काबुल में अमेरिका का खूनी खेल! क्या दुनिया को देगा एयरस्ट्राइक के सबूत?
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काबुल में अमेरिका का खूनी खेल! क्या दुनिया को देगा एयरस्ट्राइक के सबूत?

अमेरिका ने दावा किया है कि उसके ड्रोन हमले में ISIS आतंकवादियों को निशाना बनाया गया. लेकिन सवाल उठता है कि इस हमले में जो दो बच्चे मारे गए, क्या वे बच्चे आतंकवादी थे? इस हमले में दो भाई भी मारे गए. क्या इनमें से कोई आतंकवादी था?

 

काबुल में अमेरिका का खूनी खेल! क्या दुनिया को देगा एयरस्ट्राइक के सबूत?

नई दिल्ली: अमेरिका ने काबुल एयरपोर्ट पर हुए धमाके के बाद दो ड्रोन हमले किए और कहा कि उसने हमला करने वाले आतंकवादियों को मार दिया है. इसके अलावा एक गाड़ी में रखे वो विस्फोटक भी नष्ट करने का दावा किया, जिनके दम पर और हमले किए जा सकते थे लेकिन आज कोई भी अमेरिका से इन ड्रोन हमलों का सबूत नहीं मांग रहा. जबकि दो साल पहले जब भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट पर एयरस्ट्राइक की थी तब भारत ही नहीं दुनियाभर के मीडिया ने भारतीय सेना से इसके सबूत मांगे थे. ये दोहरे मापदंड हैं. इसलिए अमेरिका को चाहिए कि वो इन हमलों का सबूत दे. लेकिन उससे पहले आपको जानना चाहिए कि अमेरिका ने जिस गाड़ी में आतंकवादियों के होने का दावा किया था, उसमें आखिर कौन से आतंकवादी बैठे थे.

  1. क्या चूक गया अमेरिका का निशाना?
  2. एयरस्ट्राइक में मारे गए बच्चे भी आतंकी?
  3. अमेरिका से अब कौन मांगेगा सबूत? 

क्या वे 7 बच्चे आतंकवादी थे?

अमेरिका ने रविवार यानी कल ही दावा किया था कि उसने काबुल एयरपोर्ट के पास एक रिहायशी इलाके में विस्फोटक से भरी गाड़ी को एयरस्ट्राइक में नष्ट कर दिया है. दुनिया ने इस स्ट्राइक की जो तस्वीरें न्यूज़ चैनलों और अखबारों में देखीं. एक घर से धुआं उठता हुआ दिखा रहा था और इस घर के बाहर एक गाड़ी जली हुई हालत में खड़ी थी. अमेरिका का दावा है कि इस गाड़ी में विस्फोटक था और इसे चला रहे लोग काबुल एयरपोर्ट पर फिर से धमाका करने वाले थे. जबकि सच ये है कि उसकी इस एयरस्ट्राइक में जो 10 लोग मारे गए, उनमें 7 तो केवल बच्चे थे. क्या अमेरिका इन बच्चों को आतंकवादी साबित करने वाले सबूत देगा?

इंजीनियर आतंकवादी था?

हमारे संवाददाता अनस मलिक जब काबुल एयरपोर्ट से कुछ दूर इस रिहायशी इलाके में पहुंचे तो हमें पता चला कि इस ड्रोन हमले में मारे गए 10 में से 9 लोग एक ही परिवार के थे और इनमें जिस अफगान नागरिक को आतंकवादी बताया गया है, वो एक इंजीनियर था जो पिछले 17 वर्षों से जापान की एक कम्पनी के लिए काबुल में काम कर रहा था. इसलिए क्या अमेरिका साबित करेगा कि उसके हमले में मारा गया अफगान इंजीनियर वाकई में एक आतंकवादी था? और उसका पूरा परिवार आतंकी गतिविधियों में शामिल था?

क्या सबूत देगा अमेरिका?

तीसरी बात, अमेरिका का दावा है कि उसने इस गाड़ी को इसलिए निशाना बनाया क्योंकि गाड़ी में विस्फोटक था. अमेरिका का ये भी दावा है कि उसकी एयरस्ट्राइक के बाद दो धमाके हुए और ये धमाके गाड़ी में रखे विस्फोटक की वजह से हुए लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि केवल एक ही धमाका हुआ था. सबसे बड़ी बात.. धमाके के बाद वहां विस्फोटक की दुर्गंध नहीं थी. तो क्या अमेरिका दुनिया को इस बात का सबूत देगा कि जिस गाड़ी को उसने धमाके में उड़ाया, उसमें विस्फोटक था?

अमेरिका की गलती पर वाहवाही क्यों?

