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नई दिल्ली: डीएनए में अब बात अफगानिस्तान (Afghanistan ) की जिसके 53% हिस्से पर तालिबान (Taliban) का कब्जा हो चुका है. पहली बार तालिबान ने एक प्रांत की राजधानी पर कब्जा किया है. सूत्रों के मुताबिक ये इलाका Nimroz प्रांत की राजधानी Zaran है. जिसके बाद अफगान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में कहा कि तालिबान को नहीं रोका गया तो अफगानिस्तान, सीरिया (Syria) बन जाएगा इसके वहां जीतने के लिए कुछ नहीं बचेगा.
तालिबान खुद को अफगानिस्तान की अगली सरकार मानता है. लेकिन सच ये है कि लोग तालिबान 2.O नहीं चाहते. दरअसल ये साल 1990 के दशक वाला क्रूर तालिबान ही है जो अफगान लोगों को अपनी कट्टर सोच का गुलाम बनाना चाहता है. नई रिपोर्ट्स के मुताबिक तालिबान ने अफगानिस्तान के एक प्राचीन गुरुद्वारे में लगे सिखों के धार्मिक चिह्न निशान साहब को हटा दिया है. इस गुरुद्वारे का नाम है थाला साहिब जो अफगानिस्तान के पख्तिया प्रांत में है. सिखों के लिए इस गुरुद्वारे का बहुत महत्व है क्योंकि यहां सिखों के पहले धर्म गुरु बाबा गुरु नानक भी एक बार यात्रा पर आए थे.
आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि 1970 के दशक तक अफगानिस्तान में 7 लाख से ज्यादा हिंदु और सिख रहा करते थे. जैसे-जैसे अफगानिस्तान में कट्टरता बढ़ी वैसे वैसे हिंदुओं और सिखों की आबादी कम होने लगी. 1980 का दशक खत्म होने तक अफगानिस्तान में सिखों की आबादी घटकर 2 से 3 लाख के बीच रह गई. लेकिन 1990 में तालिबान के उदय के साथ ही सिख आबादी घटकर सिर्फ 15 हजार रह गई और आज अफगानिस्तान में सिर्फ एक हजार हिंदू और सिख रहते हैं.
आंकड़ों से साफ लगता है कि तालिबान के राज में अल्पसंख्यकों का वहां रहना कितना मुश्किल है. अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ ये व्यवहार सदियों से होता आया है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच में एक पर्वत श्रृंखला है. जिसका नाम है हिंदु-कुश है जिसका शाब्दिक अर्थ है वो जगह जहां पर हिंदुओं का कत्ल किया गया था.
अब अफगानिस्तान में तालिबान अपने ही लोगों का खून बहा रहा है. हालांकि सेना और वहां के लोग तालिबान को रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. इसी वजह से तालिबान को बहुत सारे इलाकों से पीछे हटना पड़ा है. जो लोग ये दावा कर रहे थे कि तालिबान बस अब कुछ ही हफ्तों में पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेगा वो लोग गलत साबित हो रहे हैं. अफगानिस्तान में तालिबान का विरोध इतना तेज है कि अब तो महिलाओं ने भी तालिबान के खिलाफ हथियार उठा लिए हैं क्योंकि तालिबान के सत्ता में आने का मतलब है कि महिलाओं की आजादी का पूरी तरह से छिन जाना.
लेकिन तालिबान को हराने के लिए अभी अफगानिस्तान की सेना को लंबा संघर्ष करना होगा. वैसे अफगानिस्ता में ये युद्ध जितना लंबा चलेगा इससे भारत को उतना ही फायदा होगा. क्योंकि अब अफगानिस्तान के लाखों नागरिक धीरे धीरे देश छोड़ने लगे हैं वो सीमा पार करके पाकिस्तान में शरण ले रहे हैं. फिलहाल पाकिस्तान में अफगानिस्तान के 14 लाख शरणार्थी हैं. युद्ध लंबा चला तो इनकी संख्या 50 लाख भी हो सकती है.अगर ऐसा हुआ तो फिर पाकिस्तान इतने सारे शरणार्थियों को संभाल नहीं पाएगा. देर सवेर इन शरणार्थियों और पाकिस्तान के लोगों के बीच तनाव की स्थिति पैदा होने पर वो अपने ही घर में घिर जाएगा.
इस समय हमारे अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी चैनल WION के पाकिस्तान संवाददाता अनस मलिक अफगानिस्तान में हैं. वो Ground Zero से पल पल की रिपोर्ट हम तक पहुंचा रहे हैं. लेकिन पत्रकारिता के लिहाज से अफगानिस्तान बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है हमारी टीम पर भी लगातार खतरा बना हुआ है. पिछले कुछ समय में अफगानिस्तान में 40 से ज्यादा पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. तालिबान ने हाल ही में अफगानिस्तान सरकार के मीडिया सेंटर के प्रमख की भी हत्या कर दी है. पिछले महीने ही भारत के एक पत्रकार दानिश सिद्दिकी की हत्या कर दी गई थी.
इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि हमारे संवाददाता अनस मलिक रिपोर्टिंग के दौरान अपना ख्याल और उन इलाकों में जाने से बचेंगे जहां खतरा ज्यादा है. लेकिन एक सच्चे पत्रकार का दिल कभी ये गवाही नहीं देता कि वो अपनी सुरक्षा के लिए आप तक सही जानकारी ना पहुंचाए और ऐसी ही सोच अफगानिस्तान में मौजूद हमारी टीम की है.