अभी ओलंपिक खेलों (Tokyo Olympics 2021 ) को शुरू हुए सिर्फ पांच दिन हुए हैं. इसी बीच खराब मानसिक स्वास्थ्य ने दुनिया की सबसे महान Gymnast को ओलंपिक से बाहर कर दिया है.
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नई दिल्ली: अभी ओलंपिक खेलों (Tokyo Olympics 2021 ) को शुरू हुए सिर्फ पांच दिन हुए हैं. लेकिन इन खेलों को इसका सबसे बड़ा विजेता मिल गया है और वो विजेता है- मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health). मानसिक स्वास्थ्य ने दुनिया की सबसे महान Gymnast को Knock Out कर दिया है. उस मुद्दे को ओलंपिक्स के Podium तक पहुंचा दिया है. जिस पर हम कभी ठीक से बात भी नहीं करते.
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को Olympics के मंच तक पहुंचाने का श्रेय अमेरिका की खिलाड़ी Simone Biles (सिमोन बाइल्स ) को दिया जा रहा है. Simone Biles ने अपनी खराब मानसिक स्थिति की वजह से Olympic खेलों से अपना नाम वापस ले लिया है.
24 साल की ये खिलाड़ी Gymnastics में अपने देश के लिए चार बार Olympic गोल्ड मेडल जीत चुकी है. इतना ही नहीं Simone को इस खेल की Greatest of All Time, यानी सर्वकालिक महान खिलाड़ी माना जाता है.
लेकिन मंगलवार को Gymnastics के Team Final Event के दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया. इस दौरान Simone ने एक छलांग लगाई. लेकिन वो छलांग ठीक ढंग से नहीं लगी और Land करते समय वो एक Trainer से टकरा गईं.
छलांग ठीक से ना लगने की वजह से Simon निराश हो गईं और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे. इसके बाद उन्होंने खुद को संभाला और वो अपने डॉक्टरों के साथ वहां से चली गईं.
कुछ मिनटों के बाद जब वो वापस लौटकर आईं तो उनके एक पैर पर पट्टी बंधी हुई थी. सबको लगा कि ये एक मामूली सी चोट है और Simon कुछ ही देर में Final Match में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो जाएंगी.
लेकिन किसी को नहीं पता था कि असली चोट Simon के पैर पर नहीं बल्कि मन पर लगी है क्योंकि वापस लौटने तक वो इस मैच में हिस्सा ना लेने का मन बना चुकी थीं. इसके बाद अमेरिका की Gymnastics Team बिना Simon के ही मुकाबले में उतरी. हालांकि इस दौरान Simon अपनी टीम का हौसला बढ़ाने के लिए Floor पर ही खड़ी रहीं.
Simon के इस मैच में ना खेलने का नतीजा ये हुआ कि अमेरिका की टीम को Russia के हाथों ये Gold Medal गंवाना पड़ा.
इस मैच के बाद Simon Biles ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और पूरी दुनिया को बताया कि उन्होंने ये फैसला अपने मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) की वजह से लिया है. Simone ओलंपिक्स और विश्व कप में 30 बार World Champion रही हैं. लेकिन उन्होंने अपने मानसिक स्वास्थ्य को अपने Medal से ऊपर रखा और ये मुश्किल भरा फैसला लिया .
मैच के बाद उन्होंने जो कहा उसके बारे में हर उस व्यक्ति को पता होना चाहिए. जो खुद को अपनी और दूसरों की उम्मीदों के तले दबा हुआ महसूस करता है. Simone Biles ने कहा कि उनका खुद पर से विश्वास उठ गया है. वो खुश नहीं हैं और वो जो कर रही हैं उसमें उन्हें मज़ा नहीं आ रहा.
आप अगर इन तीन वाक्यों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि आप और आपके आस पास के ज्यादातर लोग इस बात की परवाह ही नहीं करते कि जो काम वो कर रहे हैं, उसे लेकर उनमें कितना आत्म विश्वास है? जो वो कर रहे हैं उससे वो खुश भी हैं या नहीं. उन्हें उसमें आनंद आ रहा है या नहीं ?
