DNA ANALYSIS: गलवान में ढही गुरूर की दीवार, पीछे हटने पर मजबूर हुआ चीन
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DNA ANALYSIS: गलवान में ढही गुरूर की दीवार, पीछे हटने पर मजबूर हुआ चीन

लद्दाख में कम से कम तीन जगहों पर चीन की सेना, अपने टेंट और सैन्य साजोसामान लेकर अपनी तरफ वापस गई है.

DNA ANALYSIS: गलवान में ढही गुरूर की दीवार, पीछे हटने पर मजबूर हुआ चीन

नई दिल्ली: पिछले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख जाकर चीन को साफ संदेश दिया था और ये कहा था कि शांति वीरता से आती है, निर्बल व्यक्ति कभी शांति की पहल नहीं कर सकता. इसका मतलब ये था कि दुश्मन को अपनी ताकत दिखाना बहुत जरूरी होता है. भारत की इसी ताकत का अहसास चीन को भी हो चुका है, इसलिए सोमवार को चीन की सेना ने LAC से अपने टेंट समेटने शुरू कर दिए हैं.

ये बहुत बड़ी बात है क्योंकि हर तरह से शक्तिशाली चीन को बैकफुट पर लाना, दुनिया के किसी भी देश के लिए बहुत मुश्किल है. लेकिन भारत ने दुनिया को ये दिखा दिया कि चीन से डर कर नहीं लड़ा जा सकता. विस्तारवादी चीन को उसी तरह से झुकाया जा सकता है, जैसा भारत ने डोकलाम में किया था और जैसा भारत ने अब लद्दाख में किया है.

लद्दाख में कम से कम तीन जगहों पर चीन की सेना, अपने टेंट और सैन्य साजोसामान लेकर अपनी तरफ वापस गई है. पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू होने की बात चीन ने आधिकारिक तौर पर भी मान ली है. इसकी पुष्टि चीन के विदेश मंत्रालय से भी हुई है और सोमवार को ये बात भी सामने आई कि चीन के विदेश मंत्री की भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल से रविवार को वीडियो कॉल से करीब दो घंटे तक बातचीत हुई है.

चीन के विदेश मंत्री Wang Yi और NSA अजीत डोवल, दोनों सीमा विवाद के मामले में भारत और चीन के स्थाई प्रतिनिधि हैं. इस बातचीत के बाद दोनों देशों ने अपने-अपने बयान जारी किए, जिसका सार यही है कि दोनों देश सीमा पर शांति बनाएंगे और किसी भी प्रकार के मतभेद को विवाद बनाने से बचेंगे. इसमें कहा गया है कि दोनों देश शांति बनाने के लिए मिल जुलकर काम करेंगे और निर्धारित माध्यमों के जरिए लगातार बातचीत करेंगे.

इन बयानों में सबसे महत्वपूर्ण बात ये कही गई कि सैन्य और कूटनीतिक बातचीत के जरिए, जो सहमति बनी है, उसे सीमा पर दोनों देशों की सेना जल्द से जल्द अमल में लाएंगी और Disengagement Process यानी आमने-सामने की स्थिति से पीछे हटने की प्रक्रिया को, जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी शुरू करेंगे. 

कुल मिलाकर ये चीन की भी परीक्षा थी. भारत तो चीन के साथ दोनों मोर्चों पर लड़ने के लिए तैयार था लेकिन सवाल ये है कि क्या चीन भारत के साथ इतने सारे मोर्चों पर लड़ने के लिए तैयार था? भारत ने ना सिर्फ सीमा पर चीन को चुनौती दी बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी उसे घेरा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. और चीन के लिए इतने मोर्चों पर एक साथ लड़ना आसान नहीं था.

लद्दाख में LAC पर चीन की सेना कहां-कहां से पीछे हट रही है, ये हम आपको समझाते हैं. पहली जगह है, गलवान घाटी का पेट्रोलिंग प्वाइंट 14, दूसरी जगह है हॉट स्प्रिंग्स और तीसरी जगह है-गोगरा. पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 के बारे में आपको हम कई बार बता चुके हैं. इसी जगह के पास 15 जून की रात को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक टकराव हुआ था, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे और चीन के 40 से 50 सैनिक मारे गए थे.

बताया जा रहा है कि पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 के आसपास, चीन ने अपने टेंट हटा लिए हैं. वो अपनी गाड़ियां और सैन्य साजोसामान कुछ किलोमीटर पीछे लेकर गए हैं. लेकिन ये कितनी दूरी तक पीछे हटे हैं, इसके बारे में पक्के तौर पर इसलिए नहीं बताया गया है, क्योंकि अभी ग्राउंड वेरीफिकेशन यानी पुष्टि होना बाकी है. भारतीय सेना ये वेरीफाई करेगी कि जिस स्थान से पीछे हटना तय हुआ है, वहां से चीन वाकई पीछे हटा या नहीं. ये सुनिश्चित करना इसलिए बहुत जरूरी है, क्योंकि भारत को अब चीन पर भरोसा नहीं है.

