आज हम कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को एक चुनौती देने वाले हैं. ट्रूडो अगर भारत में चल रहे किसान आंदोलन के साथ हैं, तो हमें लगता है कि उन्हें आज उस विचार को अंतिम रूप देने में जरा भी देर नहीं करनी चाहिए, जो हम लेकर आए हैं.
Trending Photos
नई दिल्ली: आज हम दुनिया के लिए एक ऐसा अद्भुत आइडिया लेकर आए हैं जिससे भारत में पिछले 77 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन खत्म हो जाएगा और खालिस्तान नाम का एक अलग राष्ट्र बनाने की मांग भी पूरी हो जाएगी. यानी ये आइडिया एक नए राष्ट्र का है और अगर ये राष्ट्र बन जाए तो दुनिया में कुल देशों की संख्या 195 से 196 हो सकती है और ये नया देश होगा खालिस्तान और सबसे अहम कि ये पंजाब में नहीं होगा.
इस देश को अस्तित्व में लाने के लिए किसी तरह का कोई आंदोलन करने की जरूरत नहीं होगी. हिंसा और प्रोपेगेंडा का सहारा नहीं लेना होगा, न ही इसके लिए सड़कों को बंधक बनाना होगा और न ही इसके लिए हमारे किसानों को परेशान होना पड़ेगा. इस देश को बनाने के लिए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के सिर्फ एक हस्ताक्षर की जरूरत है. यानी जस्टिन ट्रूडो अगर तय कर लें तो खालिस्तान नाम का नया देश दुनिया को मिल सकता है और यही चुनौती आज हम कनाडा के प्रधानमंत्री को देने वाले हैं. हम उनसे कहना चाहते हैं कि अगर वो भारत में चल रहे किसान आंदोलन के साथ हैं, जिसकी आड़ में कनाडा में बैठे मुट्ठीभर लोग खालिस्तानी प्रोपेगेंडा को हवा दे रहे हैं तो हमें लगता है कि उन्हें खालिस्तान के विचार को अंतिम रूप देने में बिल्कुल भी देर नहीं लगानी चाहिए.
सरल शब्दों में कहें तो जस्टिन ट्रूडो खालिस्तान के खाली स्थान को भर सकते हैं और ऐसा करने में हम उनकी मदद करना चाहते हैं. हम आज कनाडा को बताना चाहते हैं कि वो जिन लोगों को अपनी जमीन से खालिस्तान के विचार में खाद और पानी डालने की खुली छूट देता है, उन लोगों के सपने को कैसे ट्रूडो पूरा कर सकते हैं.
लेकिन हमारे इस आइडिया के बारे में बताने से पहले हम आपको भारत के खिलाफ चल रही अंतरराष्ट्रीय साजिश से जुड़े एक वीडियो के बारे में भी बताना चाहते हैं, जो अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य से आया है. ये वीडियो वहां चल रही एक फुटबॉल लीग के मैच का है, जिसका नाम है- American Super Bowl League. 8 फरवरी को इस फुटबॉल लीग के एक मैच के दौरान किसान आंदोलन से जुड़ा एक वीडियो दिखाया गया और इसमें दावा किया गया कि भारत में किसान आंदोलन की वजह से अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है और दुनियाभर में इस आंदोलन से 25 करोड़ लोग जुड़ चुके हैं. इसके अलावा इस वीडियो में ये दावा भी किया गया कि भारत में आंदोलन के दौरान किसानों को मारा जा रहा है.
