Mumbai Vaccine Scam: 30 मई को मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी में वैक्सीनेशन कैम्प लगाया गया था और सोसायटी में रहने वाले 390 लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन की पहली डोज लगाई गई थी.
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नई दिल्ली: मुंबई की 9 हाउसिंग सोसायटीज और कई प्राइवेट कंपनियों के दफ्तरों में हजारों लोगों को कोरोना की नकली वैक्सीन लगा दी गई और इन लोगों को इस बात का पता तब चला जब वैक्सीन लगवाने के बाद इनमें से किसी भी व्यक्ति पर इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ.
कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपके साथ भी वैक्सीन को लेकर कोई ऐसी ही धोखाधड़ी कर रहा हो या आगे जाकर करे? आज हमने इस पूरे मामले पर काफी रिसर्च की है और अब हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.
ये खबर मुंबई से आई है, जहां पिछले दिनों, 9 जगहों पर फेक वैक्सीनेशन कैम्प लगाए गए और लगभग दो हजार लोगों ने इन कैम्पों में वैक्सीन लगवाई, लेकिन अब यही सारे लोग पुलिस ये पूछ रहे हैं कि उन्हें लगाई गई वैक्सीन कहीं नकली तो नहीं थी. ये मामला बहुत गंभीर है, इसलिए हम चाहते हैं कि आप इस खबर को बहुत ध्यान से सुनें.
30 मई को मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी में वैक्सीनेशन कैम्प लगाया गया था और सोसायटी में रहने वाले 390 लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन की पहली डोज लगाई गई थी. जिस टीम ने इस वैक्सीनेशन कैम्प लगाया, उसने बताया कि वो मुंबई के एक बड़े अस्पताल से आई है और इस टीम ने हर एक व्यक्ति से वैक्सीन की एक डोज के लिए 1260 रुपये लिए.
यानी इस हिसाब से 390 लोगों ने वैक्सीन लगवाने के लिए इस टीम को 4 लाख 91 हजार 400 रुपये दिए. हालांकि ये पैसे इन लोगों के लिए ज्यादा नहीं थे, बल्कि जिस दिन उन्हें वैक्सीन लगी, तब सभी लोग खुश थे और इस खुशी की दो वजह थीं, एक तो इन लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ा और दूसरी वजह ये कि इससे इन्हें कोविन एप पर वैक्सीन के लिए अपॉइंटमेंट भी नहीं लेनी पड़ी.
लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही. 390 लोगों को इस सोसायटी में वैक्सीन तो लगी लेकिन किसी को भी वैक्सीन लगने के बाद अपने शरीर में कोई बदलाव नहीं दिखा.
मेडिकल जर्नल द लैंसेट के मुताबिक, कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले हर चार में एक व्यक्ति में इसके मामूली साइड इफेक्ट दिखते हैं और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी मानता है कि वैक्सीन लगवाने के बाद कुछ मामलों में हल्का बुखार, सिर में दर्द, थकान और पेट में दर्द हो सकता है. लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और यहीं से इन लोगों को इस वैक्सीनेशन पर शक हुआ.
ये शक तब और बढ़ गया, जब इन लोगों को वैक्सीन लगवाने के एक हफ्ते तक वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट नहीं मिला और जब मिला भी तो हर सर्टिफिकेट में अलग तारीख और अलग वैक्सीनेशन सेंटर का नाम लिखा था. यानी ये सर्टिफिकेट भी वैक्सीनेशन कैम्प की तरह फर्जी थे. इसके बाद जब लोग उन अस्पतालों में पहुंचे, जहां से इस टीम ने आने का दावा किया था तो पता चला कि अस्पताल ने तो ऐसा कोई वैक्सीनेशन कैम्प लगाया ही नहीं है. यानी यहां ये बात स्पष्ट हो गई कि इन लोगों के साथ वैक्सीन के नाम पर धोखा हुआ है.
हालांकि असली कहानी अब भी खुलनी बाकी थी क्योंकि, मामला जब पुलिस के पास गया तो पता चला कि मुंबई में ऐसा अकेला एक फर्जी वैक्सीनेशन कैम्प नहीं लगा है, बल्कि ऐसे 9 कैम्प यही टीम लगा चुकी है और इन लोगों ने ऐसा करके कई लोगों को चूना लगाया और लाखों रुपये इससे कमा लिए. पुलिस इनमें से चार आरोपियों को गिरफ्तार भी कर चुकी है.
