फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती देश की संसद के अनुच्छेद 370 और 35-A हटाने के जिस फैसले का विरोध कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्विटर पर अपना एक बयान पोस्ट किया है.
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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने ट्विटर पर अपना एक बयान पोस्ट किया है. महबूबा मुफ्ती ने अपने इस ऑडियो संदेश में धारा 370 (Article 370) को दोबारा हासिल करने का ऐलान किया है. 434 दिन बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन की हिरासत से महबूबा मुफ्ती को मंगलवार रात रिहा किया गया था. रिहाई के दो घंटे बाद ही महबूबा मुफ्ती ने ब्लैक स्क्रीन करके एक ऑडियो संदेश ट्वीट किया.
आपको याद होगा कि दो दिन पहले ही फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को दोबारा लागू करने के लिए चीन से मदद मांगी थी.
महबूबा मुफ्ती की रिहाई के बाद फारूक और उमर अब्दुल्ला उनके घर मिलने पहुंचे थे, ये तस्वीर भी ट्विटर पर पोस्ट की गई है. इस तस्वीर में जम्मू कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्री जिस लॉन में बैठे हुए हैं, वो महबूबा मुफ्ती का सरकारी आवास है. बतौर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती इसी आवास में रहती थीं. वो सारी सुख सुविधाएं जो उन्हें उस समय मिलती थीं, वो आज भी उन्हें मिल रही हैं. महबूबा मुफ्ती की सुरक्षा में आज भी एसएसजी यानी स्पेशल सिक्योरिटी ग्रुप तैनात है. सुरक्षा और निवास पर होने वाला खर्च आज भी सरकारी खजाने से होता है.
After being released from fourteen long months of illegal detention, a small message for my people. pic.twitter.com/gIfrf82Thw
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) October 13, 2020
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश तोड़ने की बात
फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती देश की संसद के अनुच्छेद 370 और 35-A हटाने के जिस फैसले का विरोध कर रहे हैं लेकिन उसी संसद से मिलने वाली तनख्वाह आज भी फारूक अब्दुल्ला के बैंक अकाउंट में जाती है, लुटियंस दिल्ली में उन्हें जो सरकारी बंगला मिला हुआ है, सुरक्षा मिली हुई है, उसका खर्च भारत सरकार उठाती है. पूर्व सांसद होने के नाते महबूबा मुफ्ती के खाते में भी पेंशन जाती है. ये सारा पैसा देश के टैक्स पेयर्स की मेहनत का है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक लोकतंत्र के नाम पर, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसे लोग देश तोड़ने की बात खुलेआम करते रहेंगे और देश यूं ही उन्हें सुनता रहेगा. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बयान सुनकर कुछ प्रश्न अवश्य आपके जेहन में उठ रहे होंगे. आईए अब उनका विश्लेषण करते हैं.
पहली बात जो आप सोच रहे होंगे कि अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे लोगों के रहते बाहरी दुश्मनों की क्या जरूरत है? जब अपने ही देश में ऐसे लोग मौजूद हैं तब हमें चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों की क्या जरूरत है?
दूसरा सवाल ये है कि ऐसे देश विरोधी बयान देने की आजादी कब तक मिलती रहेगी. जब किसी सांसद को आपकी बात पसंद नहीं तो वो आपके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे देता है. अदालत के फैसले पर कोई टिप्पणी कर देता है तो उस पर अवमानना का आरोप लग जाता है लेकिन ऐसे लोग जो भारत देश के खिलाफ बोलते हैं उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती. उनके खिलाफ सड़क से संसद तक कोई आवाज क्यों नहीं उठाता.
तीसरा सवाल ये है कि जब फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने संविधान की शपथ लेकर जम्मू कश्मीर पर शासन किया था. तब क्या इन्होंने राष्ट्रहित में सारे निर्णय लिए होंगे? ये बहुत बड़ा प्रश्न है क्योंकि जम्मू कश्मीर एक संवेदनशील राज्य है, जहां आए दिन आतंकवादी हमले होते हैं, एनकाउंटर होते हैं. क्या जम्मू कश्मीर में सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों को राज्य सरकार का पूरा सहयोग मिलता रहा होगा? महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला के हाल के बयानों के बाद क्या उनके फैसलों की जांच की जानी चाहिए.
