DNA ANALYSIS: आखिर क्यों आई Ganga नदी में लाशें बहाने की नौबत? Ground Report से समझिए असली वजह
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DNA ANALYSIS: आखिर क्यों आई Ganga नदी में लाशें बहाने की नौबत? Ground Report से समझिए असली वजह

गंगा नदी में जो लोग लाशें बहा कर ये सोच रहे हैं कि ये नदी उनके सारे पाप धो देगी, वो गलत हैं. बहती गंगा में पाप के हाथ धोने से इसके पानी पर काफी गंभीर असर होंगे और सम्भव है कि लाशों की वजह से इसके पानी की गुणवत्ता भी खराब हो जाए. 

DNA ANALYSIS: आखिर क्यों आई Ganga नदी में लाशें बहाने की नौबत? Ground Report से समझिए असली वजह

नई दिल्ली: हमारे देश में एक कहावत काफी लोकप्रिय है कि गंगा नदी (Ganga River) में सारे पाप धुल जाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये सारे पाप आखिर जाते कहां हैं? आज हम आपके इसी सवाल का जवाब देंगे, क्योंकि इस समय गंगा नदी के किनारे लाशों का अम्बार लगा हुआ है. कई राज्यों में गंगा नदी की धारा में लाशें बहती हुई मिली हैं. इस पर काफी बहस छिड़ी है कि ये लाशें हैं किसकी? क्या ये सभी लाशें कोरोना मरीजों की हैं? और अगर हैं तो क्या इन शवों से गंगा नदी का पानी जहरीला हो जाएगा? ये सवाल सभी के मन में हैं.

आज आपके इन्हीं सवालों को जवाब का रूप देने के लिए हमने गंगा नदी के किनारों से एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको निर्मल गंगा की एक ऐसी यात्रा पर ले जाएगी, जिसमें चिंता और डर दोनों छिपे हैं. आज हमारी इस रिपोर्ट को देखने के बाद आपको समझ आएगा कि गंगा नदी में धोए गए पाप आखिर जाते कहां हैं?

'डूब' क्षेत्रों में दफनाए जा रहे शव

गंगा नदी की कुल लंबाई लगभग ढाई हजार किलोमीटर है, और इसका उद्गम स्थल उत्तराखंड का गंगोत्री है. अगर राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश के 11 जिले गंगा नदी से लगे हुए हैं, और इन जिलों में गंगा नदी के पास रिहायश भी काफी है. अब चुनौती ये है कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के इन जिलों में आजकल गंगा किनारे बड़ी संख्या में शवों को रेत में दबाया जा रहा है. ये लाशें डूब क्षेत्र में दफनाई गई हैं. डूब क्षेत्र का मतलब है, वो इलाका जो नदी का जलस्तर बढ़ने पर डूब जाता है. यानी जब कल के दिन नदी का जलस्तर बढ़ेगा, ये सारी लाशें गंगा नदी में चली जाएंगी. तो क्या इन लाशों से गंगा नदी मैली नहीं होगी? ये बड़ा सवाल है.

देश की 40% आबादी पीती है गंगाजल

भारत की कुल आबादी में से लगभग 40 प्रतिशत लोग गंगा नदी का पानी पीते हैं. अगर संख्या में इस आंकड़े को बताएं तो ये आंकड़ा होता है 50 करोड़ के आसपास. हालांकि इन लोगों तक ये पानी कई चरणों में पहुंचता है और इस पानी को पीने लायक बनाया जाता है. महत्पपूर्ण बात ये है कि वर्ल्ड वाइड फंड का कहना है कि गंगा विश्व की सबसे अधिक संकटग्रस्त नदियों में से एक है और इसमें हर साल प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है. यानी पहले से प्रदूषित गंगा नदी लाशों का ये ढेर उठाने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है.

गंगा में लाश बहाने से धुल जाएंगे 'पाप'?

कड़वी सच्चाई ये है कि गंगा नदी में जो लोग लाशें बहा कर ये सोच रहे हैं कि ये नदी उनके सारे पाप धो देगी, वो गलत हैं. बहती गंगा में पाप के हाथ धोने से इसके पानी पर काफी गंभीर असर होंगे और सम्भव है कि लाशों की वजह से इसके पानी की गुणवत्ता और खराब हो जाए. ये स्थिति इसलिए और भी खतरनाक हो सकती है क्योंकि गंगा नदी का पानी पहले से ही काफी प्रदूषित है. वर्ष 1985 में एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था राम तेरी गंगा मैली- और इस फिल्म के गाने के बोल भी यही थे. ऐसा लगता है कि ये गाना मौजूदा परिस्थितयों के लिए ही लिखा गया था. आज उत्तर प्रदेश के प्रयागराज और दूसरे जिलों में गंगा नदी की जो हालत है, वो चिंताजनक है. वो भी तब जब हमारे देश में गंगा नदी को पूजा जाता है, ये हमें संकल्प देती है और इसका धारा प्रवाह पानी हमें ऊर्जा देता है.