पुलिस के मुताबिक, पकड़े गए लोगों में हर एक व्यक्ति का अलग काम था. एक व्यक्ति वैक्सीनेशन कैम्प के लिए हाउसिंग सोसायटीज के पास जाता था और उन्हें एक तारीख बता देता था कि किस तारीख को वहां वैक्सीन लगेगी. फिर कुछ लोग उस सोसयटी में जाकर लोगों की जानकारी जैसे नाम पता और आधार कार्ड का नम्बर नोट कर लेते थे और फिर वैक्सीनेशन वाले दिन ये टीम इन लोगों को वैक्सीन लगाती थी.
मुंबई पुलिस ने इस मामले में Adulterated Vaccine का मामला दर्ज किया है. यानी फर्जी और मिलावटी वैक्सीन लोगों को लगाना क्योंकि, शिकायत करने वाले लोगों ने बताया है कि उन्हें जिन वायल से वैक्सीन लगाई गई, वो खुली हुई थी. अब बड़ा सवाल है कि क्या ये सिर्फ मुंबई या सिर्फ भारत में हो रहा है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
तो इस विषय में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है, जो मार्च महीने में प्रकाशित हुई थी और इस रिपोर्ट में WHO ने कहा था कि उसे कई देशों के स्वास्थ्य मंत्रालयों से ये खबर मिली है कि वहां नकली वैक्सीन की खेप बरामद हुई है. इस रिपोर्ट में तब WHO ने ये भी कहा था कि नकली वैक्सीन बनाने वाले लोग असली वैक्सीन की खाली वायल को इकट्ठा करते हैं और फिर इस काम को अंजाम देते हैं. नकली वैक्सीन का ये पूरा जाल मुंबई की हाउसिंग सोसायटीज से लेकर इंटरनेशनल डार्क वेब तक फैला हुआ है.
डार्क वेब पर इस समय फाइजर, मॉडर्ना, स्पूतनिक वी, कोविशील्ड और जॉनसन एंड जॉनसन की कोरोना वैक्सीन बेची जा रही है और वैक्सीन की एक डोज के लिए 50 से 60 हजार रुपये तक लिए जा रहे हैं और इस डोज की कोई गारंटी भी नहीं है. सोचिए ये रैकेट कहां तक फैला हुआ है और ये कितना गंभीर मामला है.
इजरायल ने हाल ही में एक रिसर्च में बताया था कि डार्क वेब पर जनवरी के महीने में 600 अलग अलग माध्यमों से फेक वैक्सीन और उन वैक्सीन्स के फेक सर्टिफिकेट्स बेचे जा रहे थे, लेकिन इनकी संख्या मार्च महीने में 1200 हो गई और भारत भी ऐसे लोगों के निशाने पर है.
अप्रैल के महीने में जब देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर चरम पर थी और वैक्सीन की कमी का संकट था, तब बहुत से लोगों के मोबाइल फोन पर ये मैसेज आया कि वो उनके द्वारा भेजे गए लिंक की मदद से वैक्सीन के लिए आसानी से अपॉइंटमेंट ले सकते हैं.
लेकिन बाद में पता चला कि ये लिंक सरकार की तरफ से नहीं भेजा गए थे बल्कि इन पर क्लिक करने से लोगों के फोन में एक खतरनाक ऐप डाउनलोड हो जाती थी, जो फोन से उनका सारा डेटा चुरा लेती थी. यानी इस मामले को जितना मामूली समझा जा रहा है, उतना ये है नहीं.
इस समय दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, चंडीगढ़, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, चेन्नई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में कई टीमें हाउसिंग सोसायटीज और प्राइवेट कंपनियों के दफ्तर में वैक्सीनेशन कैम्पों का आयोजन कर रही हैं और ऐसी खबरें हैं कि इन शहरों में भी लोगों ने वैक्सीनेशन और उसके सर्टिफिकेट को लेकर शिकायत की है. बड़ी बात ये है कि ये लोग इस पर केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों को जानते ही नहीं हैं.
लेकिन आज हम आपको इसके बारे में भी बताना चाहते हैं.
केद्र सरकार ने 29 मई को एक आदेश जारी करके बताया था कि हाउसिंग सोसायटीज, सरकारी दफ्तर, प्राइवेट कंपनियों के दफ्तर, RWA के दफ्तर और वृद्ध आश्रम में वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाया जा सकता है. इसके लिए हाउसिंग सोसायटीज और प्राइवेट कंपनियां निजी अस्पतालों से संपर्क कर सकती हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने इस प्रक्रिया में कुछ बातों का ध्यान रखने की सलाह दी है. इसे आप चार पॉइंट्स में समझिए
पहली सलाह- वैक्सीनेशन के लिए हाउसिंग सोसायटीज निजी अस्पतालों के साथ M.O.U यानी Memorandum of Understanding पर सहमति बना सकती हैं. इससे ये सुनिश्चित हो जाएगा कि वैक्सीनेशन कैम्प वही अस्पताल लगाने वाला है.
