DNA ANALYSIS: Hathras में अब क्या हालात हैं, किस हाल में जी रहा पीड़िता का परिवार?
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DNA ANALYSIS: Hathras में अब क्या हालात हैं, किस हाल में जी रहा पीड़िता का परिवार?

हम एक बार फिर हाथरस (Hathras) के उस बूलगढ़ी गांव गए जहां पीड़िता की हत्या की कोशिश की गई थी. जिसके बाद दिल्ली (Delhi) के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई . हमारी रिपोर्टिंग टीम ने इस गांव में जाकर ये समझने की कोशिश की और जाना कि TRP वाले तुष्टीकरण का तमाशा और नेताओं के अपने अपने आलीशान बंगलों में वापस आ जाने के बाद अब पीड़ित का परिवार किस हाल में जी रहा है?

DNA ANALYSIS: Hathras में अब क्या हालात हैं, किस हाल में जी रहा पीड़िता का परिवार?

नई दिल्ली: अब हम पत्रकारिता और राजनीति के उस तूफान की बात करेंगे जो डेढ़ महीना पहले हाथरस (Hathras) में आया था. लेकिन अब वहां पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ है. हाथरस पहुंचने के लिए कई नेताओं ने मीडिया के सामने ड्रामा किया. इन नेताओं ने हाथरस पहुंचकर पीड़ित परिवार के साथ ली गई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर डाले. दूसरी तरफ वहां मौजूद हर पत्रकार पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए क्रांतिकारी पत्रकारिता कर रहा था. कुल मिलाकर सब न्याय के ठेकेदार बनना चाहते थे. पत्रकारों और नेताओं में इस बात की होड़ लगी हुई थी कि सबसे पहले पीड़ित परिवार तक कौन पहुंचेगा. लेकिन अब ये सब लोग हाथरस को पूरी तरह भुला चुके हैं.

नेताओं ने हाथरस की घटना के बाद 24 घंटे का भी इंतजार नहीं किया था और राजनैतिक पर्यटन के लिए रातों रात हाथरस पहुंच गए थे.

हाथरस पहुंचने के लिए इन नेताओं ने पुलिस के सारे बंदोबस्त तोड़ दिए थे और बिना देर किए आरोपियों और पीड़ित की जाति ढूंढ ली थी.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की वो तस्वीरें आपको भी याद होंगी जब वो पुलिस द्वारा रोकने के बावजूद पैदल ही हाथरस की तरफ बढ़ रहे थे. RLD के नेता जयंत चौधरी को तो हाथरस जाने के लिए पुलिस की लाठियां तक खानी पड़ी थी, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के चहेरे पर हाथरस में स्याही तक फेंक दी गई थी. फिर भी ये सभी नेता हाथरस पहुंचे. इन्होंने पीड़ित परिवार को गले लगाया, आंसू बहाए, तस्वीरें खिंचवाई उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भी डाला और खूब वाहवाही बटोरने की कोशिश की. दूसरी तरफ मीडिया था जो किसी भी कीमत पर नेताओं से पहले पीड़ित परिवार तक पहुंचना चाहता था.

इसके लिए पत्रकारों ने हाथरस से बूलगढ़ी गांव में एक तरह से अपने कैम्प डाल दिए थे, पत्रकार उन्हें रोकने वाली पुलिस से लड़ रहे थे, बहस कर रहे थे, सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा रहे थे, कैमरा ऑन होते ही पत्रकार दिखाने लगते थे कि उनकी भागदौड़ में कोई कमी नहीं है. लेकिन कुछ ही दिनों में मीडिया ने हाथरस की घटना से TRP का सारा रस निचोड़ लिया और मीडिया के कैमरे वापस दिल्ली और नोएडा के स्टूडियोज में लौट आए. लेकिन हमने ऐसा नहीं किया, हमने लगातार हाथरस पर नज़र रखी और आपको इस घटना का एक एक अपडेट दिया, हम एक बार फिर हाथरस के उस बूलगढ़ी गांव गए जहां पीड़िता की हत्या की कोशिश की गई थी. जिसके बाद दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई.

हमारी रिपोर्टिंग टीम ने इस गांव में जाकर ये समझने की कोशिश की और जाना कि TRP वाले तुष्टीकरण का तमाशा और नेताओं के अपने अपने आलीशान बंगलों में वापस आ जाने के बाद अब पीड़िता का परिवार किस हाल में जी रहा है? हमारे देश में ये परंपरा है कि एक खबर को कुछ दिनों के बाद ही भुला दिया जाता है. लेकिन Zee News ने इस खबर का Follow-up किया और हाथरस (Hathras) में आज के हालात क्या हैं ये समझने की कोशिश की.

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