Here’s the Super Bowl ad featuring the Farmers Protest
If you haven’t heard about it yet, now is the time to learn. It’s an issue of injustice that affects all of us. pic.twitter.com/a0WRjIAzqF
— Simran Jeet Singh (@simran) February 7, 2021
ये तीनों ही दावे पूरी तरह गलत हैं और भारत को बदनाम करने के लिए गढ़े गए हैं क्योंकि, आंदोलन में किसानों की मौत को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा देश में मौजूद नहीं है और सबसे अहम ये कि भारत में चल रहा किसान आंदोलन मुट्ठीभर लोगों तक सीमित है. आंदोलन कर रहे किसानों पर सरकार का रवैया अब तक नरम रहा है. इसे समझने के लिए 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा की तस्वीरें ही काफी हैं क्योंकि, हिंसा के दौरान पुलिस के 400 जवान घायल हो गए थे लेकिन उन्होंने हिंसा करने वाले किसानों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी. यानी ये सब एक प्रोपेगेंडा का हिस्सा है.
ये बात हम लगातार कह रहे हैं कि किसान आंदोलन का रिमोट कंट्रोल विदेशी ताकतों के हाथ में जा चुका है और ये ताकतें इस पर पानी की तरह पैसे बहा रही हैं क्योंकि, जो वीडियो अभी हमने आपको दिखाया, उसे फुटबॉल मैच के दौरान टीवी पर दिखाने के लिए 10 हजार डॉलर यानी भारतीय रुपयों में लगभग साढ़े सात लाख रुपये खर्च किए गए. सोचिए अगर ये आंदोलन विदेशी ताकतों के हाथ में नहीं है तो इतना पैसा आ कहां से रहा है.
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि इस वीडियो के अंत में जिस गाने के बोल इस्तेमाल हुए हैं, उस गाने के ओरिजनल वीडियो में खालिस्तानी भिंडरावाला की तस्वीरें इस्तेमाल हुई हैं. यानी इस विज्ञापन के तार भी सीधे सीधे खालिस्तान से जुड़े हैं और ये सब कनाडा से किया जा रहा है. इसलिए अब हम आपको उस आइडिया के बारे में बताना चाहते हैं जिससे किसान आंदोलन भी खत्म हो जाएगा और खालिस्तान नाम के एक अलग देश की मांग भी पूरी हो जाएगी और ये आइडिया है, क्यों नहीं कनाडा अपने यहां किसी प्रांत को खालिस्तान घोषित कर देता है?
कनाडा क्षेत्रफल के लिहाज से रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है और कनाडा की कुल आबादी सिर्फ साढ़े तीन करोड़ है. इस हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश में कनाडा जैसे 6 देशों की कुल आबादी रह सकती है. इस समय उत्तर प्रदेश की कुल आबादी 20 करोड़ है और भारत की कुल आबादी लगभग 135 करोड़ के आसपास है. यानी कनाडा के पास बहुत जमीन है और इस जमीन पर रहने वाले लोगों की संख्या भी काफी कम है और इसीलिए हम चाहते हैं कि खालिस्तान के विचार को विटामिन की गोलियां खिला कर उसे स्वस्थ रखने वाला कनाडा अपने ही देश में खालिस्तान नाम से एक नया देश बना सकता है और वो ऐसा कैसे कर सकता है अब ये समझिए.
क्षेत्रफल के लिहाज से कनाडा का सबसे बड़ा प्रांत है ब्रिटिश कोलम्बिया, जो 24 लाख 46 हजार 852 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है जबकि भारत में पंजाब राज्य का कुल क्षेत्रफल 50 हजार 362 वर्ग किलोमीटर है. यानी कनाडा के अकेले ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत में पंजाब जैसे 49 राज्य समा सकते हैं और सबसे अहम ब्रिटिश कोलम्बिया ही कनाडा का एक ऐसा प्रांत है, जहां सबसे ज्यादा सिख रहते हैं. इस प्रांत में सिखों की कुल आबादी 2 लाख से ज्यादा है और ये कुल आबादी में 4.6 प्रतिशत है.
अब हम यहां कनाडा के प्रधानमंत्री से ये कहना चाहते हैं कि वो ब्रिटिश कोलम्बिया के एक हिस्से या इस पूरे प्रांत को ही खालिस्तान घोषित क्यों नहीं कर देते? ऐसा करने पर कनाडा को ज्यादा नुकसान नहीं होगा. अगर ब्रिटिश कोलम्बिया के एक हिस्से को तोड़कर खालिस्तान नाम का नया देश बना भी दिया जाए, तब भी कनाडा क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बना रहेगा। और इससे खालिस्तान की मांग भी पूरी हो जाएगी.
