DNA ANALYSIS: सांसदों की छंटनी पर इस देश ने करवाया जनमत संग्रह, किया ये फैसला
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DNA ANALYSIS: सांसदों की छंटनी पर इस देश ने करवाया जनमत संग्रह, किया ये फैसला

कोरोना वायरस महामारी के बाद से दुनिया भर में नौकरियों में कटौती हो रही है. यह बहस शुरू हो गई कि जब आम लोगों की नौकरियां जा रही हैं तो फिर राजनेताओं की क्यों नहीं?

DNA ANALYSIS: सांसदों की छंटनी पर इस देश ने करवाया जनमत संग्रह, किया ये फैसला

नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के बाद से दुनिया भर में नौकरियों में कटौती हो रही है. इटली में यह बहस शुरू हो गई है कि जब आम लोगों की नौकरियां जा रही हैं तो फिर राजनेताओं की क्यों नहीं? इटली (Italy) में एक जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें वहां की जनता ने बता दिया है कि देश चलाने के लिए इतने सांसदों की जरूरत नहीं है.

दो-तिहाई से ज्यादा लोग चाहते हैं कि सांसदों की छंटनी हो
20 और 21 सितंबर को इटली में सरकार ने यह जनमत संग्रह करवाया था. लोगों से पूछा गया कि क्या वो संसद के सदस्यों की संख्या में 35 प्रतिशत से ज्यादा कटौती चाहते हैं या नहीं? इटली के करीब 63 प्रतिशत लोगों ने जवाब हां में दिया यानी इटली के दो-तिहाई से ज्यादा लोग चाहते हैं कि सांसदों की छंटनी हो.

इस जनमत संग्रह को स्वीकार कर लिया गया है. वर्ष 2023 से इटली में संसद के सदस्यों की संख्या 945 से घटाकर 600 कर दी जाएगी. ये दावा किया जा रहा है कि इससे इटली के संसद के काम में सुधार होगा और पैसा भी बचेगा. एक अनुमान के अनुसार इटली में संसद के आकार में कटौती से अगले 10 वर्षों में 100 करोड़ यूरो की बचत होगी यानी 86 अरब 6 करोड़ रुपये बचेंगे.

आपको इटली की संसदीय व्यवस्था की भी थोड़ी सी जानकारी दे देते हैं. भारत की तरह इटली में भी संसद के 2 सदन होते हैं. इटली के निचले सदन को Chamber of Deputies या प्रतिनिधि सभा कहा जाता है. इस प्रतिनिधि सभा में 630 सदस्य होते हैं और इनका चुनाव भारत के लोकसभा चुनाव जैसा ही होता है. इटली की संसद के दूसरे सदन को सीनेट कहा जाता है. इटली की सीनेट में 315 सदस्य होते हैं.

सीनेट का सदस्य बनने के लिए 40 वर्ष या उससे ज्यादा की उम्र का होना जरूरी है और सीनेट के चुनाव में वोट देने के लिए मतदाता की उम्र 25 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए. भारत की तरह इटली में भी कोई कानून तभी पास हुआ माना जाता है, जब वहां के दोनों सदन इसको मंजूरी दे.

भारत में भी इटली वाला मॉडल लागू हो सकता है?
सोचिए, जब 6 करोड़ की जनसंख्या वाला देश इटली अपने खर्च की कटौती के लिए इतना बड़ा फैसला ले सकता है, तो क्या देशहित में भारत में भी इटली वाला मॉडल लागू हो सकता है?

वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, संसद की कार्यवाही पर प्रति घंटे डेढ़ करोड़ रुपये खर्च होते हैं. यानी प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर करीब ढाई लाख रुपए खर्च होते हैं. अगर 1 मिनट भी संसद का समय बर्बाद होता है तो जनता के ढाई लाख रुपए बेकार हो जाते हैं. हमारे सांसदों को क्या इस बारे में नहीं सोचना चाहिए? एक वर्ष में संसद के सत्रों की अवधि कुल मिलाकर करीब 100 दिनों की होती है. संसद में ऐसे कम ही मौके आते हैं जब कामकाज शांतिपूर्ण तरीके से हो.

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राज्यसभा में जब किसानों से जुड़े बिल पर चर्चा हो रही थी तो कुछ सांसदों ने सदन का कीमती समय इसलिए बर्बाद कर दिया क्योंकि वो बिल का विरोध कर रहे थे. लोकतंत्र में हर व्यक्ति के पास असहमति का अधिकार है. लेकिन जब जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही जनता के लिए बनने वाले कानून के खिलाफ संसद का समय बर्बाद करते हैं तो अंत में दबाव हमारी और आपकी जेब पर ही पड़ता है.

संविधान के अनुसार भारत में लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 हो सकती है. इसी तरह राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है. लोक सभा के लिए 543 सीटों पर चुनाव करवाए जाते हैं और 2 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं. राज्यसभा में इस वक्त सांसदों की क्षमता 245 है जिनमें से एक तिहाई सदस्य हर 2 वर्ष पर रिटायर हो जाते हैं. इस लिहाज से लोकसभा और राज्य सभा में सांसदों की कुल संख्या 790 है.

इस वक्त भारत की जनसंख्या 1 अरब 37 करोड़ है जिनका प्रतिनिधित्व कुल 790 सांसद करते हैं.

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हाल ही में संसद ने सांसदों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती का बिल पास किया. इससे पहले हर सांसद का मूल वेतन 1 लाख रुपए था. इसके अलावा सांसद को 45 हजार रुपए निर्वाचन क्षेत्र भत्ता मिलता है. ऑफिस के लिए हर महीने 45 हजार रुपए मिलते हैं. सत्र में शामिल होने के लिए हर दिन 2 हजार रुपए मिलते हैं. इसके अलावा सांसद को हवाई यात्रा और रेल यात्रा के मुफ्त टिकट, पानी-बिजली और फोन के लिए भत्ते भी मिलते हैं.

हम ये फैसला आप पर छोड़ते हैं कि क्या भारत को भी इटली की तरह अपने संसद के खर्च में कटौती के लिए संसद का आकार छोटा करना चाहिए या नहीं. हम ये मानते हैं कि मुश्किल वक्त में बचाया गया एक रुपया भी किसी की जान बचाने में काम आ सकता है. अगर जनता से सब्सिडी छोड़ने की उम्मीद की जा सकती है तो क्या जनहित में सांसदों को भी मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं का त्याग नहीं कर देना चाहिए.

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