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नई दिल्ली: भारत (India) में OBC यानी पिछड़े समुदाय की आबादी 50 से 54 प्रतिशत है. ये अनौपचारिक आंकड़ा है. इसी तरह दलितों की कुल आबादी लगभग 17 प्रतिशत है. अगर इन आंकड़ों को सही मानें तो हमारे देश में OBC और दलितों की आबादी लगभग 70 प्रतिशत है.
हमारे देश में दलितों, पिछड़ों और गरीबों की राजनीति करने वाली पार्टियों की कमी नहीं है. इनमें मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP), अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (SP), पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा की जनता दल सेकुलर (JDS), लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD), स्वर्गीय राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP), नीतीश कुमार की जनता दल United, महाराष्ट्र की Republican Party of India और तमिलनाडु की DMK पार्टी प्रमुख हैं.
यानी पिछले 74 वर्षों से भारत की राजनीतिक पार्टियां, गरीबों, दलितों और पिछड़ों के 70 प्रतिशत वोटों के लिए लड़ रही हैं. लेकिन जरा सोचिए कि क्या आज तक इससे इन 70 प्रतिशत लोगों को कोई खास फायदा हुआ है. भारत में कोई पार्टी ऐसी नहीं है जो ये दावा करे कि वो अमीरों के लिए काम करती है. सब के सब सिर्फ गरीबों और पिछड़ों का उद्धार करने में लगे हैं.
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फिर भी ना तो भारत में पिछड़ों को मिलने वाला आरक्षण समाप्त हो पाया और ना ही गरीबी घटाई जा सकी. जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम या अमीर होते हैं, वो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं, इलाज प्राइवेट अस्पतालों में कराते हैं और अपनी सुरक्षा के लिए प्राइवेट सुरक्षा गार्ड रखते हैं.
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शायद यही सोचकर कि देश के नेता कम से कम गरीबों के कल्याण पर ही ध्यान लगा लें. लेकिन इन नेताओं से ये भी नहीं हो पाता. नेता वोटों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनीतिक गाड़ी में ईंधन की तरह करते हैं और इस ईंधन में जो Raw Matarial है वो हमारे देश के गरीब और पिछड़े हैं. इसी ईंधन से राजनीति की गाड़ी चलती है लेकिन अफसोस एक बार वोट मिल जाने के बाद राजनेता ये गाड़ी लेकर फिर कभी इन गरीबों और पिछड़ों के दरवाजे पर नहीं जाते. ना ही इन गरीबों और पिछड़ों को अपनी गाड़ी में बैठने का अधिकार देते हैं.
इस Event Management वाली पॉलिटिक्स को आप ऐसे भी समझ सकते हैं. मंगलवार को राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के सांसदों के साथ साइकिल पर संसद भवन गए थे और उनके पास जो साइकिल थी, उसे आम साइकिल कहा जाता है. हमारे देश में इस साइकिल की कीमत भी कम होती है और ये साइकिल वो लोग चलाते हैं, जो निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं.
इसलिए आप में से बहुत सारे लोगों को ऐसा लगा होगा कि राहुल गांधी भी एक आम आदमी की तरह आम साइकिल चला कर संसद गए हैं. लेकिन सच ये है कि ये सारी साइकलें किराए पर ली गई थीं ताकि राहुल गांधी आम लोगों की तरह दिख सकें और इससे उनकी अच्छी फोटो मीडिया में चल सकें. यानी एक तरह की फिल्म की शूटिंग जैसा था, जिसमें गाड़ियां किराए पर ली जाती हैं, बंगला किराए पर लिया जाता है और किराए पर ली गई चीजों से फिल्म बनाई जाती है. और राहुल गांधी ने भी ऐसा ही किया.
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जबकि निजी जीवन में राहुल गांधी आम साइकिल नहीं चलाते हैं. वर्ष 2009 में राहुल गांधी का एक वीडियो काफी चर्चा में रहा था, जिसमें वो एक महंगी Road Bike चलाते हुए दिखे थे.
राहुल गांधी के जीजा और प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा के पास अमेरिकन कम्पनी Felt की साइकिल है, जिसकी कीमत 1 लाख 72 हजार रुपये है. इसके अलावा उन्होंने इस साइकिल में अलग से Carbon Fiber वाले Tyres लगाए हुए हैं, जिनकी कीमत 1 लाख रुपये तक बताई जाती है. राहुल गांधी जिस आम साइकिल को चलाकर संसद भवन पहुंचे थे, उसकी औसतन कीमत हमारे देश में 5 हजार रुपये है.
यानी जितनी कीमत रॉबर्ट वाड्रा की साइकिल की है, उतने पैसों में 54 आम साइकिलें आ सकती हैं, जो देश के आम लोग चलाते हैं. और इसलिए हम इसे Event Management वाली पॉलिटिक्स कह रहे हैं.