अब हम आपको कुछ और आंकड़े बताते हैं. कनाडा में कुल सिखों की आबादी लगभग 5 लाख है जबकि भारत में ये संख्या 2 करोड़ 8 लाख है. अगर दोनों देशों की कुल आबादी में सिखों की जनसंख्या देखें तो कनाडा में सिख 1.4 प्रतिशत हैं और भारत की कुल जनसंख्या में सिख 1.7 प्रतिशत हैं. इस अनुपात में भारत और कनाडा के बीच ज्यादा अंतर नहीं है और यही वजह है कि कनाडा भारत के खिलाफ खालिस्तानी प्रोपेगेंडा का एपिसेंटर बन गया है.
अगर कनाडा ब्रिटिश कोलम्बिया को खालिस्तान घोषित नहीं करना चाहता तो भी उसे निराश होने की जरूरत नहीं है. हम कनाडा के ऐसे और तीन प्रांतों के बारे में आपको बताना चाहते हैं, जहां सिखों की आबादी हजारों में है.
इनमें पहला प्रांत है, ओंटारियो, जहां सिखों की आबादी लगभग 1 लाख 80 हजार है और सबसे अहम इस प्रांत से कुल 121 सांसद चुन कर कनाडा की पार्लियामेंट में पहुंचते हैं, जिनमें से 10 सांसद सिख हैं, तो खालिस्तान के खाली स्थान को भरने लिए कनाडा का ओंटारियो भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
दूसरा प्रांत है अल्बर्टा, जहां सिखों की आबादी 50 हजार से ज्यादा है और इसी क्षेत्र से तीन सिख सांसद भी कनाडा की संसद में पहुंचे हैं. यानी खालिस्तान नाम का देश बनाने के लिए ये प्रांत भी अच्छी पसंद हो सकता है.
तीसरा प्रांत है क्यूबेक, जहां सिखों की आबादी तो मात्र 9 हजार है लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि इस प्रांत से भी एक सिख सांसद कनाडा की संसद में जरूर पहुंचता है.
तो हमने आपको कनाडा के उन प्रांतों के बारे में आपको बताया, जिनमें से किसी एक को खालिस्तान घोषित करके कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो कई समस्याओं को हल कर सकते हैं. वो ऐसा करके भारत के उन किसानों का भी दिल जीत सकते हैं, जो खालिस्तान की मांग करते हैं.
यानी खालिस्तान की मांग बस एक हस्ताक्षर दूर है और ये हस्ताक्षर करना है, जस्टिन ट्रूडो को. हमें लगता है कि ऐसा करना उनकी राजनीति को भी काफी सूट करेगा. वो इसलिए क्योंकि कनाडा की संसद में कुल सीटों की संख्या 338 है, जिनमें से 18 सीटों पर सांसद, सिख हैं.
कनाडा की संसद में सिखों की हिस्सेदारी 5.33 प्रतिशत है. कनाडा में अक्टूबर 2019 में हुए चुनाव में जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को 157 सीटें मिली थीं यानी उन्हें बहुमत से 13 सीटें कम मिली थीं. इसके बाद उन्हें न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेना पड़ा था, जो चुनाव में 24 सीटें जीती थी और इस समर्थन से ही ट्रूडो सरकार बनाने में कामयाब हुए थे. यानी आज अगर न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी अपना समर्थन वापस ले ले, तो कनाडा की सरकार गिर जाएगी और सबसे अहम जिस पार्टी के समर्थन से कनाडा की ट्रूडो की सरकार चल रही है, ये वही पार्टी है, जिसके सांसद जगमीत सिंह हैं, जिनके बारे में हमने आपको कुछ दिनों पहले बताया था.
