21 नवंबर को केरल सरकार (Kerala Government) एक अध्यादेश लेकर आई जिसमें सोशल मीडिया (Social Media) पर विचारों की अभिव्यक्ति पर लगाम लगाने के नियम थे.
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नई दिल्ली: आज हम भारत के राज्य केरल (Kerala) की बात करेंगे जिसे हमारे देश का लिबरल गैंग सबसे प्रिय प्रदेश मानता है और बात बात पर केरल मॉडल (Kerala Model) की तारीफ करता है. देश में शिक्षा की बात हो या स्वास्थ्य की, हमारे देश के लिबरल्स और डिज़ाइनर पत्रकारों को केरल मॉडल सबसे अच्छा लगता है. कोरोना (Coronavirus) के खिलाफ लड़ाई पर यदि बात होने लगे तब तो ये गैंग केरल मॉडल की तारीफ करते नहीं थकता है.
ये लिबरल गैंग केरल में सहनशीलता के भी बड़े बड़े दावे करता है लेकिन सच क्या है ये हम आपको बताएंगे.
21 नवंबर को केरल सरकार एक अध्यादेश लेकर आई जिसमें सोशल मीडिया पर विचारों की अभिव्यक्ति पर लगाम लगाने के नियम थे. इसके मुताबिक, केरल पुलिस एक्ट में सेक्शन 118- A जोड़ा गया जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर अपमानजनक और बदनाम करने वाली पोस्ट लिखने और शेयर करने पर सजा का प्रावधान किया गया था. इसमें 5 वर्ष की जेल और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा रखी गई.
सरकार की नीयत में कोई बदलाव नहीं
बात बात में आजादी मांगने वालों की इस तानाशाही का विरोध हुआ. वामपंथी सरकार ने कान को घुमा कर पकड़ लिया. अध्यादेश वापस ले लिया. पर मुख्यमंत्री पिनरई विजयन (Pinarayi Vijayan) ने कहा है कि अब इस पर सभी दलों से चर्चा कर विधान सभा में कानून बनाएंगे. मतलब केरल सरकार की नीयत में कोई बदलाव नहीं हुआ है, कुछ समय के लिए भले ही ये आजादी विरोधी कदम रुक गया है लेकिन भविष्य में अभिव्यक्ति की आज़ादी को खत्म करने वाला कानून जरूर आएगा.
केरल विधानसभा में CPM के रूलिंग गठबंधन एलडीएफ यानी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) का पूर्ण बहुमत है, वो जब चाहे इसे विधान सभा के जरिए कानून की शक्ल दे सकते हैं.
केरल सरकार की चीन जैसी सोच
ये अध्यादेश लाकर केरल सरकार ने अपनी उस सोच को भी सार्वजनिक कर दिया है जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सरकार से मेल खाती है. चीन में कोई भी नागरिक सोशल मीडिया में सरकार के खिलाफ कुछ लिख या बोल नहीं सकता है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के खिलाफ लिबरल गैंग का कोई ट्वीट नहीं आया और इस अध्यादेश के खिलाफ इन्होंने कोई मार्च भी नहीं निकाला.
केरल सरकार के इस अध्यादेश पर लिबरल गैंग चुप क्यों?
बीते कुछ वर्ष से आप देखते आए हैं कि किस तरह ये गैंग कभी अवॉर्ड वापसी शुरू कर देता है, कभी खुद को असहिष्णुता का शिकार बताने लगता है, कभी उसे देश में डर लगने लगता है, लेकिन केरल सरकार के इस अध्यादेश पर लिबरल गैंग बिल्कुल चुप रहा. इनकी खामोशी से आप समझ सकते हैं कि ये लोग फ्रीडम ऑफ स्पीच और सहनशीलता पर बातें जरूर करते हैं लेकिन असल में सबसे बड़े असहनशील यही लोग हैं. इनका गुस्सा और अवॉर्ड वापसी की बातें बहुत सेलेक्टिव होती हैं.
इस अध्यादेश पर केरल सरकार ने भले वापस ले लिया है लेकिन भविष्य में अब वो दिन दूर नहीं जब राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी का पन्ना लेकर आएंगी. इन घोषणा पत्रों में ये भी लिखा जा सकता है कि यदि आप हमारी सरकार बनाएंगे तब हम इतने ट्वीट करने की इजाजत देंगे. हमारी सरकार बनने पर आप फेसबुक में इतने पोस्ट लिख सकेंगे.
अभिव्यक्ति की आज़ादी की एक लक्ष्मण रेखा होना जरूरी
सोशल मीडिया में आवाज को दबाने वाले इस फैसले से केरल सरकार की नीयत का पता तो चल गया. लेकिन हमारा मानना है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की एक लक्ष्मण रेखा होना जरूरी है. आप जब सोशल मीडिया में कुछ लिखते या बोलते हैं तब अपने देश के खिलाफ कुछ न लिखें और न ही कुछ बोलें. लेकिन इस अध्यादेश की भाषा देखकर यही लगता है कि केरल सरकार चाहती है कि उसके काम की आलोचना न की जाए और उसकी नीतियों को कसौटी पर न कसा जाए.