दूसरी सलाह- वैक्सीनेशन से पहले जिला स्वास्थ्य विभाग को इसकी जानकारी जरूर दें ताकि विभाग सारी प्रक्रिया की जांच करके उस हाउसिंग सोसायटी को प्राइवेट वैक्सीनेशन सेंटर बनाने के लिए रजिस्टर कर सके. इससे होगा ये कि आपकी सोसायटी कोविन ऐप पर रजिस्टर हो जाएगी और आपके साथ कोई धोखाधड़ी नहीं होगी.
तीसरी सलाह- अगर कोई आपसे ये दावा करता है कि वो आपको कोविन ऐप पर बिना रजिस्टर किए वैक्सीन लगवा देगा तो सरकार कहती है कि वो व्यक्ति आपसे झूठ बोल रहा है और आपको उसकी बातों में नहीं आना है.
और चौथी सलाह- अगर आपको आपकी सोसायटी में वैक्सीन लग रही है या दफ्तर की तरफ से वैक्सीन लगवाई जा रही है तो आपको वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट तुरंत मिल जाएगा. अगर आपसे कोई ये कहता है कि वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दो से तीन दिन बाद मिलेगा तो वो आपसे झूठ बोल रहा है.
इन बातों को ध्यान रख कर आप इस धोखाधड़ी से बच सकते हैं. आज हमने इस पर आपके लिए रिपोर्ट भी तैयार की है, जो आपको फर्जी वैक्सीनेशन के बारे में भी बताएगी और इससे बचने के लिए कुछ खास टिप्स भी देगी.
मुंबई में एक हाउसिंग सोसायटी के लोगों ने 30 मई को अपने यहां वैक्सीनेशन कैंप लगवाया. इसके बाद वो निश्चिंत हो गए की वैक्सीन की पहली डोज लग गई है तो संक्रमण से बचे रहेंगे. उन्हें अंदाजा नहीं था कि वो एक फर्जीवाड़े का शिकार हो गए हैं.
कांदिवली की सोसायटी में 390 लोगों को 1260 रुपये लेकर वैक्सीन लगाई गई और जब किसी में भी किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं दिखा तो लोग परेशान हो गए. लोगों ने वैक्सीन लगाने वालों से सर्टिफिकेट मांगा तो उसमें भी आनाकानी होने लगी. अब लोगों को साफ हो गया कि वो धोखे का शिकार हो गए हैं.
इस मामले में जब सोसायटी के लोगों ने शिकायत दर्ज करवाई तब पता चला गया कि फर्जी वैक्सीन को लेकर एक बड़ा रैकेट चल रहा था. जिसमें बिना किसी अनुमति या अस्पताल से जुड़े होकर वैक्सीनेशन कैंप लगाया गया था. पुलिस की जांच से पता चला है कि वैक्सीनेशन रैकेट चलाने वालों ने 9 जगहों पर वैक्सीनेशन कैंप लगाए थे और किसी के लिए भी BMC से मंजूरी नहीं ली गई थी.
वैक्सीनेशन के दौरान वहां डॉक्टर नहीं था. कैंप वाली जगह पर कोई एंबुलेंस नहीं थी. वैक्सीन कहां से उपलब्ध हुई ये भी स्पष्ट नहीं है. जिन 280 लोगों को सर्टिफिकेट दिए गए वो भी अलग-अलग सेंटर्स के थे. वैक्सीन के लिए कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन भी नहीं किया गया था, बल्कि एक्सेल शीट पर नाम लिखे गए थे.
फिलहाल इस मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 4 लोगों को हिरासत में लिया है, जिसमें वैक्सीन उपलब्ध करना वाला शख्स मध्य प्रदेश से पकड़ा गया है.
अब इस मामले में पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही हैं, लेकिन फर्जीवाड़े का शिकार लोग ये भी नहीं जानते कि उन्हें वैक्सीन ही लगाई गई थी या नहीं और अगर दी गई वैक्सीन कोरोना वायरस से संबंधित नहीं थी तो उसमें क्या था? लोग अब इस बात से डरे हुए हैं.