लोग सिर्फ दूसरों की उम्मीदों को ईंधन बनाकर खुद को जलाते रहते हैं और एक दिन पूरी तरह खर्च हो जाते हैं. इसकी कीमत सिर्फ और सिर्फ आपका मन चुकाता है. इसलिए आगे बढ़ने से पहले आपको मानसिक स्वास्थ्य पर Simon Biles की बातें सुननी चाहिए.
हालांकि Simon Biles अभी पूरी तरह से Olympics से बाहर नहीं हुई हैं. अब उनके डॉक्टर हर हफ्ते उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की जांच करेंगे और अगर सब ठीक रहा तो हो सकता है कि वो बाकी के बचे हुए कुछ मुकाबलों में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो जाएं.
लेकिन फिलहाल Simon Biles के इस फैसले की अमेरिका समेत पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं. जो कह रहे हैं कि इतनी महान खिलाड़ी मन से इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती है? लेकिन ऐसा कहने वाले शायद Simon Biles के जीवन के बारे में नहीं जानते.
Simon Biles जब छोटी थीं तो उनका डॉक्टर ही कई वर्षों तक उनका शोषण करता रहा. जब उन्होंने Gymnastics की World Championship जीतीं तब उन्हें किडनी में पथरी की शिकायत थी. इस बार Olympics का आयोजन बार बार टलने की वजह से उन्हें कई महीनों तक अतिरिक्त अभ्यास करना पड़ा.
कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि कई बार Gymnastics के Judge उन्हें Numbers देते हुए दुविधा में पड़ जाते हैं, क्योंकि उनका खेल समय से आगे का है. Simon Biles अपने खेल के प्रति 100 प्रतिशत समर्पित होते हुए भी Media को समय देती हैं. पहले से तय विज्ञापनों की शूटिंग करती हैं और अपने रिश्तों को भी संभालती हैं .
अब आप सोचिए ये सब मज़बूती नहीं तो और क्या है. लेकिन अब जब Simon Biles ने इतना बड़ा फैसला लिया है तो ज़ाहिर है कि उनके मन में कुछ तो ऐसा चल रहा होगा, जिसने उन्हें तोड़कर रख दिया है. शायद उनका मन निराशा वाले विचारों की दीवारें लांघने की कोशिश करते करते थक गया है. इसीलिए उन्होंने हर बार की तरह चार कदम आगे बढ़ने की बजाय इस बार दो कदम पीछे हटने का फैसला किया है.
Simon Biles का एक पुराना Video है. जिसमें वे बताती हैं कि कैसे उन्हें लगता है कि वो एक भावुक इंसान नहीं हैं और उन्हें ऐसा उनके खेल ने बनाया है. Simon का ये Video देखकर आप समझ जाएंगे जब आपका काम आपके व्यक्तित्व और मन पर हावी हो जाता है तो इसका नतीजा क्या होता है.
अब पूरी दुनिया में Simon के इस फैसले की तारीफ हो रही है. बड़े बड़े खिलाड़ियों ने भी उनका हौसला बढ़ाया है और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने भी Tweet करके कहा है कि पूरे देश को उन पर गर्व है.
भारत में अगर कोई खिलाड़ी ऐसा करने की हिम्मत दिखाएगा तो शायद लोग उसका साथ देने की बजाय उसकी आलोचना करने लगेंगे. उदाहरण के लिए तीन दिन पहले जब भारत की 19 साल की Shooter मनु भाकर 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट के Final के लिए Qualify नहीं कर पाईं तो उनकी बहुत आलोचना हुई. जबकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी क्योंकि Qualifying Event के दौरान उनकी पिस्टल में खराबी आ गई थी.
मनु भाकर Olympics में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ियों मे से एक है. लेकिन आलोचना करने वालों ने ना तो उनकी उम्र की परवाह की और ना ही उनकी उपलब्धियों की. आपको ये जानकर गुस्सा तो आएगा लेकिन भारत की Shooting Team के Support Staff में इस समय एक भी मनोवैज्ञानिक नहीं है.
