपनों के टूट जाने पर निराश हो जाते हैं. जो सफलता की  चोटी पर पहुंचकर बिलकुल अकेले पड़ जाते हैं और जो मैदान में उतरने से घबराते हैं, यह किताब उन लोगों को सही राह दिखाएगी.

कैलाश सत्यार्थी

नई दिल्ली: प्रगति मैदान में 10 से 18 फरवरी तक चलने वाले विश्व पुस्तक मेले (World Book Fair) में रविवार को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक ‘सपनों की रोशनी’ का विमोचन किया गया. इस दौरान प्रख्यात गीतकार और कवि आलोक श्रीवास्तव भी मौजूद रहे. कैलाश सत्यार्थी द्वारा 17 वर्ष की उम्र में लिखी गई डायरी पर आधारित इस पुस्तक के नौ अध्यायों में सफलता के नौ सूत्र दिए गए हैं.

सपने देखने का साहस पैदा करेगी किताब 
कार्यक्रम के दौरान कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि यह किताब 17 से लेकर 70 साल की उम्र तक के सपनों की खेती के अनुभवों और सीखों पर आधारित है. यानि यह हर उम्र के पाठकों के काम आ सकती है. यह किताब जो सपने देख सकते हैं और जिन्हें सपना देखने का मौका तक नहीं मिला, उन सभी के लिए है. 

उन्होंने कहा कि जो लोग सपने पूरे होने पर घमंड में चूर होकर खुद का नुकसान कर लेते हैं. जो सपनों के टूट जाने पर निराशा के अंधेरे में डूब जाते हैं. जो सभी को पीछे छोड़ सफलता की चोटी पर पहुंचकर बिलकुल अकेले पड़ जाते हैं और वो भी जो मैदान में उतरने से घबराते हैं, वो सभी इस किताब में लिखी बातों का फायदा उठा सकते हैं. 'सपनों की रोशनी'  में आशा और निराशा, स्पष्टता और असमंजस, सफलता और असफलता, सुख और दुख, आसानी और मुश्किलें, चिंताएं और मस्ती जैसे सारे अनुभव शामिल हैं.

नोबल विजेता ने युवाओं से आह्वान करते हुए कहा, खूब और बड़े सपने देखें. सभी के भीतर एक विराट शक्ति है, उस पर विश्वास कर अपने सपनों को पूरा करने के रास्ते पर बढ़ें. इस किताब को लिखने का उद्देश्य ही है कि लोग सपने देखने का साहस कर सकें, क्योंकि सपने देखने वाला व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता. कैलाश सत्यार्थी ने ये भी बताया कि वह आज 70 साल की उम्र में करुणा के वैश्वीकरण का सपना देख रहे हैं. 

जीवन के संघर्षों ने बनाया मजबूत 
वहीं कवि आलोक श्रीवास्तव ने किशोरावस्था के दौरान विदिशा में अस्पृश्यता‌ के खिलाफ कैलाश सत्यार्थी के संघर्षों पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि कैसे सफाईकर्मियों के हाथों बना खाना खाने के लिए लोगों को न्योता देने‌ की वजह से वे अपने ही घर में अस्पृश्य हो गए थे. इस एक घटना ने कैलाश‌ को कालांतर में कैलाश सत्यार्थी बनने में अहम भूमिका निभाई। यह किताब उन सपनों को साकार करने का दस्तावेज है. 

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