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नई दिल्ली: आज हम सड़कों पर शोर वाली हिंसा का DNA टेस्ट करेंगे.अगर आपने अपनी गाड़ी में प्रेशर हॉर्न (Pressure Horn) लगाया है तो आज आपको ये ख़बर कान खोलकर सुननी चाहिए. कान खोलकर इसलिए, क्योंकि आपकी कार, बाइक या ट्रक में लगा हॉर्न सबसे पहले आपकी सुनने की शक्ति पर असर डालेगा क्योंकि, उस हॉर्न के संपर्क में सबसे ज्यादा आप खुद हैं.
दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) पर लगाम लगाने के लिए आज पहली बार गाड़ियों के चालान काटे गए हैं. ये चालान (challan) पहली बार क्यों काटे गए, इसकी वजह ये है कि दिल्ली पुलिस को हाल ही में साउंड लेवल मीटर (Sound Level Meter) मिले हैं. जिससे वो शोर का लेवल चेक करके उस हिसाब से चालान काट सकें. ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) का चालान कटने पर 1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है. इस मामले में 5 साल तक की सज़ा भी हो सकती है. हालांकि दिल्ली में अभी तक किसी ने इतना चालान दिया नहीं है और अभी इस पर कोर्ट में सुनवाई होनी बाकी है.
बिना जरूरत Horn बजाने की आदत को असभ्यता माना जाता है. लेकिन भारत में लोग ऐसे हॉर्न बड़ी शान से लगवाते हैं. जितना तेज हॉर्न, उतनी बड़ी शान. इसी सिद्धांत पर चलते हुए लोग तेज आवाज वाले, धमाके जैसी आवाज करने वाले कानफोड़ू हॉर्न की डिमांड करते हैं. यहां तक कि टू व्हीलर में लोग कार और ट्रक में लगने वाले बड़े हॉर्न लगवा लेते हैं और वो इसे असभ्यता भी नहीं मानते. ऐसे शोर वाले हॉर्न को लगाने वाले लोग इसे स्टाइल स्टेटमेंट, रौब और रसूख की निशानी मानते हैं.
भारत की राजधानी दिल्ली ध्वनि प्रदूषण के मामले में देश में नंबर एक पर और दुनिया में दूसरे नंबर पर है.
कल 24 दिसंबर को दिल्ली में पहली बार ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों के चालान काटे गए. सोचिए, ये कितने अफ़सोस की बात है कि हॉर्न जिसे असभ्यता की निशानी माना जाता है. उससे रोकने के लिए पुलिस को चालान का सहारा लेना पड़ रहा है. ये चालान केंद्र सरकार के Noise Pollution Regulation Control Rules 2020 के तहत से काटे जा रहे हैं. अगर आपकी गाड़ी में भी प्रेशर हॉर्न लगा है तो आपको ये जानकारी ध्यान से नोट करनी चाहिए.
-रिहायशी इलाकों में दिन में 55 और रात में 45 डेसीबल से ज़्यादा की आवाज़ शोर के दायरे में आएगी.
-औद्योगिक क्षेत्र में दिन के समय 75 और रात में 70 डेसीबल से ज्यादा की आवाज को ध्वनि प्रदूषण माना जाएगा.
-साइलेंस ज़ोन में दिन में 50 और रात में 40 डेसीबल से ज्यादा आवाज ध्वनि प्रदूषण कहलाएगी और इसके लिए चालान काटा जाएगा.
-सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक दिन के मानक और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक, रात के मानक लागू रहेंगे.
Environment Protection Act के तहत ध्वनि प्रदूषण फैलाने पर चालान काटने का प्रावधान किया गया है. ये चालान केवल गाड़ियों का ही नहीं, तेज़ आवाज़ में DJ और लाउड स्पीकर बजाने पर भी काटे जा सकते हैं. हालांकि उसके लिए नियम थोड़े से अलग हैं. धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन में रात 10 बजे से रात 12 बजे तक अगर आप लाउड स्पीकर या तेज म्यूजिक वाला DJ बजाना चाहते हैं तो इसके लिए अनुमति लेनी होगी. नियम के मुताबिक ऐसे दिनों की संख्या एक वर्ष में 15 से ज़्यादा नहीं हो सकती. हालांकि रात 12 बजे के बाद, सुबह 6 बजे तक ऐसी कोई परमिशन नहीं मिल सकती.
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शोर एक तरह की वैचारिक हिंसा है, जिसे चालान से नहीं, सदबुद्धि से खुद-ब-खुद ही रोका जाना चाहिए. लेकिन फिर भी बहुत से लोगों को ये बात समझ नहीं आती. इसलिए ऐसे लोगों के लिए आज हमने प्रेशर हॉर्न का एक कान खोलने वाला DNA टेस्ट किया है. ये ख़बर आपके कानों के साथ-साथ मन के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद जरूरी है.