चौथा प्रश्न है जब फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे राजनेता संसद के फैसले को पलटने की बात खुलेआम करते हैं. तब इनकी संसद सदस्यता रद्द क्यों नहीं की जाती. इन नेताओं की पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द क्यों नहीं किया जाता. महबूबा मुफ्ती इस समय पीडीपी यानी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष हैं और फारूक अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के सबसे बड़े नेता. पार्टी की कमान भले ही उन्होंने अभी बेटे उमर अब्दुल्ला को दे रखी है लेकिन पार्टी के निर्णयों पर आखिरी मुहर उन्हीं की होती है.
इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने कुछ कानूनी जानकारों से बात की है उनके मुताबिक,
-कोई भारतीय नागरिक इस तरह के बयानों के खिलाफ देश में कहीं भी एफआईआर दर्ज करा सकता है.
-हमारे चुने हुए प्रतिनिधि चाहें सांसद हो या विधायक वो भी ऐसे बयान देने वालों के खिलाफ एफआईआर कर सकते हैं. ऐसे बयान आईपीसी की धारा 124 ए यानी देशद्रोह के दायरे में आते हैं.
-इस तरह के बयानों पर हमारी संसद क्या एक्शन ले सकती है?
Representation of people act 1951 यानी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत संसद एक प्रस्ताव ला सकती है. जिसके तहत फारूक अब्दुल्ला जैसे सांसद की सदस्यता रद्द की जा सकती है. चुनाव आयोग से ऐसी पार्टियों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की जा सकती है.
इनकी राजनीति का मिशन परिवार को सत्ता दिलाना
यहां एक बात जरूर जाननी चाहिए कि फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी जम्मू कश्मीर की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं. दोनों पार्टियां हर चुनाव एक दूसरे के खिलाफ लड़ती रही हैं. एक दूसरे की नीतियों का विरोध करती रही हैं. ये सिलसिला चुनाव दर चुनाव चलता रहा है. यदि इन दोनों दलों में कुछ कॉमन है तो वो है परिवारवाद और पाकिस्तान. दशकों से इनकी राजनीति का मिशन परिवार को सत्ता दिलाना और पाकिस्तान की हां में हां मिलाना रहा है. अनुच्छेद 370 हटने के बाद दोनों राजनीतिक दलों के ये दोनों दुकानें बंद हो चुकी हैं. पाकिस्तान से मिलने वाली रसद पर रोक लग चुकी है और परिवारवाद की राजनीति का भविष्य अंधकारमय हो चुका है.
मुफ्ती और अब्दुल्ला की जुगलबंदी
मुफ्ती और अब्दुल्ला की मौजूदा जुगलबंदी कुछ वैसी ही है, जैसी दो दिन पहले हमने पूरे बॉलीवुड में देखी. खुद को बचाने के लिए पूरे बॉलीवुड के सारे ग्रुप 70 वर्ष में पहली बार एकजुट हो गए. उसी तरह महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला की ये दोस्ती भी शायद अपना अस्तित्व बचाने के लिए है. ये अस्तित्व खत्म होने का डर है जो दोनों का पास पास ला रहा है. डर बड़े-बड़े दुश्मनों को भी एक साथ ला देता है.
क्या फारूक अब्दुल्ला को चीन में वीगर मुसलमानों की हालत नहीं पता?
देश में मुसलमानों के अधिकारों या हितों का जब कोई मुद्दा उठता है, तब भी अब्दुल्ला और मुफ्ती खुलकर साथ आ जाते हैं. हम इसे बिल्कुल गलत नहीं मानते जब वो मुसलमानों के हित या अधिकारों की बात करते हैं. लेकिन क्या फारूक अब्दुल्ला को नहीं पता कि चीन में वीगर मुसलमानों की क्या हालत है? किस तरह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सरकार ने उन्हें डिटेंशन कैंपों में ठूंसकर रखा हुआ है. फारूक अब्दुल्ला जब चीन से मदद की मांग करते हैं, तब क्या उन्हें वीगर मुसलमानों को अधिकार याद नहीं आते?