जगमीत सिंह का वर्ष 2013 में तब की भारत सरकार ने वीजा रद्द कर दिया था और जांच एजेंसियों ने उनके तार खालिस्तानी संगठनों से जुड़े होने की बात कही थी. यानी अगर जगमीत सिंह चाहें तो वो कनाडा में खालिस्तान बनाने के लिए ट्रूडो पर दबाव भी बना सकते हैं.
खालिस्तान के विचार को कनाडा में कैसे विटामिन की गोलियों से स्वस्थ रखा जाता है, इसे समझाने के लिए हमारे पास कुछ दस्तावेज हैं. इसका शीर्षक है, Khalistan - A Project of Pakistan. ये एक रिसर्च पेपर है, जिसे कनाडा के थिंक टैंक Macdonald laurier Institute ने सितंबर 2020 में प्रकाशित किया था. इसके पेज नंबर चार पर लिखा है कि खालिस्तान असल में भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित एक एजेंडा है, जिससे भारत और कनाडा दोनों देशों की सुरक्षा और सम्प्रभुता पर खतरा पैदा हो सकता है.
इसे लिखने वाले Milewski कहते हैं कि खालिस्तान असल में धार्मिक उन्माद के सिद्धांत पर टिकी एक कोरी कल्पना है, जिसकी वजह से कई निर्दोष लोगों की जान जा रही है और इसका पालन पोषण करने वाले कनाडा के राजनीतिक अवसरवादी लोग और नेता हैं.
इसके पेज नंबर 9 पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और खालिस्तान के गठजोड़ के बारे में बताया गया है. इसमें लिखा है कि खालिस्तान का समर्थन भारत में चाहे सीमित हो लेकिन पाकिस्तान में इसे मजबूत करने का काम किया जाता है और इसके लिए आतंकवादी संगठनों ने सिख अलगाववादियों से गठजोड़ बना लिया है.
हम आपको कुछ तस्वीरों के बारे में बताते हैं, जो साबित करती हैं कि ये गठजोड़ भारत के खिलाफ कितने बड़े पैमाने पर काम कर रहा है.
इनमें एक तस्वीर पाकिस्तान के खालिस्तानी आतंकवादी गोपाल सिंह चावला की है जिसे मुम्बई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के साथ देखा जा सकता है. इस रिसर्च पेपर के मुताबिक, गोपाल सिंह चावला ने हाफिज सईद को अपनी प्रेरणा बताया है. गोपाल सिंह चावला, हाफिज सईद के लिए 'आइडियल पर्सन' शब्द का इस्तेमाल करता है.
दूसरी तस्वीर तलविंदर परमार की है, जिसने 1985 के एयर इंडिया के कनिष्क विमान को बम धमाके से उड़ा दिया था और इस हमले में 329 लोगों की मौत हो गई थी. 1989 की इस तस्वीर में तलविंदर परमार को पाकिस्तान के दारा शहर में हथियारों के साथ देखा जा सकता है.
इसके पेज नम्बर 18 पर एक नक्शा है. 2019 में खालिस्तानी संगठन Sikhs for Justice द्वारा प्रकाशित ये नक्शा खालिस्तान की कोरी कल्पना पर आधारित है.
इस नक्शे में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के कुल हिस्सों को खालिस्तान का हिस्सा बताया गया है तो वहीं पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक भी हिस्सा इसमें शामिल नहीं है. महाराजा रणजीत सिंह जिस लाहौर शहर से अपने सिख साम्राज्य को चलाते थे उसे इस नक्शे में नहीं दिखाया गया है और यही नहीं ननकाना साहिब जहां सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी का जन्म हुआ था, उसे भी इस नक्शे से अलग रखा गया है और इस नक्शे के माध्यम से आप खालिस्तान और पाकिस्तान के गठजोड़ को समझ सकते हैं.
इससे ये भी पता चलता है कि इनकी ईमानदारी सिखों के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी नहीं है. ये सिर्फ पाकिस्तानी एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं.