लोक सभा में चिराग पासवान को मिलाकर LJP के 6 सांसद हैं, जिनमें से पांच सांसदों ने अब उनका विरोध शुरू कर दिया है. समझने वाली बात ये है कि विरोध करने वाले सांसदों का नेतृत्व चिराग पासवान के चाचा और राम विलास पासवान के भाई पशुपतिनाथ पारस कर रहे हैं.
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नई दिल्ली: आज हम आपको स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी की टूट के बारे में बताएंगे, जिसमें राम विलास पासवान के भाई पशुपतिनाथ पारस ने पार्टी के सभी सांसदों की एक टीम बनाकर पासवान के पुत्र चिराग पासवान को अकेला कर दिया है और लोक सभा में पार्टी सांसदों के नेता पद से उन्हें हटाने की मांग की है. एक ही परिवार पर आधारित राजनीतिक पार्टियों के लिए ये राजनीतिक घटना एक केस स्टडी की तरह है. इसलिए अब हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.
वर्ष 2000 में राम विलास पासवान ने JDU से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया था, लेकिन उनकी पारिवारिक जड़ें राजनीति में नहीं थीं. वर्ष 1969 में वो बिहार में Deputy superintendent of police चुने गए थे, लेकिन इतने बड़े पद पर नौकरी मिलने के बाद भी वो पुलिस में शामिल नहीं हुए, बल्कि उसी वर्ष राजनीति में आए और पहली बार मे ही विधायक बन गए.
रामविलास पासवान ने LJP के गठन से पहले और उसके बाद अपने दो भाईयों, उनके पुत्र और अपने पुत्र चिराग पासवान के लिए राजनीति का रास्ता तैयार किया. आज से एक वर्ष पहले तक LJP के वृक्ष की प्रमुख शाखाएं रामविलास पासवान और उनका परिवार था, लेकिन उनकी मृत्यु के 248 दिन बाद ही ये परिवार अब टूटता दिख रहा है और चिराग पासवान पार्टी में अकेले हो गए हैं.
लोक सभा में चिराग पासवान को मिलाकर LJP के 6 सांसद हैं, जिनमें से पांच सांसदों ने अब उनका विरोध शुरू कर दिया है. समझने वाली बात ये है कि विरोध करने वाले सांसदों का नेतृत्व चिराग पासवान के चाचा और राम विलास पासवान के भाई पशुपतिनाथ पारस कर रहे हैं. उन्होंने लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात कर उन्हें सदन में पार्टी सांसदों का नेता घोषित करने की मांग की, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने मान लिया और इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई.
यानी विवाद इस बात को लेकर था कि लोकसभा में LJP सांसदों के नेता चिराग पासवान की जगह उनके चाचा पशुपति पारस होने चाहिए. चिराग पासवान जब दिल्ली स्थित पशुपति पारस के घर पर पहुंचे तो उनकी गाड़ी को देखकर घर का गेट नहीं खोला गया. चिराग पासवान की गाड़ी लगभग 15 मिनट तक पशुपतिनाथ पारस के घर के बाहर खड़ी रही, लेकिन उनके लिए घर का दरवाजा नहीं खुला.
हालांकि जब विवाद और इंतजार बढ़ा तो चिराग पासवान की गाड़ी को घर के अंदर जाने दिया गया. थोड़ी देर बाद चिराग पासवान वहां से निकल गए. इसके बाद उनका कोई बयान तो नहीं आया, लेकिन उनके चाचा पशुपतिनाथ पारस ने सफाई जरूर दी और कहा कि वो ऐसा करके पार्टी तोड़ नहीं रहे हैं, बल्कि जोड़ने का काम कर रहे हैं.