हमारे संवाददाता अनस मलिक ने ऐसे लोगों से भी बात की, जो उस समय वहां मौजूद थे. इन लोगों का दावा है कि धमाके से पहले गाड़ी घर के बाहर नहीं थी. ये परिवार और बच्चे गाड़ी में बाहर गए थे. जैसे ही घर पहुंचे तो उसके बाद ड्रोन से ये हमला हुआ. इसलिए ये भी सवाल उठ रहा है कि, क्या अमेरिका ने गलती से इस गाड़ी को निशाना बनाया? अमेरिका ने अब तक ऐसा एक भी सबूत नहीं दिया है, जिससे ये साबित होता हो कि इस गाड़ी में विस्फोटक था और ये 7 बच्चे और उनका परिवार आतंकवादी था. लेकिन इसके बावजूद विदेशी मीडिया भी अमेरिका की तारीफ कर रहा है और भारत का मीडिया भी उसे हीरो बना रहा है लेकिन जब भारत एयरस्ट्राइक करता है तो यही मीडिया सवाल भी उठाता है और सबूत भी मांगता है.

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इस ड्रोन से अमेरिका ने साधा निशाना

अमेरिका के मुताबिक इस एयरस्ट्राइक में उसने MQ-9 Reaper Drone का इस्तेमाल किया. ये वही Drone है, जिसकी मदद से उसने ईरान के शीर्ष कमांडर जनरल कासिल सुलेमानी को मिसाइल हमले में मार गिराया था. इस Drone का वजन 2 हजार 223 किलोग्राम है. ये लगभग 1700 किलोग्राम वजन के साथ 15 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है और इसकी प्रति घंटा स्पीड 482 किलोमीटर है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि जब ये जमीन से सिर्फ 250 से 300 मीटर ऊपर होता है तो इसका शोर टारेगट को सुनाई नहीं देता. काबुल और नंगरहार में अमेरिका ने जो एयर स्ट्राइक की उनमें इसी ड्रोन का इस्तेमाल हुआ. अमेरिका का दावा है कि उसने इस ड्रोन से Hellfire Missile लॉन्च की.

ये हैं खूबियां

ये मिसाइल ब्लास्ट नहीं होती. बल्कि इसमें 6 खतरनाक Blades लगे हैं, जो किसी भी गाड़ी की छत को चीर कर टारगेट को मार सकती है. वर्ष 2010 से पहले जब अमेरिका, पाकिस्तान में औसतन हर साल एक हजार से ज्यादा ड्रोन हमले कर रहा था तो इन हमलों में आम नागरिकों की जान काफी जाती थी. इसके लिए अमेरिका की पूरी दुनिया में आलोचना होती थी. इसी के बाद अमेरिका ने इस मिसाइल को तैयार किया, जो केवल टारेगट को निशाना बनाती है और बाकी लोग इसमें सुरक्षित रहते हैं. अमेरिका का दावा है कि नंगरहार में उसने ISIS खुरासान के जिन दो आतंकवादियों को मारा, वो एक ऑटो रिक्शा में थे और इस मिसाइल के इस्तेमाल से आम लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. लेकिन एक सच ये भी है कि इस मिसाइल को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है.

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एयरपोर्ट का बदला नजारा

इस हमले के बाद काबुल एयरपोर्ट का नजारा भी बदला नजर आ रहा है. आज पहली बार काबुल एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ नहीं है. जो लोग इस उम्मीद में एयरपोर्ट के बाहर जमा थे कि देर सवेर उनकी बारी भी आ जाएगी, वो अब निराश होकर वापस लौट गए हैं और उन्होंने अपनी बदकिस्मती को स्वीकार कर लिया है. अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के तहत Evacuation की प्रक्रिया 31 अगस्त को रात के 12 बजे समाप्त हो जाएगी. यानी अब कुछ ही घंटे बचे हैं. 

अफगानिस्तान में फंसे लोगों को कौन निकालेगा?

14 अगस्त से अब तक अफगानिस्तान से कुल 1 लाख 16 हजार 700 लोग ही दूसरे देशों में जा पाए हैं. इनमें अमेरिकी नागरिक भी हैं, NATO देशों के भी लोग हैं और भारत आए हिन्दू, सिख और अफगान नागरिक भी हैं. हालांकि अब भी ऐसे हजारों विदेशी नागरिक हैं जो अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं. इसलिए सवाल उठता है कि इन लोगों का क्या होगा? अमेरिका का दावा है कि तालिबान ने 31 अगस्त के बाद भी उसके नागरिकों को Safe Passage देने का वादा किया है. उसका ये भी कहना है कि वो तालिबान को अपना वादा पूरा करने के लिए मजबूर करेगा. इसके लिए उसने चीन की भी मदद मांगी है. यानी नौबत ये आ गई है कि अमेरिका तालिबान से अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए चीन से मदद मांग रहा है.

