DNA ANALYSIS: कंधार प्लेन हाइजैक मामले में जनहित के सामने क्यों कमजोर पड़ गया राष्ट्रहित?
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DNA ANALYSIS: कंधार प्लेन हाइजैक मामले में जनहित के सामने क्यों कमजोर पड़ गया राष्ट्रहित?

वर्ष 1999 में 24 दिसंबर को Indian Airlines की Flight IC-814 को काठमांडू और दिल्ली के बीच हाइजैक कर लिया गया था. IC-814 के 189 यात्रियों और Crew Members की रिहाई के बदले, भारत को मसूद अज़हर सहित तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था.

DNA ANALYSIS: कंधार प्लेन हाइजैक मामले में जनहित के सामने क्यों कमजोर पड़ गया राष्ट्रहित?

नई दिल्ली: किसान आंदोलन में जनहित और राष्ट्रहित का विरोध चल रहा है, 21 वर्ष पहले हुए कंधार हाईजैक (Kandahar Hijack) के समय भी ऐसा ही विरोध दिखाई दिया था. शायद आप भी ये सोचते होंगे कि एक राष्ट्र के तौर पर भारत में महाशक्ति होने के गुण वर्षों से मौजूद हैं, इसके बाद भी हमें एक सुपरपावर बनने में इतना वक्त क्यों लग रहा है?  इस सवाल का जवाब ये है कि एक राष्ट्र के तौर पर हमने समय-समय पर गलतियां की और अपना ही नुकसान कर लिया. एक ऐसी ही कमज़ोरी हमने 21 वर्ष पहले कंधार (Kandahar) में दिखाई थी. 

उस वक्त की कमज़ोरी का खामियाज़ा आज भी भुगत रहा देश

वर्ष 1999 में 24 दिसंबर को Indian Airlines की Flight IC-814 को काठमांडू और दिल्ली के बीच हाइजैक कर लिया गया था. IC-814 के 189 यात्रियों और Crew Members की रिहाई के बदले, भारत को मसूद अज़हर (Masood Azhar) सहित तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था. उस समय जनता के दबाव, उनके गुस्से और आक्रोश के सामने भारत की तत्कालीन सरकार को झुकना पड़ा था और तब से लेकर आज तक भारत को एक देश के तौर पर उस कमज़ोरी का खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है.

उस समय किसी को राष्ट्र की परवाह नहीं थी. सबको IC-814 में फंसे अपने लोगों की फ़िक्र थी. विमान में फंसे लोगों की जान बचाने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही थी. हर रणनीति पर विचार किया जा रहा था. लेकिन लोगों का दबाव इतना ज़्यादा था और देश का माहौल ऐसा था कि राष्ट्र कमज़ोर पड़ गया.

देश की सुरक्षा से समझौता

उस समय बंधकों के परिवार बेचैन हो गए थे और वो सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे. कुछ बंधकों के रिश्तेदारों ने प्रधानमंत्री के निवास के बाहर भी प्रदर्शन किए. सबकी एक ही शिकायत थी कि सरकार बंधकों पर फ़ैसला नहीं ले रही है. सभी लोग एक ही फ़ैसला होते हुए देखना चाहते थे और वो था किसी भी कीमत पर उनके घर वालों की वापसी फिर भले ही देश की सुरक्षा से समझौता करना पड़े, आतंकवादियों को रिहा करना पड़े, कश्मीर छोड़ना पड़े और चाहे पाकिस्तान के आगे घुटने ही क्यों न टेकने पड़ें?

Zee News ने मसूद अज़हर को काफी करीब से ट्रैक किया

उस समय Zee News, जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अज़हर की एक-एक गतिविधि के बारे में देश को ख़बर दे रहा था. अफगानिस्तान के कंधार में उसकी रिहाई से लेकर पाकिस्तान पहुंचने तक Zee News ने मसूद अज़हर को काफी करीब से ट्रैक किया था और उस वक्त देश और पूरी दुनिया ने Zee News के माध्यम से ही इस हाईजैकिंग से जुड़े तथ्य अपने टीवी स्क्रीन पर देखे थे.

राष्ट्रहित की अनदेखी 

तब देश दोराहे पर था. एक तरफ़ लोगों की भावनाएं यानी जनहित और दूसरी तरफ़ राष्ट्र-हित था. मीडिया से लेकर विपक्षी नेताओं और आम लोगों ने भी केंद्र सरकार पर बहुत ज़्यादा दबाव बना दिया था. कुछ टीवी चैनलों ने भी दिन-रात प्रसारण करके इन प्रदर्शनों को प्रमुखता से दिखाया था. Zee News ने भी इस घटना की कवरेज की थी. एक न्यूज़ चैनल के तौर पर हमने अपना काम किया, अपनी भूमिका निभाई. लोगों की बातों और उनकी भावनाओं यानी जनहित को देश के सामने रखा था, हालांकि इस कोशिश में राष्ट्रहित की अनदेखी हो गई थी.

