DNA ANALYSIS: Farmers Protest में कैसे हो गई खालिस्तानियों की एंंट्री
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DNA ANALYSIS: Farmers Protest में कैसे हो गई खालिस्तानियों की एंंट्री

किसान आंदोलन (Farmers Protest) करके अपनी बात कहने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन देश की कई राजनीतिक पार्टियां इन किसानों के कंधे पर सवार होकर वोटों से अपने फासले को कम करना चाहती हैं. खालिस्तान (Khalistan) जैसे आतंकवादी संगठन भी इन किसानों का फायदा उठा रहे हैं और इस आंदोलन में जहर घोलने की कोशिश हो रही है.

DNA ANALYSIS: Farmers Protest में कैसे हो गई खालिस्तानियों की एंंट्री

नई दिल्ली: किसान आंदोलन (Farmers Protest) में अब खालिस्तान की भी एंट्री हो गई है. आंदोलन में शामिल एक व्यक्ति साफ तौर पर कह रहा है कि जो हाल इंदिरा गांधी का हुआ था वही मोदी का भी होगा. ये बयान किसी किसान का नहीं हो सकता है. ये खालिस्तान (Khalistan) की भाषा है और अब इस आंदोलन से अहंकार की बू आ रही है. वहीं पंजाब के बरनाला से आई एक तस्वीर में प्रदर्शनकारियों के हाथ में भिंडरावाला की फोटो नजर आई.

बता दें कि भिंडरावाला खालिस्तानी आतंकवादी था और उसे ही स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था. इस ऑपरेशन के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. यानी देश में एक बार फिर 1984 वाला माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है. जाहिर सी बात है ऐसी धमकियों वाले आंदोलन को आप किसानों का आंदोलन नहीं कह सकते. इस आंदोलन को अब राजनीतिक पार्टियों और खालिस्तानियों ने हाईजैक कर लिया है.

दिल्ली को जाम करने की कोशिश

पंजाब से आए करीब 10 हजार किसान नए कृषि कानूनों के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) पहुंचकर संसद का घेराव करना चाहते हैं. शुक्रवार को जब ये किसान दिल्ली (Delhi) के पास सिंघु बॉर्डर पर पहुंचे तो इन्हें वहां रोक दिया गया. बता दें कि सिंघु बॉर्डर दिल्ली (Delhi) और हरियाणा को जोड़ता है और इस बॉर्डर से देश की संसद की दूरी 36 किलोमीटर है. किसानों के इस प्रदर्शन के दौरान इस बॉर्डर पर जमकर हंगामा हुआ, कई जगहों पर हिंसा भी हुई, इस दौरान तलवारें लहराई गईं, पत्थर बरसाए गए, बैरिकेडिंग को तोड़ा गया और यहां तक कि इन्हें रोक रहे पुलिसवालों को लाठी डंडों से मारने की कोशिश भी की गई.

हालांकि इस सबके बावजूद इन किसानों को दिल्ली (Delhi) में प्रवेश दे दिया गया है. अब ये किसान दिल्ली (Delhi) के बुराड़ी मैदान में जमा होकर प्रदर्शन कर सकते हैं. देश की संसद से बुराड़ी मैदान की दूरी सिर्फ 20 किलोमीटर दूर है, हालांकि अभी तक इस मैदान में सिर्फ 500 किसानों के पहुंचने की खबर है.

राजनीतिक पार्टियों का मोहरा बन गए किसान

देश जब अनाज के संकट से गुजर रहा था तब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों को संदेश दिया था कि किसान ज्यादा से ज्यादा अनाज का उत्पादन करें. ये वो जमाना था जब किसानों को सैनिकों जैसा सम्मान मिलता था लेकिन अब किसान सिर्फ राजनीति का एक मोहरा बनकर रह गए हैं.

किसान अपनी बात कहने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन देश की कई राजनीतिक पार्टियां इन किसानों के कंधे पर सवार होकर वोटों से अपने फासले को कम करना चाहती हैं. खालिस्तान जैसे आतंकवादी संगठन भी इन किसानों का फायदा उठा रहे हैं और इस आंदोलन में जहर घोलने की कोशिश हो रही है.