अमेरिका पर तालिबान बनाएगा दबाव?
NATO के सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस ने कहा है कि वो इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पेश करेंगे, जिसके तहत काबुल एयरपोर्ट के आसपास एक Safe Zone बनाया जाएगा, जिसमें उनके देश के नागरिकों को रखा जाएगा. लेकिन यहां भी बड़ी चुनौती चीन और Russia हैं, जो संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य हैं. इन देशों ने अब तक इस पर अपना रुख साफ नहीं किया है. अफगानिस्तान के जो लोग काबुल एयरपोर्ट में घुसने में नाकाम रहे, हो सकता है कि वे अब सीमा के रास्ते बाहर निकलने की कोशिश करें. इसकी भी सम्भावना है कि तालिबान अब अमेरिका पर दबाव बनाए और 31 अगस्त के बाद एयरपोर्ट पर कब्जा कर ले. अगर एयरपोर्ट पर तालिबान का कब्जा हो गया तो जो देश अपने नागरिकों की सकुशल वापसी की उम्मीद कर रहे हैं, उनके लिए ये स्थितियां मुश्किल हो जाएंगी.

US गिड़गिड़ाएगा या लडे़गा?
आज अमेरिका और NATO देशों के सामने ये भी सवाल है कि वो अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से निकालने के लिए तालिबान के सामने गिड़गिड़ाएंगे या तालिबान के खिलाफ कार्रवाई करके अपने नागरिकों को बचाएंगे. 20 साल पहले जब अमेरिका को अफगानिस्तान पर हमला करना था तो उसने NATO देशों की मदद ली लेकिन जब Evacuation की प्रक्रिया शुरू हुई तो उसने किसी भी देश को विश्वास में नहीं लिया. इससे भी अमेरिका की पोल खुली है.

काम निकालना है मकसद
अमेरिका के चरित्र को आप काबुल हमले में शहीद हुए अमेरिका के 13 सैनिकों को Delaware Airport पर दी गई श्रद्धांजलि की तस्वीरों से भी समझ सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी वहां थे, जो श्रद्धांजलि देते समय अपनी घड़ी को देखने लगे. इससे ये संदेश गया कि वो व्यस्त हैं और उन्हें वहां से जाने की जल्दी है. अमेरिका के लोग कह रहे हैं कि बाइडेन ने ऐसा करके शहीदों का अपमान किया है. लेकिन हमें लगता है कि बाइडेन का ये व्यवहार अमेरिका का ही असली स्वभाव दिखाता है, जिसके लिए कोई भी तब तक मायने रखता है, जब तक वो उसके काम आ रहा है. ये अप्रोच अमेरिका के पहले के राष्ट्रपति भी दिखा चुके हैं.

राष्ट्रपति की भी हुई आलोचना
George Bush Senior 1992 में Presidential Debate में एक जरूरी सवाल पर बहस के दौरान अपनी घड़ी देखने लगे थे, जिसके बाद लोगों ने ये कहा था कि उनके लिए ये बहस मायने ही नहीं रखती और वो वहां से निकलने का इंतजार कर रहे हैं. 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति Richard Nixon भी लोगों से हाथ मिलाते हुए अपनी घड़ी में देखते हुए नजर आए थे. तब उन्हें असंवेदनशील बताया गया था. 

कथनी और करनी में फर्क
अमेरिका ने दुनियाभर में अपनी यही छवि बनाई है कि वो लोकतंत्र और मानव अधिकारों का सबसे बड़ा चैम्पियन है. उसकी सेना, दुनिया की सबसे मजबूत सेना है और वो खतरनाक से खतरनाक ऑपरेशन को भी अंजाम दे सकता है. Hollywood की ज्यादातर फिल्में उसकी इसी छवि को बनाए रखने में सबसे बड़ा रोल निभाती हैं. इसलिए अगर आप Hollywood और Super Heroes वाली फिल्में देख कर बढ़े हुए हैं तो आपको सम्भल जाना चाहिए.

तालिबान का खूनी खेल जारी
तालिबान ने अफगानिस्तान के मशूहर लोक गायक फवाद अंदराबी की भी हत्या कर दी है. फवाद अंदराबी की आवाज ने अफगानिस्तान के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना को जगाया था. कुछ दिनों पहले उनका एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वो स्थानीय भाषा में एक गीत गा रहे थे, जिसके शब्द थे, 'मेरी मातृभूमि से बढ़कर कोई देश नहीं है. मुझे अपने देश पर गर्व है और हमारी घाटी बेहद खूबसूरत है, जो हमारे पुरखों की मातृभूमि है. ये शब्द बताते हैं कि तालिबान ने इस लोक गायक की हत्या क्यों की. दरअसल शरिया कानून में संगीत को वर्जित माना गया है और फवाद अंदराबी की हत्या इसी सोच का नतीजा है. दुनियाभर में जो संगीतकार हैं, गायक हैं और Influencers हैं, उनकी अपनी ताकत होती है. कई बार उनकी ताकत के सामने सरकारों को भी झुकना पड़ता है इसलिए अगर आज ये तालिबान के विरोध में एकजुट हो जाएं तो ये तालिबान के खिलाफ बड़ी क्रान्ति का प्रतीक बन सकते हैं.

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