अब LJP में पड़ी इस फूट को बीजेपी से जोड़ कर देखा जा रहा है, इसलिए अब हम आपको ये बताएंगे कि ये सब बीजेपी ने किया है या बीजेपी की वजह से सब हुआ है. इसे आप दो पॉइंट्स में समझिए-
पहला पॉइंट है, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में विस्तार की खबरें. पिछले कुछ दिनों से ऐसी खबरें चर्चा में हैं कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बदलाव हो सकता है और चिराग पासवान मंत्री बन सकते हैं. ऐसी भी खबरें हैं कि चिराग पासवान को दिल्ली में बीजेपी का समर्थन हासिल था. आपको याद होगा जब बिहार में पिछले साल विधान सभा चुनाव थे, तब चिराग पासवान ने बीजेपी JDU गठबंधन से खुद को अलग कर लिया था. हालांकि इस विरोध को उन्होंने नीतीश कुमार तक ही सीमित रखा और कहा कि वो बीजेपी के खिलाफ नहीं है. उस समय उनके फैसले से यही संदेश गया कि बीजेपी उनका समर्थन कर रही है. तब बिहार विधान सभा चुनाव में चिराग पासवान को एक ही सीट मिली थी, लेकिन उन्होंने कई सीटों पर JDU को नुकसान पहुंचाया था.
यानी चिराग पासवान ने JDU को डेंट किया और बीजेपी JDU से बड़ी पार्टी बन गई. हालांकि बीजेपी और JDU ने मिल कर सरकार बनाई, जो अब भी चल रही है. लेकिन ऐसी खबरें हैं कि LJP में फूट की बड़ी वजह यही विरोध है और नीतीश कुमार नहीं चाहते कि चिराग केन्द्र सरकार में मंत्री बनें. शायद इसीलिए पशुपतिनाथ पारस को JDU का समर्थन मिल रहा है और वो बीजेपी के समर्थन की बात भी कह रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर चिराग पासवान अकेले पड़ गए हैं. तो इस राजनीतिक घटनाक्रम की पहली वजह मानी जा रही है, चिराग पासवान को केन्द्र सरकार में शामिल होने से रोकना.
दूसरा पॉइंट है, बिहार में चिराग पासवान बनाम नीतीश कुमार का राजनीतिक झगड़ा और इस झगड़े को आप इसी बात से समझ सकते हैं कि पिछले वर्ष बिहार चुनाव में जो LJP का इकलौता विधायक चुनाव में जीता था, वो अब JDU के समर्थन में है और LJP से अलग हो गया है. JDU ने ऐसा करके ये संदेश देने की कोशिश की है कि चिराग पासवान नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़कर और राजनीति करके अपनी जमीन तैयार नहीं कर सकते और बड़ी बात ये है कि परिवार में झगड़े से चिराग पासवान ही कमजोर होंगे.
हालांकि यहां एक सवाल ये भी है कि क्या बीजेपी इसमें JDU के साथ है?
तो इससे जुड़ी दो बातें हैं. बीजेपी के लिए बिहार की राजनीति और दिल्ली की राजनीति बिल्कुल अलग है. बिहार में चिराग पासवान को भले साथ न मिले, लेकिन दिल्ली में बीजेपी का उन्हें समर्थन हासिल है.
हालांकि इस खबर का एक और पहलू है और वो ये कि अब इसके बाद बिहार में राजनीति का कोण LJP से कांग्रेस की तरफ घूमेगा. बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं और आजकल बिहार के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी, नीतीश कुमार के सम्पर्क में हैं.
ऐसा भी कहा जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस को तोड़ने की जिम्मेदारी उन्हीं के पास है. एक बात ये भी है कि LJP में जिस तरह से सांसदों ने चिराग पासवान का विरोध किया है, उसी तरह की तस्वीर कांग्रेस में भी दिख सकती है.
अब ये राजनीतिक घटना उन पार्टियों के लिए एक केस स्टडी की तरह है, जिनकी राजनीति एक ही पार्टी पर आधारित है, जैसे कांग्रेस. कांग्रेस को आज समझना चाहिए कि जैसे LJP के सभी सांसद चिराग पासवान को अपना नेता मानने से इनकार कर सकते हैं, तो मुमिकन है कल कांग्रेस में भी इससे नाराज नेताओं की हिम्मत बढ़े. कांग्रेस में लगातार कई नेताओं की नाराजगी की खबरें आती रहती हैं, लेकिन पार्टी परिवारवाद की टेम्पलेट पर ही सारे मुद्दों को सुलझाना चाहती है.
और हम भी कई बार ये बात कह चुके हैं कि अगर कांग्रेस ने अपना हाथ परिवार के बाहर राजनीतिक ज्योतिषियों को नहीं दिखाया तो पार्टी में वही होगा, जो LJP में अभी हो रहा है.