सिंघु बॉर्डर के अलावा शुक्रवार को दिल्ली (Delhi) और हरियाणा के बीच स्थित टिकरी बॉर्डर, अंबाला और पानीपत में भी बड़ी संख्या में किसान जमा हुए और इन सभी जगहों पर विरोध प्रदर्शन की एक जैसी ही तस्वीरें दिखाई दीं. ये किसान दो अलग-अलग रास्तों से होकर दिल्ली (Delhi) तक पहुंचे हैं. कुछ किसान पंजाब, मोहाली, चंडीगढ़, अंबाला, करनाल, कैथल, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, सोनीपत, सिरसा, जींद, और पानीपत होते हुए दिल्ली (Delhi) के सिंघु बॉर्डर पहुंचे, जबकि कुछ किसान भिवानी, हिसार, रोहतक और झज्जर के रास्ते टिकरी बॉर्डर पहुंचे. ज्यादातर किसान ट्रकों, मोटरसाइकिलों, ट्रैक्टरों और अन्य गाड़ियों के जरिए दिल्ली (Delhi) पहुंचे, जबकि कुछ किसानों ने ये सफर पैदल भी तय किया. इसीलिए अगर आप इनमें से किसी भी जगह पर जाने की योजना बना रहे हैं तो आने वाले कुछ दिनों के लिए आपको अपनी योजना टाल देनी चाहिए. किसानों के इस आंदोलन की वजह से नेशनल हाइवे नंबर-1 पूरी तरह से जाम हो गया, दिल्ली (Delhi) और बहादुरगढ़ को जोड़ने वाले हाइवे का भी यही हाल था, उत्तर प्रदेश में भी किसानों ने आंदोलन किया जिसकी वजह से दिल्ली (Delhi)-देहरादून हाइवे पर मुजफ्फरनगर के पास भारी जाम लग गया.

कृषि से जुड़े इन तीन नए कानूनों का विरोध

इस आंदोलन में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भी कई किसान संगठन शामिल हैं लेकिन आप इसे मुख्य रूप से पंजाब के किसानों का आंदोलन कह सकते हैं क्योंकि नया कृषि कानून पूरे देश में लागू होगा और किसी भी अन्य राज्य के किसान इस तरीके से इस कानून का विरोध नहीं कर रहे हैं. हाल ही में केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन नए कानून बनाए थे, ये कानून 27 सितंबर से पूरे देश में लागू हो चुके हैं. पहला कानून Agriculture Produce Markets Committee यानी APMC से जुड़ा है.

- इस कानून के तहत किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों के अलावा दूसरे खरीदारों को भी बेच सकेंगे.

- मंडियों में दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर ही तय होते हैं. MSP सरकार की तरफ से तय दाम होता है.

- किसान अपने शहर से दूर दूसरे राज्य में जाकर भी अपनी फसल बेच सकेंगे.

- ये कानून किसानों को ऑनलाइन सिस्टम से भी फसल बेचने की छूट देता है.

लेकिन विरोध कर रहे किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के मौजूदा सिस्टम खत्म करना चाहती है. इस बिल के कारण मंडी फीस के तौर पर राज्यों को जो कमाई होती है, वो बंद हो जाएगी. पंजाब सरकार को कुल जितनी कमाई होती है उसका 12 से 13 प्रतिशत इन मंडियों की फीस के रूप में ही मिलता है.

एक दलील ये भी है कि इससे मंडियों में कमीशन एजेंट का काम खत्म हो जाएगा. इन्हें मंडी की भाषा में आढ़ती कहा जाता है. इसके अलावा दो कानून और हैं लेकिन ज्यादातर किसानों को सिर्फ इसी कानून से सबसे ज्यादा परेशानी है.

लेकिन इन तीनों कानूनों में से सबसे ज्यादा विरोध सरकारी मंडियों से जुड़े कानून का हो रहा है क्योंकि किसानों को डर है कि इससे उन्हें मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP समाप्त हो जाएगा. किसान MSP को लेकर संवैधानिक गारंटी मांग रहे हैं. देश को आजाद हुए 73 वर्ष हो चुके हैं लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने MSP को संवैधानिक गारंटी का दर्जा नहीं दिया है. चुनावों के दौरान लगभग हर पार्टी इसका वादा जरूर करती है लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है.

कुल मिलाकर किसानों के आंदोलन में वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियों का एक बहुत बड़ा रोल है. ट्रैक्टर को जलाना, ट्रैक्टर से गाड़ियों को खींचना, आंदोलन पर अंग्रेजी में प्रेस नोट जारी करना, अखबारों में विज्ञापन निकालना और Hashtag Trend कराना, ये सब काम किसान सिर्फ अपनी ताकत के दम पर नहीं कर सकते. ये सभी तौर तरीके और तस्वीरें इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि इस आंदोलन को राजनीतिक पार्टियों ने टेक ओवर कर लिया है. इसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दल उठा रहे हैं.

