DNA ANALYSIS: कश्मीर से काबुल तक कट्टरता ने मारा, तारीख बदल गई तड़प नहीं
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DNA ANALYSIS: कश्मीर से काबुल तक कट्टरता ने मारा, तारीख बदल गई तड़प नहीं

आज जिस तरह अफगानिस्तान के नागरिक अपनी जान खतरे में डालकर अपना देश छोड़कर भाग रहे हैं. वैसे ही 1990 में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागना पड़ा था. लेकिन शुक्र ये है कि भारत ने कश्मीर में कभी भी विदेशी ताकतों को घुसने नहीं दिया.

DNA ANALYSIS: कश्मीर से काबुल तक कट्टरता ने मारा, तारीख बदल गई तड़प नहीं

नई दिल्ली: अलग-अलग अनुमानों के मुताबिक वर्ष 1990 में 5 से 7 लाख कश्मीरी पंडितों ने अपना घर बार छोड़ दिया था और वो जम्मू समेत देश के दूसरे हिस्सों में शरणार्थी बन गए थे. यानी देश के 5 से 7 लाख नागरिकों को अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ा था. इसी तरह आज करीब 25 लाख अफगानी नागरिक दुनिया के अलग अलग हिस्सों में शरण मांग रहे हैं. तालिबान की तरह उस समय भी कश्मीरी पंडितों के सामने 3 ही विकल्प थे.

  1.  1990 में जब कश्मीरी पंडित घर छोड़ने पर हुए मजबूर
  2. आज अफगानिस्तान में भी कट्टरपंथियों ने लोगों को किया बेघर
  3. भारत ने कट्टरपंथियों का किया मुकाबला, नहीं ली विदेशियों की मदद

कश्मीरी पंडितों के सामने भी थे 3 ही विकल्प

आज अफगानिस्तान से पलायन ठीक उसी तरह जैसे 1990 में कश्मीर से कश्मीरी पंडितो का हुआ था. 1990 में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागने पर मजबूर किया था. तालिबान की तरह ही उनके सामने भी तीन विकल्प रखे गए थे. इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों के सामने पहली शर्त रखी थी कि व इस्लाम कबूल कर लें. दूसरा विकल्प था कश्मीर छोड़कर चले जाएं और तीसरा वो मरने के लिए तैयार रहें. 31 साल बाद तालिबान ने भी अफगानिस्तान के लोगों के सामने यही तीन शर्तें रखी हैं. पहली शर्त ये लोग शरिया कानून कबूल कर लें. दूसरी ये लोग अफगानिस्तान छोड़ कर भाग जाएं और तीसरी ये लोग मरने के लिए तैयार रहें. 

जब कश्मीर कट्टर इस्लाम की प्रयोगशाला बना

1980 के दशक में कश्मीर में कट्टरपंथ हावी होने लगा और देखते ही देखते कश्मीर कट्टर इस्लाम की प्रयोगशाला बन गया लेकिन इससे पहले कश्मीर के हालात ऐसे नहीं थे. वहां फिल्मों की भी शूटिंग होती थी, महिलाएं बेखौफ घर से बाहर निकल सकती थीं और उनकी पढ़ाई लिखाई के लिए कई सारे स्कूल कॉलेज और यूनिवर्सिटी थी. 1980 से पहले अफगानिस्तान भी कुछ ऐसा ही हुआ करता था. जहां महिलाओं को पढ़ने-लिखने और अपनी मर्जी के कपड़े पहनने की आजादी थी लेकिन 1980 के दशक में कट्टरपंथियों ने कश्मीर को अंधेरे की तरफ धकेल दिया तो अफगानिस्तान गृहयुद्ध में उलझ गया और फिर 1990 आते आते कश्मीर आतंकवादियों का गढ़ बन गया तो अफगानिस्तान में तालिबान का उदय हो गया.

इस्लाम की कट्टर विचारधारा ने ईरान को भी पीछे धकेला

दरअसल 1970 के दशक के अंत में ईरान में इस्लाम के नाम पर क्रांति हुई थी वहां के शासक भी देश छोड़कर भाग गए और इस्लाम की कट्टर विचारधारा को मानने वाले धार्मिक नेता ईरान के सुप्रीम लीडर बन गए थे. इससे पहले ईरान भी बहुत आधुनिक हुआ करता था और वहां भी महिलाओं को हर तरह की आजादी हासिल थी. यानी 1980 का दशक एशिया के एक बड़े हिस्से में कट्टर इस्लामिक विचारधारा के प्रचार और प्रसार का गवाह बना. 

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जब कश्मीरियों ने बयां किया दर्द

आज जिस तरह अफगानिस्तान के नागरिक अपनी जान खतरे में डालकर अपना देश छोड़कर भाग रहे हैं. वैसे ही 1990 में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागना पड़ा था. कुछ समय पहले Zee News ने 1990 की उस हिंसा को देखने वाले कश्मीरी पंडितों से बात की थी जो आज भारत समेत दुनिया के अलग अलग हिस्सों में बसे हुए हैं और हाल ही में हमने अफगानिस्तान से आए कई लोगों से भी बात की अगर आप इन लोगों का दर्द सुनेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि जब किसी देश या किसी राज्य में कट्टरपंथ हावी होता है तो कैसे आने वाली पीढ़ियां दशकों तक इसकी सजा पाती हैं.

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भारत ने कश्मीर में नहीं घुसने दीं विदेशी ताकतें

लेकिन शुक्र ये है कि भारत ने कश्मीर में कभी भी विदेशी ताकतों को घुसने नहीं दिया और अपने दम पर ना सिर्फ आतंकवाद पर नियंत्रण पाया बल्कि आज देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिक बिना किसी डर के ना सिर्फ कश्मीर घूम सकते हैं बल्कि वहां जमीन भी खरीद सकते हैं, पढ़ाई भी कर सकते हैं और कश्मीर जाकर रह भी सकते हैं. अगर भारत ने दूसरे देशों से कश्मीर का हल निकालने के लिए कहा होता तो हो सकता है कि कश्मीर की हालत भी अफगानिस्तान जैसी हो जाती, जहां से दूसरे देश तो चले जाते फिर कश्मीर पर कट्टरपंथियों का कब्जा हो जाता. कश्मीर से वैसी ही तस्वीरें आतीं जैसी काबुल से आ रही हैं.

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