भारत और चीन की सेना के बीच तीन बार कोर कमांडर स्तर की बातचीत हो चुकी है. इसमें 22 जून और 30 जून की मीटिंग में फिर से ये सहमति बनी थी कि दोनों देशों की सेनाएं LAC पर टकराव वाली स्थिति से पीछे हटेंगी. लेकिन इस बार भारत ने ये भी स्पष्ट तौर पर कह दिया था कि पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद 72 घंटे तक वेरीफाई किया जाएगा कि टकराव वाली स्थिति से चीन ने वाकई अपने टेंट हटाए हैं या नहीं और चीन अपना सैन्य साजोसामान वापस लेकर गया है या नहीं.

वेरीफाई करने की शर्त इसलिए आई क्योंकि चीन एक बार धोखा दे चुका है. आप याद कीजिए कि 6 जून को पहली बार भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की बातचीत हुई थी. उस बैठक में भी पीछे हटने की प्रक्रिया पर सहमति बनी थी और ये कहा गया था कि चीन पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू करेगा, लेकिन इसके बाद ही 15 जून को गलवान घाटी का हिंसक टकराव हुआ. वो टकराव इसलिए हुआ था कि चीन की सेना ने भारत से बनी सहमति का पालन नहीं किया और पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 पर फिर से अपनी पोस्ट बना ली थी.

वैसे शुरुआती तौर पर यही कहा गया है कि पेट्रोलिंग प्वाइंट 14, हॉट स्प्रिंग्स, और गोगरा से चीन ने अपने टेंट और गाड़ियां हटाई हैं और उसे पीछे जाते हुए देखा भी गया है. लेकिन इसका वेरीफिकेशन बहुत महत्वपूर्ण है. उसके बाद ही ये तय होगा कि चीन के साथ टकराव फिलहाल खत्म हुआ है या नहीं. क्योंकि कुछ दूर पीछे हटने के बाद, टकराव वाली जगहों पर आकर फिर से टेंट लगाने, अपनी पोस्ट बनाने और गाड़ियां लाने में चीन को देर नहीं लगेगी. इसलिए भारत की शर्त पहले दिन से यही है कि LAC पर अप्रैल वाली स्थिति ही बहाल हो.

एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि पेंगोंग झील का मामला अब भी स्पष्ट नहीं है. वहां पर चीन की सेना, अब भी फिंगर 4 पर बैठी है, वहां पर उसने बंकर बना लिए हैं और सैन्य साजोसामान लाकर कई टेंट लगा लिए हैं. गलवान घाटी के बाद भारत और चीन के टकराव का ये सबसे पेचीदा मामला बनता जा रहा है. क्योंकि भारत की LAC पेंगोग झील की फिंगर 8 तक है, जहां तक भारतीय सैनिक पेट्रोलिंग के लिए जाते रहे हैं, लेकिन चीन अपना दावा फिंगर 2 तक करने लगा है और इस वक्त वो फिंगर 4 पर बैठा है.

हमें एक और महत्वपूर्ण जानकारी मिली है. सूत्रों के मुताबिक LAC पर मौजूदा टकराव को खत्म करने के लिए एक और उपाय निकाला गया है. और ये उपाय है-LAC पर टकराव वाली जगहों पर फिलहाल बफर जोन बनाने का. बफर जोन का मतलब ये है कि जब तक कूटनीतिक स्तर पर बातचीत पूरी नहीं हो जाती और जब तक LAC का निर्धारण नहीं हो जाता, तब तक LAC के कुछ किलोमीटर के दायरे को ऐसा इलाका बना दिया जाएगा, जहां पर दोनों देशों की सेना के जवान नहीं जाएंगे. तब तक भारत की तरफ से ITBP के जवान और चीन की तरफ से वहां की बॉर्डर फोर्स BDR के जवान, यहां पर स्थितियों को नियंत्रित करेंगे. ये बफर जोन इसलिए बनाए जाएंगे, ताकि दोनों देशों के बीच विश्वास फिर से बन सके. सेना इस बफर जोन के अपनी तरफ सीमाओं की रक्षा करेगी. बफर जोन में सेना, सीमा पर तय नियम-कानूनों का पालन करने के लिए भी प्रतिबद्ध नहीं होगी, और सीमाओं की रक्षा के लिए अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल कर सकेगी.

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