कुछ एक्सपर्ट्स ऐसा मानते हैं कि Shooting जैसे खेलों में खिलाड़ियों को बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत होती है. इसलिए इस दौरान टीम के साथ मनोवैज्ञानिकों का होना बहुत ज़रूरी है.
खिलाड़ी तो छोड़िए भारत जैसे देश में जहां 20 करोड़ लोगों का मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) ठीक नहीं है, वहां प्रति सवा लाख लोगों पर सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक है .
WHO के मुताबिक पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में Depression के सबसे ज्यादा मरीज़ हैं. अगर भारत ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया तो Depression भारत में Corona से भी बड़ी महामारी बन जाएगा.
एशिया में ये स्थिति सिर्फ भारत की ही नहीं है बल्कि जापान जैसा देश जो इस समय Olympics की Medal Tally में सबसे ऊपर है. वहां भी जीवन में आगे निकलने की रेस का दबाव लोगों की जान ले लेता है. पिछले साल जापान में जितने लोग कोरोना से नहीं मरे थे, उससे ज्यादा लोगों ने सिर्फ अक्टूबर 2020 में आत्महत्या कर ली थी.
इसके बावजूद जापान के लोग अपनी ही एक खिलाड़ी के प्रदर्शन पर सवाल उठा रहे हैं और उसकी जमकर आलोचना कर रहे हैं. इस खिलाड़ी का नाम है Naomi Osaka. जो इस समय दुनिया की नंबर दो Tennis खिलाड़ी हैं.
मंगलवार को Naomi Osaka तीसरे राउंड में 42वें रैंक की एक खिलाड़ी से हारकर Olympics से बाहर हो गई थीं. इसके बाद से ही वो जापान की मीडिया और वहां के लोगों के निशाने पर आ गई हैं.
Naomi सिर्फ 23 साल की है और इतनी कम उम्र में उनसे उम्मीद की जा रही थी कि वो 206 देशों, 33 खेलों और 11 हज़ार खिलाड़ियों के बीच विजेता बनकर उभरें.
ये हाल तब है जब Naomi Osaka ने अपने मानसिक स्वास्थ्य की वजह से इस साल French Open में खेलने से मना कर दिया था. उन्होंने ये निर्णय तब लिया था, जब वो इसके लिए Paris पहुंच चुकी थीं और First Round का मैच भी जीत चुकी थीं. लेकिन फिर अचानक सब कुछ बदल गया और खराब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से Naomi Osaka, French Open से हट गईं.
इस फैसले के बाद उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था "It's ok to not be ok and it's ok to not talk about it यानी अगर आप ठीक नहीं है तो भी कोई बात नहीं और अगर आप इस पर बात नहीं करना चाहते हैं तो भी कोई बात नहीं.
इसके बाद वो अपने पहले Olympic की तैयारियों में जुट गईं. इसके बाद उन्हें जापान की तरफ से ओलंपिक की मशाल जलाने का भी मौका मिला लेकिन जब वो हार गईं तो उनकी सब तरफ से आलोचना होने लगी. लोग उनके Japanese होने पर ही सवाल उठाने लगे क्योंकि Namoi Osaka की पढ़ाई लिखाई और Training अमेरिका में हुई है. हार के बाद Osaka ने कहा कि वो ठीक से नहीं खेल पाईं और उन्हें नही पता था कि इतने दबाव को कैसे झेला जाए.
पिछले साल ही Human Rights Watch ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि जापान के खिलाड़ियों को बचपन से ही Training के नाम पर शारीरिक और मानसिक शोषण का सामना करना पड़ता है .
वर्ष 2017 में यूरोप के 384 Footballers पर एक अध्ययन किया गया था, जिनमें से 37 प्रतिशत Footballers में Anxiety और Depression के लक्षण मिले थे.