Blow Horn ..Horn Ok Pls... तेज़ हॉर्न बजाने का निमंत्रण देते इन संदेशों की ही मेहरबानी है कि हमारे देश में हॉर्न को शान की आवाज़ समझा जाता है. लेकिन आज इसी शान पर दिल्ली में जुर्माने और चालान वाला चाबुक चल गया. अपनी शानदार गाड़ी में जानदार हॉर्न बजाते जा रहे लोगों को दिल्ली पुलिस ने चालान की रसीद थमा दी और नसीहत वाली डोज़ भी.
दरअसल, दिल्ली पुलिस को ध्वनि प्रदूषण चेक करने के लिए इसी सप्ताह साउंड लेवल मीटर मिले हैं. इस यंत्र का प्रयोग अब तय मानकों से ज्यादा शोर मचाने वालों को खामोश करने के लिए किया जा रहा है. 1 लाख का भारी-भरकम चालान झेलिए या हॉर्न बजाने की आदत से खामोशी से तौबा कर लीजिए, फैसला आपका है.
हॉर्न बजाओगे तभी साइड मिलेगी वाली सोच से अब बाहर आने की जरूरत है. हाल ही में की गई एक स्टडी के मुताबिक दिल्ली के लोगों की सुनने की क्षमता कम होती जा रही है. दिल्ली में रहने वाले हर 4 में से 1 व्यक्ति के कान अपनी उम्र के मुकाबले 20 वर्ष बूढ़े हो चुके हैं. लेकिन अपने कानों में रुई डालकर भारत में हॉर्न लगवाने के लिए लोग ऐसे ऐसे विकल्प तलाशते हैं जैसे किसी Music Concert में हिस्सा लेने जा रहे हों.
ऐसी दलीलों को सुनकर लगने लगता है कि चाहे चालान कट जाए, चाहे कान फट जाएं, लेकिन शौक बड़ी चीज़ है.
WHO के मुताबिक रात में वाहनों के हॉर्न रात में 45 और दिन में 55 डेसीबल तक ही होने चाहिए. लेकिन भारत में नियमों के पालन की ढिलाई का आलम ये है कि कई वाहनों में लगे हार्न 60 से 100 डेसीबल तक के होते हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक इंसान के कान 60 डेसीबल तक की ध्वनि को झेल सकते हैं. अगर आप हफ्ते में 5 दिन 80 डेसीबल से ज्यादा का शोर 6 से 8 घंटे तक झेल रहे हैं तो आप बहरे भी हो सकते हैं. इसके अलावा आप मानसिक रोगों के शिकार हो सकते हैं. आपकी कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है.
पिछले वर्ष मोटर व्हीकल एक्ट में जोड़े गए नए प्रावधानों के हिसाब से किसी भी गाड़ी में अलग से प्रेशर हॉर्न लगवाना गैर कानूनी है. सबसे ज्यादा वाहनों वाले शहर दिल्ली में तो पुलिस ने शोर को खामोश करने के लिए चालान वाला अभियान शुरू कर दिया है. लेकिन हमें लगता है अपने लिए और दूसरों के लिए शांति के अधिकार को पाने का काम खुद पर अनुशासन लागू करके किया जाए तो नतीजे भी शांति वाले हो सकते हैं.
भारत की राजधानी में पहली बार ध्वनि प्रदूषण के मामले में चालान काटा गया है लेकिन विदेशों में इसे लेकर नियम बहुत पहले ही बना लिए गए थे.
वर्ष 1930 से लंदन और पेरिस में रात में हॉर्न बजाना मना है. 1936 में जर्मनी में Honking के लिए नियम बना दिए गए थे.
दक्षिण अमेरिका के देश पेरू में 2009 में बिना जरूरत हॉर्न बजाने के कड़े नियम बना दिए गए थे. नियमों का उल्लंघन करने पर वहां लाइसेंस रद्द करने के अलावा कार ज़ब्त कर ली जाती है. लेकिन भारत में अब जाकर ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत हुई है.
आज से 123 वर्ष पहले 1897 में भारत की सड़कों पर पहली बार कोई कार दौड़ी थी. इसके बाद 1 अक्टूबर 1908 को फोर्ड मॉडेल टी (Ford Model T) के नाम से पहली ऐसी कार बाज़ार में आयी थी जिसे आम लोग खरीद सकते थे.
इसके दो साल बाद हॉर्न की ज़रूरत महसूस होने लगी. 1910 में इंग्लैंड के ओलिवर लुकास ने दुनिया का पहला इलेक्ट्रानिक हॉर्न बनाया था जिसका मकसद कार के आगे पैदल चलने वाले लोगों और दूसरे वाहन चालकों को सतर्क करना था ताकि टक्कर और दुर्घटना न हो.
अमेरिका के मशहूर आविष्कारक Thomas Alva Edison के Right-Hand कहे जाने वाले Electrical Engineer, Miller Hutchison (मिलर हच्चीसन) ने आज से करीब 112 वर्ष पहले Electro-Mechanical Horn का पेटेंट कराया था. उन्होंने हॉर्न का आविष्कार जरूरत के लिए किया था. लेकिन आज वही हॉर्न, ध्वनि हिंसा का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है.