दुनिया की 5वीं सबसे दूषित नदी बनी गंगा

गंगा नदी का प्राचीन नाम राजा भागीरथ के नाम पर पड़ा था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भागीरथ के 60 हजार पूर्वज ऋषि कपिला के शाप के कारण भस्म हो गए थे, जिनकी मुक्ति के लिए गंगाजल का होना आवश्यक था. इसीलिए भागीरथ ने कड़ी तपस्या की और स्वर्ग में भगवान ब्रह्मा के कमंडल में बैठी गंगा जी को धरती पर बुला लिया. यानी गंगा हमारी आस्था से जुड़ी हुई है लेकिन आज गंगा की क्या स्थिती है. आज गंगा नदी दुनिया की पांचवी सबसे दूषित नदी है. अन्य नदियों की तुलना में गंगा नदी में ऑक्सीजन का लेवल 25% ज्यादा है. हालांकि कहा जाता है कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया से लड़ने की विशेष शक्ति होती है और इसका पानी कभी सड़ता नहीं है. और शायद इसी बात का लाभ उठा कर कई लोग गंगा नदी में लाशों को बहा रहे हैं. लेकिन वो ये नहीं जानते कि गंगा नदी में लाशों को बहाने से इसकी निर्मलता खराब होगी, जो पहले से ही संकट में है.

नदी किनारे लाश दफनाने पर लगी रोक

हालांकि इसे रोकने के लिए अब सरकारों ने कड़े क़दम उठाने शुरू कर दिए हैं. उत्तर प्रदेश में इस पर अब सख्ती बढ़ा दी गई है, और सरकार ने गंगा किनारे वाले इलाकों में पुलिस की भी तैनाती कर दी है. जबकि बिहार सरकार ने गंगा नदी के किनारे लाशों को दफनाने पर रोक लगा दी है, और गरीब लोगों को अंतिम संस्कार के लिए 5 हजार रुपये देने का भी ऐलान किया है. यानी सरकारें ये मान रही हैं कि लोग इसलिए गंगा नदी के किनारे अपनों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं है. क्यों नहीं हैं, ये भी अब समझिए.

कोरोना में महंगा हुआ अंतिम सरकार

इस समय अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों पर कतार लगी है. इस वजह से लकड़ियों की कीमतें बढ़ गई हैं. एक अनुमान के मुताबिक, एक शव के अंतिम संस्कार में 7 से 9 मन लकड़ी की जरूरत होती है. एक मन का मतलब है 40 किलोग्राम यानी इस हिसाब से 300 से साढ़े 300 किलोग्राम लकड़ी की जरूरत होती है. पहले श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए 10 रुपये किलोग्राम में लकड़ी मिल जाती थी और पूरा खर्च आता था ढाई से 3 हजार रुपये. लेकिन अब ये खर्च 6 से 7 हजार रुपये हो गया है. क्योंकि लकड़ियों की जमाखोरी हो रही है.

'पानी के जरिए नहीं फैलता कोरोना वायरस'

सरल शब्दों में कहें तो आज सस्ते से सस्ता अंतिम संस्कार भी 7 से 8 हजार रुपये में होता है और कई लोगों के लिए इतने पैसे जुटाना आसान काम नहीं है. शायद हो सकता है कि इसी वजह से लोग गंगा नदी में अपनों की लाशें बहा रहे हैं. लेकिन इसके परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं, इसे आप हमारी इस रिपोर्ट से समझ सकते हैं. हालांकि इस रिपोर्ट को दिखाने से पहले हम आपको ये बता दें कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) ने इस बात से इनकार किया है कि कोरोना पानी के जरिए फैल सकता है. यानी गंगा नदी में लाशों के बहने से कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं है. लेकिन इससे नदी के प्रदूषित होने का खतरा बना रहेगा और ये खतरा काफी गंभीर है. 

संक्रमण को रोकने में ऐसे मदद कर रही जनता

आज इस पूरे विषय को समझने के लिए आपको हमारी ये रिपोर्ट देखनी चाहिए, जो आपको घर बैठे गंगा नदी के दर्शन कराएगी और इससे जुड़े खतरे के बारे में जागरूक करेगी. आप हर दिन न्यूज चैनलों पर ये खबरें देखते हैं कि कोरोना से देश में क्या हालात हैं. अखबारों में इससे जुड़े नए-नए आंकड़ों को बारे में जानते हैं और सरकार की कमियों और उसकी नीतियों की आलोचना करते हैं. और करनी भी चाहिए. लेकिन संक्रमण को रोकने के लिए हमारे देश के लोग अपना कर्तव्य कहां तक निभाते हैं, अब आपको ये बताते हैं.

सिर्फ 14% लोग सही तरह से लगाते हैं मास्क

आज केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक स्टडी से जुड़ी जानकारी भी साझा की गई है. इसमें बताया गया है कि हमारे देश के लोग कैसे मास्क लगाते हैं. यानी 64 प्रतिशत लोग मास्क से अपने मुंह को कवर करते हैं, लेकिन ये मास्क उनकी नाक से नीचे होता है. जबकि 20 प्रतिशत लोग थुड्डी तक ही मास्क लगाते हैं. इसके अलावा 2 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनका मास्क मुंह और नाक की बजाय गर्दन को कवर कर रहा होता है. यानी मास्क लगाना ना लगाना एक बराबर है इन लोगों के लिए. और सिर्फ 14 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं, जो सही तरीके से मास्क पहनते हैं. यानी वो मास्क से अपने मुंह और नाक को कवर करते हैं. बड़ी बात ये है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित है और वो सही से मास्क नहीं लगाता तो वो एक महीने में 406 लोगों में ये संक्रमण फैला सकता है. लेकिन अगर पॉजिटिव होने पर व्यक्ति सही से मास्क लगाता है तो ऐसी स्थिति में वो एक महीने में सिर्फ ढाई लोगों को ही संक्रमित कर पाएगा. 

देखें Ground Report-

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