अमेरिका के मशहूर ऐथलीट और Swimmer- Michael Phelps (माइकल फेल्प्स) दुनिया के इकलौते ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ओलम्पिक्स में अब तक सबसे ज़्यादा 28 मेडल जीते हैं, जिनमें से 23 गोल्ड मेडल हैं. ये Medals भी उनके मन को स्वस्थ नहीं रख पाए. उन्होंने एक बार कहा था कि वो हर बार ओलम्पिक्स के बाद डिप्रेशन में चले जाते हैं. वो इस डिप्रेशन में Suicide की कोशिश भी कर चुके हैं
अमेरिका के महान बास्केट बॉल खिलाड़ी माइकल जॉर्डन ने 1993 में संन्यास की घोषणा कर दी थी. तब वो सिर्फ 30 साल के थे और सफलता के शिखर पर थे. उन्होंने दुनिया को बताया था कि उनकी अब कोई इच्छा नहीं है. वो अपने पिता की हत्या से दुखी थे और उनका मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) अच्छा नहीं था. इसलिए उन्होंने खेल से दूरी बना ली और दो साल बाद एक बार फिर वापस लौटे.
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर Glenn Maxwell भी डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं. अक्टूबर 2019 में जब ऑस्ट्रेलिया की टीम श्रीलंका दौरे पर गई थी, तब Glenn Maxwell डिप्रेशन की वजह से दौरे को बीच में ही छोड़ कर वापस ऑस्ट्रेलिया चले गए थे.
ऑस्ट्रेलिया के ही पूर्व तेज़ गेंज़बाज़ Shaun Tait भी Anxiety और डिप्रेशन का सामना कर चुके हैं. ये सूची बहुत लम्बी है.
व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत के लिए एकमात्र Olympic Gold Medal जीतने वाले अभिनव बिंद्रा ने भी माना था कि जिस दिन उन्होंने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की थी. उस दिन भी उनका मन उदास था और वो बहुत खालीपन महसूस कर रहे थे.
यानी ये पूरी तरह संभव है कि सफलता के शिखर पर पहुंचकर भी आपका मन निराशा की गहराइयों में डूबा रहे. इसके लिए जिम्मेदार है, उम्मीदों और आकांक्षाओं की वो सुनामी जो आपके मन को हमेशा सच्चाई से दूर बहाकर ले जाती है.
अब आप कहेंगे कि फिर इसका उपाय क्या है तो पहले अध्यात्म के ज़रिए इसका उपाय आपको बताते हैं. आध्यात्मिक गुरु ओशो ने कहा था कि जीवन में कहीं पहुंचना हो तो थोड़ी देर रुकना भी सीखना चाहिए. जो लोग रुकने में समर्थ हो पाते हैं. वही जीवन को सही मायनों में देख पाते हैं यानी उसका विश्लेषण कर पाते हैं .
इसलिए रुकिए और देखिए, आपके आस पास क्या हो रहा है? अगर आप रुककर देखेंगे तो आप उन्हीं भूलों को नहीं दोहराएंगे, जो आपके चारों तरफ हो रही हैं .
इसी तरह संत रविदास ने कहा था कि मन चंगा तो कठौती में गंगा, सरल भाषा में इसका अर्थ ये है कि आपको वही काम करना चाहिए, जिसकी गवाही आपका मन देता है.
जीवन के पल बहुत गिने चुने हैं. इन्हें गंवाइये मत क्योंकि सफलता के लालच में जो इन पलों को गंवा देता है. वो सबकुछ जीतकर भी हार जाता है.
कहा जाता है कि जब सिकंदर पूरी दुनिया जीतकर ग्रीस वापस लौट रहा था. तब वो अचानक बीमार पड़ गया. उसके चिकित्सकों ने उसे कहा कि उसके पास बहुत कम समय हैं. तब सिकंदर ने कहा कि चिकित्सक चाहें तो उसकी सारी धनदौलत ले लें. उसकी जीती हुई सारी दुनिया ले लें लेकिन उसे किसी तरह 24 घंटे तक जिंदा रखें. वो अपनी मां से मिलना चाहता था लेकिन डॉक्टर्स कुछ नहीं कर पाए. कहा जाता है कि सिकंदर अपनी मां से मिले बिना ही मर गया .
