DNA ANALYSIS: क्या वाकई आज के समय में कोई भारत को बंद करवा सकता है?
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DNA ANALYSIS: क्या वाकई आज के समय में कोई भारत को बंद करवा सकता है?

देश के कुछ किसान संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया था. कहने को यह भारत बंद था, लेकिन दिन भर बंद की जो तस्वीरें आईं उनमें ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसपास के इलाकों से थीं. राजनीतिक दलों से जुड़े किसान संगठन ही बंद में अधिक सक्रिय दिखे. 

DNA ANALYSIS: क्या वाकई आज के समय में कोई भारत को बंद करवा सकता है?

नई दिल्ली: कल 25​ सितंबर को देश के कुछ किसान संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया था. कहने को यह भारत बंद था, लेकिन दिन भर बंद की जो तस्वीरें आईं उनमें ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसपास के इलाकों से थीं. राजनीतिक दलों से जुड़े किसान संगठन ही बंद में अधिक सक्रिय दिखे. इस भारत बंद को देखकर मन में यह सवाल पैदा होता है कि क्या वाकई आज के जमाने में कोई भारत को बंद करवा सकता है? जिस भारत को कोरोना वायरस बंद नहीं करवा पाया, उसे क्या कुछ राजनीतिक संगठन बंद करा सकते हैं? किसी भी लोकतंत्र में बंद विरोध का एक तरीका है. 80 और 90 के दशक तक ऐसे भारत बंद कामयाब हुआ करते थे. क्योंकि उनके पीछे कोई बड़ा मुद्दा होता था, जिसके कारण बड़ी संख्या में आम जनता भी बंद का समर्थन करती थी. लेकिन आज समय बदल चुका है. बंद के इस कॉन्सेप्ट को आज का भारत नकार चुका है. यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में हुए ज्यादातर भारत बंद सफल नहीं हो पाए. वैसे भी आज के डिजिटल युग में भारत बंद कराना तो लगभग असंभव हो चुका है. क्योंकि अगर बाजार बंद भी हो जाएं, तब भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर शॉपिंग चलती रहती है. ऑफिस बंद होते हैं तो वर्क फ्रॉम होम चलता रहता है.

विरोध के नकारात्मक तरीके
हड़ताल, बंद और चक्काजाम, ये विरोध के नकारात्मक तरीके हैं. लोकतंत्र में विरोध का अधिकार जरूरी है, लेकिन इसका तरीका पॉजिटिव होना चाहिए. अहिंसा का महात्मा गांधी का विचार सकारात्मक विरोध का सबसे बड़ा उदाहरण है. जापान में जब हड़ताल होती है तो उत्पादन और बढ़ा देते हैं. जिससे जरूरत से ज्यादा सामान जमा होने लगता है.

केंद्र सरकार ने कृषि के बारे में जो 3 विधेयक पास कराए हैं, उन्हें लेकर किसानों के बीच कुछ संदेह हो सकते हैं. लेकिन यह बात भी सही है कि देश में कृषि का मौजूदा सिस्टम ठीक नहीं चल रहा है. किसानों की आमदनी बढ़ी है, लेकिन कृषि की लागत उससे ज्यादा तेज बढ़ रही है. कोई व्यापारी अपना सामान देश में जहां चाहे वहां बेच सकता है, लेकिन किसान ऐसा नहीं कर सकता, तो इस सिस्टम में बदलाव का तरीका क्या है? क्या किसानों के नाम पर भारत बंद कराने वालों को इस समस्या के हल के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं बताना चाहिए?

जरूरी सेवाओं में रुकावट
भारत बंद के इस प्रदर्शन में ऐसे कई लोग थे जिन्हें यही नहीं पता था कि वो किस बात का विरोध करने आए हैं. कई जगह प्रदर्शनों के कारण जरूरी सेवाओं में भी रुकावट आई.

-अंबाला में चक्काजाम के कारण लद्दाख जा रहा सैनिकों का काफिला फंसा रहा. किसान संगठनों ने यहां दिल्ली-अमृतसर हाइवे को बंद कर दिया. हमें पूरा विश्वास है कि चक्काजाम करने वाले अगर असली किसान होते तो सेना की गाड़ियों को कभी नहीं रोकते.

-यूपी के पीलीभीत में किसानों ने नेशनल हाइवे-730 पर धरना दिया. इसके कारण यहां दिन भर जाम लगा रहा. यहां पर मरीजों को लेकर जा रही एंबुलेंस को भी घंटों फंसी रही.