अब इसमें खालिस्तान जैसे आतंकवादी संगठनों की भी एंट्री हो चुकी है जो ये धमकी दे रहे हैं कि जो हाल इंदिरा गांधी का हुआ था वही प्रधानमंत्री मोदी का भी होगा. ये खतरनाक बयान सुनकर आपको समझ आ जाना चाहिए कि ये आंदोलन अब किस दिशा में जा रहा है.

कुछ किसान खालिस्तान के हाथों का खिलौना बन गए 
किसानों के इस आंदोलन को कैसे कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल संजीवनी बूटी बनाना चाहते हैं और कैसे अब इस आंदोलन में शामिल कुछ किसान खालिस्तान के हाथों का खिलौना बन गए हैं. ये सारी बातें समझने के लिए आप हमारी Ground Report देखिए. इसके बाद हम किसानों की शंकाओं का समाधान करेंगे. खेतों में पसीना बहाने वाले किसानों का आंदोलन जब हाईजैक हो जाता है तो पत्थरबाजी, तोड़फोड़ और हंगामे की ऐसी ही तस्वीर दिखाई देती है. दिल्ली (Delhi) और हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर जब किसानों को रोका गया तो प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. जवाब में पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. कुछ प्रदर्शनकारियों के पास तलवार थी. वहीं कई किसानों ने उन्हें रोकने के लिए लगाई गई बैरिकेडिंग को भी तोड़ने की कोशिश की. यहां भी पुलिस ने पानी की बौछार करके उन्हें कंट्रोल किया.

किसान नेताओं से बातचीत करके पुलिस अधिकारियों ने उन्हें समझाने की कोशिश भी की. हालांकि पुलिसकर्मियों की बातों का किसानों पर कोई असर नहीं हुआ. पुलिस अपील करती रही लेकिन किसान उन पर धौंस जमाते रहे.

शुक्रवार को पूरे दिन दिल्ली (Delhi) की अलग-अलग सीमाओं पर पुलिस और किसानों के बीच ये संघर्ष चलता रहा. हालांकि दिनभर के हंगामे के बाद सरकार ने किसानों को दिल्ली (Delhi) के बुराड़ी में प्रदर्शन करने की इजाजत दे दी. इन किसानों का दावा था कि दिल्ली (Delhi) में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया जाएगा लेकिन ये जो कह कह रहे हैं वो सच्चाई से अलग है.

किसान आंदोलन (Farmers Protest) में आए एक आंदोलनकारी ने कहा, 'हमारा मकसद रोड ब्लॉक करना है. तब इनके कानों पर जूं रेंगेगी.' वहीं कई किसानों को कृषि कानून बिल के बारे में सामान्य जानकारी भी नहीं थी. उनके पास ZEE NEWS रिपोर्टर के सवालों के जवाब नहीं थे इसीलिए उन्होंने विरोध शुरू कर दिया.

प्रदर्शनकारियों का दावा है कि वो अगले 6 महीने तक सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाने की तैयारी कर चुके हैं. मुद्दा देश के सबसे बड़े वोट बैंक यानी किसानों से जुड़ा है इसीलिए अब राजनीति भी शुरू हो गई है.

दिल्ली (Delhi) की सीमाओं पर हो रहे प्रदर्शन का असर आम जनता पर भी पड़ा है. जगह-जगह पुलिस की बैरिकेडिंग की वजह से कई जगहों पर पूरी बारात ही फंस गई.

देश का अन्नदाता देश की भलाई के लिए बने नियमों को नहीं तोड़ सकता यानी पुलिस के साथ हिंसा में सभी किसान शामिल नहीं और ना ही वो इसका समर्थन करते हैं. हालांकि अब इस आंदोलन में हिंसा और नफरत शामिल हो गई है और इससे किसानों का हित होने की संभावना बहुत कम है.

Ground Report दिखाने से पहले हमने पंजाब के जिन 31 किसान संगठनों का जिक्र किया था. उनमें से 30 संगठनों ने कुछ दिनों पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को आंदोलन खत्म करने की तारीख दी थी. जबकि इनमें से एक संगठन जिसका नाम किसान संघर्ष समिति है. उसने कहा था वो ना तो पंजाब की सरकार के साथ हैं और ना ही केंद्र सरकार के साथ हैं.

ये सभी कानून किसानों की भलाई के लिए लाए गए हैं और इन्हें तैयार करने के लिए कृषि विशेषज्ञों की भी राय ली गई है, ज्यादातर Experts मानते हैं इन कानूनों से किसानों को फायदा होगा हालांकि कुछ लोग ये जरूर कहते हैं कि शायद सरकार इन कानूनों को लाने से पहले सभी की राय लेने में असफल रही.