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सरकार चाह कर भी फ़ैसला नहीं ले पाई

आज हम भी इस मामले में एक भूल सुधार करना चाहते हैं. उस समय मीडिया से लेकर विपक्षी नेताओं और आम लोगों ने केंद्र सरकार पर बहुत ज़्यादा दबाव बना दिया था.तब Zee News ने भी सौ प्रतिशत सही भूमिका नहीं निभाई थी. देश की जन भावना IC-814 में फंसे लोगों को वापस लाने की थी और इस दबाव की वजह से सरकार चाह कर भी राष्ट्रहित में फ़ैसला नहीं ले पाई. हालांकि आज Zee News की पहचान राष्ट्रवादी मीडिया के तौर पर है और हम राष्ट्रहित के फ़ैसलों का समर्थन करते हैं.

Zee News देश का सबसे पुराना और पहला प्राइवेट न्यूज़ चैनल है. एक मीडिया चैनल के तौर पर जाने-अनजाने में हमसे ये गलती हुई थी और इस गलती को स्वीकार करके हम उसमें सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं.

आज अगर आप इस घटना पर विचार करें तो लगता है कि अगर देश और मीडिया ने मिलकर साथ दिया होता तो सरकार कड़ा फैसला भी ले सकती थी. यहां तक कि सरकार के राजनीतिक विरोधी भी दबाव बनाने वालों का ही साथ दे रहे थे. यानी सरकार को किसी पक्ष का साथ नहीं मिला.

मसूद अज़हर की रिहाई की Inside Story

आतंकवादी मसूद अज़हर को रिहा करना, हमारी सबसे बड़ी हार थी. लेकिन आपमें से बहुत सारे लोगों को उसकी रिहाई की Inside Story नहीं पता होगी. IC-814 की Hijacking के दौरान मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल, Intelligence Bureau में Special Director के पद पर तैनात थे. तब उन्हें Hostage Negotiation की ज़िम्मेदारी दी गई थी. हाइजैकिंग के लगभग 10 वर्षों के बाद साल 2009 में Zee News को दिए एक इंटरव्यू में अजित डोवल ने उस दौर के दबाव का भी ज़िक्र किया था और ये भी बताया कि इस मामले में उन्हें किस बात का सबसे ज़्यादा अफ़सोस था.

अगर आज का नया भारत होता तो शायद कंधार पर सर्जिकल स्ट्राइक कर देता, बालाकोट की तरह एयरस्ट्राइक कर देता, आतंकवादियों के सामने झुकता नहीं, उन्हें खत्म कर देता और अपने लोगों को बचाकर वापस ले आता. यानी आज के दौर हम राष्ट्रहित को जनता के मूड से ऊपर रखते क्योंकि, जब जनता का मूड राष्ट्रहित से जीत जाता है, तो भविष्य में इसका नुकसान उठाना पड़ता है.

आतंकवादियों को छोड़ना एक बड़ी ग़लती

IC-814 में फंसे 189 लोगों की जान बचाने के लिए आतंकवादी मसूद अज़हर को रिहा किया गया था. हालांकि उसके बाद से इस आतंकवादी ने भारत के कितने सैनिकों और आम लोगों की जान ली. इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.

मसूद अज़हर के साथ ही एक और आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख को भी रिहा किया गया था. अहमद शेख पाकिस्तानी मूल का ब्रिटिश नागरिक है. जिस पर 9/11 हमले की फंडिंग और अमेरिका के पत्रकार डैनियल पर्ल के अपहरण और हत्या का भी आरोप है. हालांकि कल 24 दिसंबर को पाकिस्तान की एक कोर्ट ने इस आतंकवादी को रिहा कर दिया है.

यानी इन आतंकवादियों को छोड़ना एक बड़ी ग़लती थी. अगर समय रहते इन आतंकवादियों को भारत में सज़ा मिल गई होती तो शायद उसके बाद की घटनाएं होती ही नहीं. पाकिस्तान की अदालत से आतंकवादियों को सज़ा दिए जाने की उम्मीद करना भी बेकार है, क्योंकि पाकिस्तान का पूरा सिस्टम आतंकवादियों की सुरक्षा करने और उन्हें भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों में भेजने का काम करता है.

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