-बेंगलुरु में कृषि बिल के विरोध में प्रदर्शन की घोषणा की गई थी. लेकिन आयोजकों ने जो तख्तियां तैयार कराई थीं उसमें क्लाइमेट चेंज की बातें लिखी थीं. काफी देर तक इंतजार के बाद भी प्रदर्शन में 10-20 लोग ही पहुंचे. जो आए वो भी किसान नहीं थे और उन्हें भी पता नहीं था कि किस बात का विरोध करने आए है?

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-उत्तर प्रदेश के बलिया में समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कृषि बिल के विरोध में जिलाधिकारी के कार्यालय पर प्रदर्शन किया. लेकिन जब हमने उनसे पूछा कि कृषि बिल में ऐसा क्या है जिससे किसानों को नुकसान होगा? तो ये उन्हें खुद नहीं पता था.

-हरियाणा के कैथल में विरोध मार्च करने आए कई लोगों से हमने जानने की कोशिश की कि वो किस बात का विरोध कर रहे हैं. ज्यादातर लोगों को विरोध का मुद्दा पता नहीं था.

-दिल्ली से लगे नोएडा बॉर्डर पर किसान संगठनों ने चक्का जाम किया. यहां भी जो लोग विरोध करने आए थे, उनमें से कई को पता भी नहीं था कि विरोध किस बात का है.

-यूपी के रामपुर में कल 25 सितंबर को दिन में किसानों के प्रदर्शन की घोषणा की गई थी. प्रदर्शन में किसान तो नहीं आए, कुछ राजनीतिक दलों के लोग ही पहुंचे. शुक्रवार का दिन था तो उन्होंने भी हाइवे पर नमाज पढ़ी और चले गए.

गुजरात के रमेश भाई रूपारेलिया से सीखिए
एक तरफ किसानों के नाम पर ये राजनीति है और दूसरी तरफ असली किसान, जिन्हें इस तरह के प्रदर्शनों के लिए शायद फुरसत ही नहीं है. हमारे देश में जब भी किसानों की बात होती है तो एक गरीब आदमी की कल्पना की जाती है. लेकिन कई किसान ऐसे भी हैं जो तमाम समस्याओं के बावजूद अपनी खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

गुजरात के राजकोट में रहने वाले रमेश भाई रूपारेलिया ने सिर्फ सातवीं क्लास तक पढ़ाई की है. लेकिन उन्होंने ऑर्गेनिक खेती और डेयरी का कारोबार शुरू किया. आज वो दुनिया भर के 100 से ज्यादा देशों में अपना सामान बेचते हैं. रमेश भाई ने 14 साल पहले गोबर और गोमूत्र की सहायता से खेती शुरू की थी. जब स्मार्टफोन आया तो उन्होंने अपना ऐप बनवा लिया. आज इसी ऐप पर लोग उन्हें ऑर्डर करते हैं और वो सीधे अपना सामान खरीदार तक पहुंचा देते हैं. रमेश भाई को कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं. आज जब राजनीतिक दलों के चक्कर में फंस कर कुछ किसान धरने-प्रदर्शनों में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, तभी रमेश भाई जैसे कई किसान अपनी सूझबूझ से एक मिसाल बना रहे हैं.

किसान होने की एक्टिंग?
हमारे देश में कई तरह के किसान पाए जाते हैं. एक वो हैं जो असली किसान हैं और दूसरे वो हैं जो किसान होने की एक्टिंग करते हैं. 70 साल से लाल किले से किसी भी प्रधानमंत्री का भाषण बिना किसानों की बात के पूरा नहीं होता. लेकिन किसानों की बात कभी नारों से आगे नहीं बढ़ पाई.

- वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 52 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए हैं.

- इन 52 प्रतिशत किसानों की मेहनत के बाद भी GDP में कृषि का योगदान सिर्फ लगभग 17 प्रतिशत है.

- हमारे देश की संसद में 38 प्रतिशत सांसद ऐसे हैं जो खुद को किसान बताते हैं. यानी हर 3 में से 1 सांसद किसान है.

- खुद को किसान बताने वाले चौधरी चरण सिंह और एचडी देवेगौड़ा देश के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं.

- कई राजनीतिक दल हैं जो खास तौर पर किसानों की ही राजनीति करते हैं- इनमें शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, बादल परिवार की अकाली दल, मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और अजित सिंह की लोकदल प्रमुख हैं.