इसलिए आप सिकंदर बनने की ज़िद छोड़कर ये देखें कि आपके मन में क्या चल रहा है. क्या आपका मन आपको और मोहलत देने के लिए तैयार है?
लेकिन अगर अध्यात्म से भी मामला हल ना हो..तो बिना देरी किए सीधे मनोचिकित्सक से सलाह लें और अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना शुरू करें.
कुछ देश अपने खिलाड़ियों की मानसिक स्थिति (Mental Health) की भी चिंता नहीं करते. वहीं कुछ देश उनके खाने तक से समझौता बर्दाश्त नहीं करते.
टोक्यो पहुंचे साउथ कोरिया के दल ने फैसला किया है कि उसके खिलाड़ी Tokyo के Olympic Village में मिलने वाला खाना नहीं खाएंगे. दक्षिण कोरिया को शक है कि जापान उनके खिलाड़ियों के खाने में मिलावट कर सकता है या उन्हें दूषित खाना खिला सकता है.
इसके लिए दक्षिण कोरिया के दल ने एक पूरे होटल को किराए पर लिया है औऱ वहां अपने देश के 14 Chef बुलाएं हैं. जो दक्षिण कोरिया के खिलाड़ियों के लिए खाना बनाते हैं.
दक्षिण कोरिया के इस किचन में एक RADIATION DETECTOR भी है. जिससे खाने में Nuclear Radiation का पता लगाया जा सकता है. दक्षिण कोरिया को शक है कि उनके खिलाड़ियों को FUKUSHIMA में उगाए गए अनाज से बना खाना खिलाया जा सकता है. जहां वर्ष 2011 में एक Nuclear Power Plant में धमाका हो गया था. इसके बाद इस पूरे इलाके में Radiation फैलने की आशंका जताई गई थी.
Radiation से दूषित हो चुका खाना न सिर्फ किसी को बीमार कर सकता है बल्कि इससे कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकती है.
इसलिए दक्षिण कोरिया अपने खिलाड़ियों को अलग से खाना उपलब्ध करा रहा है. हालांकि जापान ने इसका कड़ा विरोध किया है और कहा है कि ये हरकत जापान के लोगों का दिल दुखाने वाली है.
इस फैसले के पीछे असली वजह सिर्फ Radiation नहीं बल्कि दक्षिण कोरिया और जापान की दशकों पुरानी दुश्मनी भी है. वर्ष 1910 से लेकर 1945 तक कोरिया पर जापान का कब्ज़ा था. इस दौरान जापान ने कोरियाई लोगों पर कई तरह के ज़ुल्म ढाए थे और लाखों लोगों का नरंसहार किया था. 1945 में Second World War के दौरान जब हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद जापान ने आत्मसमर्पण किया, तब कोरिया को जापान से आज़ादी मिली थी.
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इसके कुछ वर्षों के बाद कोरिया, दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया में बंट गया था. इन सब बातों के लिए आज भी दक्षिण कोरिया के लोग जापान को जिम्मेदार मानते हैं. इसलिए वो जापान की किसी बात पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है. कुछ दिनों पहले दक्षिण कोरिया के खिलाड़ियों ने अपनी बालकनियों से जापान की शाही नौसेना के झंडे भी लहराए थे . कोरिया पर कब्ज़ा करने में जापान की शाही नौसेना की बड़ी भूमिका थी. दक्षिण कोरिया के खिलाड़ी जापान को ये बताना चाहते थे कि वो इतिहास को भूले नहीं हैं.
हालांकि जापान को उम्मीद थी कि ओलंपिक्स के बहाने वो दक्षिण कोरिया की सरकार के साथ बातचीत शुरू कर पाएगा. हालांकि अब ऐसा लगता है कि ये ओलंपिक्स ही दोनों देशों के बीच युद्ध का नया मैदान बन गया है.
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