पंजाब के किसानों की समस्या क्या है?
लेकिन अगर आप गौर करेंगे तो इस तरह के उग्र प्रदर्शन किसी और राज्य के किसान नहीं कर रहे. ऐसा क्यों है ये आपको समझना चाहिए. दरअसल भारत का 25 प्रतिशत अनाज पंजाब और हरियाणा के किसान ही उगाते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर किसान सिर्फ धान और गेहूं की खेती पर ही केंद्रित हैं. जबकि आस पड़ोस के कई राज्यों के किसानों ने अपनी फसलों को Diversified किया है. इसका अर्थ है ऐसी अलग-अलग फसलों को उगाना या उन चीजों की खेती करना जिनकी मांग स्थानीय बाजारों में भी होती हैं. उदाहरण के लिए मधुमक्खी पालन या डेरी उत्पादन.

लेकिन पंजाब के ज्यादातर किसान ऐसा नहीं कर पाए और सरकारों ने भी किसानों को ऐसा करने के लिए कभी दिल से प्रोत्साहित नहीं किया धीरे-धीरे अब पंजाब में उगाए जाने वाले गेहूं की गुणवत्ता कम होने लगी है, धीरे-धीरे पंजाब में पानी की भी भयंकर कमी होने लगी है और किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा है. पंजाब में फिलहाल Freight Corridors भी सीमित संख्या में है. इसीलिए अगर पंजाब के किसान दूसरी फसलें उगाना भी चाहें तो उनके लिए जरूरी कच्चा माल लाना और ले जाना आसान नहीं है. भंडारण की सुविधा का अभाव है और Processing Units भी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. यानी देखने में भले ही पंजाब का किसान देश का सबसे खुशहाल किसान लगे लेकिन असल में पंजाब के किसान पिछड़ते जा रहे हैं.

पंजाब में सफल हो सकती थी Polly House Farming
उदाहरण के लिए जो Polly House Farming पंजाब में सफल हो सकती थी. उसके बारे में किसानों को ज्यादा जानकारी ही नहीं है, जबकि पुणे जैसे शहर में किसान Polly House Farming से लाखों रुपये कमा रहे हैं. इस Farming के तहत Polythene Sheets लगाकर उसके नीचे फल, सब्जियां और फूल उगाए जाते हैं. इस तरह से खेती करने पर मौसम की वजह से फसल के खराब होने का डर नहीं रहता. यानी एक तरफ तो पंजाब के किसानों में जागरूकता का अभाव है और दूसरी तरफ सरकारें भी उन्हें जागरुक करने का कोई प्रयास नहीं करती. इसी का नतीजा है कि किसान आसानी से बहक जाते हैं और इस तरह के आंदोलन शुरू हो जाते है.

किसान आंदोलन (Farmers Protest) पर पाकिस्तान की नजर
पंजाब के किसानों द्वारा किए जा रहे इस आंदोलन पर पाकिस्तान की भी नजर है. पाकिस्तान इन आंदोलनों में खालिस्तान समर्थकों की एंट्री चाहता है ताकि इस आंदोलन को और उग्र बनाया जा सके. इस आंदोलन में पाकिस्तान भी अपने लिए एक शानदार अवसर देख रहा है और इस आंदोलन में खालिस्तानियों की एंट्री इसी बात का सबूत है. आपको खालिस्तान की भाषा में प्रधानमंत्री मोदी को दी गई धमकी सुननी चाहिए. विदेशों में जो संगठन खालिस्तान का समर्थन करते हैं वो भी इस आंदोलन के विरोध में अलग-अलग तरीकों से प्रचार कर रहे हैं. इस आंदोलन को विदेशों में बसे कुछ भारतीयों का भी समर्थन मिल रहा है.

भारत सरकार के सामने दोहरी चुनौती
पंजाब से हर साल बड़ी संख्या में लोग विदेशों में बस जाते हैं. विदेश में जाकर बस गए लोगों की बातों को आज भी पंजाब के ग्रामीण इलाकों में बहुत गंभीरता से लिया जाता है, क्योंकि यहां के लोग अब भी बड़े पैमाने पर Canada और अमेरिका जैसे देशों में बसना चाहते हैं. लेकिन अब कुछ देश विरोधी संगठन, विदेशों में बसे इन भारतीयों को भी गुमराह कर रहे हैं और इन्हें ये बताया जा रहा है कि भारत में बैठे इनके किसान रिश्तेदार संकट में हैं. ऐसे में भारत सरकार को सिर्फ अपने देश के लोगों को ही नहीं बल्कि देश के बाहर बस चुके लोगों को भी विश्वास में लेना होगा.

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