हमारे फिल्मी किसान
जो हाल राजनीति के किसानों का है, कुछ वैसा ही हाल हमारे फिल्मी किसानों का भी है. इन फिल्मी किसानों के लिए खेती, अपना फायदा निकालने का माध्यम है.

- एक्टिंग वाले किसानों में सबसे नया नाम सलमान खान का है. इसी साल जुलाई में वो मुंबई के पास पनवेल में अपने फार्म हाउस पर धान रोपते और ट्रैक्टर चलाते नजर आए थे. ये उनका पब्लिसिटी स्टंट था क्योंकि लॉकडाउन के कारण फिल्मों की शूटिंग बंद थी.

- अमिताभ बच्चन भी खेती की जमीन खरीदने के कारण कई बार खबरों में रह चुके हैं. कुछ साल पहले ही उन्होंने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में जमीन खरीदी थी. उसके लिए उन्होंने खुद को किसान घोषित किया था, क्योंकि वो जमीन ग्राम सभा की थी. बाद में विवाद हुआ तो उन्होंने जमीन लौटा दी थी.

जावेद अख्तर ने किसानों पर किया ये ट्वीट
किसानों के नाम का फायदा उठाने में कोई पीछे नहीं रहता. हमने आपको करण जौहर के घर 2019 में हुई एक पार्टी का वीडियो दिखाया था. उस वीडियो में गीतकार जावेद अख्तर की बेटी जोया अख्तर भी दिखाई दे रही हैं. इस वीडियो की भी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी NCB जांच कर रहा है. अपनी बेटी का बचाव करने के लिए भी जावेद अख्तर ने किसानों के नाम का ही इस्तेमाल किया. जावेद अख्तर ने अपने ट्वीट में किसानों की बात की. 

उन्होनें लिखा, अगर करण जौहर ने अपनी पार्टी में कुछ किसानों को भी बुलाया होता तो टेलीविजन चैनलों को आसानी होती. तब उन्हें किसान आंदोलन और करण की पार्टी में से किसी एक को नहीं चुनना पड़ता. लगता है करण जौहर की पार्टी हमारे चैनलों की दूसरी सबसे पसंदीदा पार्टी थी.

शायद जावेद अख्तर चाहते हैं कि किसानों के भारत बंद की वजह करण जौहर की ड्रग्स पार्टी को मीडिया न दिखाए. लेकिन हम किसानों की समस्या से जुड़ी खबरें भी दिखाते हैं और बॉलीवुड की ड्रग्स पार्टियों की भी पोल खोलते हैं.

किसानों के नाम पर नकली भारत बंद के बजाय आज विरोध के पॉजिटिव और प्रोग्रेसिव तरीकों की जरूरत है. ऐसा ही एक तरीका ब्रिटेन में रहने वाली एक लड़की ने अपनाया है. 18 साल की इस लड़की का नाम Mya-Rose Craig (मेरोज़ क्रेग) है. उसने आर्कटिक महासागर की बर्फ में खड़े होकर एक प्लेकार्ड दिखाया, जिसमें लिखा था- Youth Strike on Climate..

देश के कई नायकों और विचारकों के बारे में इतिहासकारों ने हमेशा पक्षपात किया
देश के कई नायकों और विचारकों के बारे में इतिहासकारों ने हमेशा पक्षपात किया है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे ही एक राजनीतिक नायक रहे हैं. आजादी के बाद से सिर्फ कुछ चिंतक ही ऐसे थे, जिन्होंने पश्चिमी विचारधारा की नकल नहीं की और भारतीय परंपरा को अपनी राजनीतिक सोच बनाई और ये भारतीय परंपरा है, वसुधैव कुटुम्बकम यानी सबको साथ लेकर चलने की परंपरा.

 दीनदयाल उपाध्याय ने इसी सिद्धांत को अपनी सोच में सम्मिलित किया. उपाध्याय को 2 प्रमुख राजनीतिक सिद्धांतों के लिए जाना जाता है.

- पहला एकात्म मानववाद, ये विचारधारा उन्होंने साम्यवाद, समाजवाद और पूंजीवाद से अलग हटकर तैयार की थी. इसमें व्यक्ति को केंद्र में रखकर विकास की कल्पना की जाती है.

- दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय का राजनीतिक सिद्धांत भी बनाया था. इसके अनुसार समाज के सबसे गरीब और आखिरी व्यक्ति के कल्याण को ध्यान में रखते हुए सरकारी योजनाएं तैयार की जानी चाहिए.

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