DNA Analysis: काकोरी स्टेशन से Ground Report, Kakori में 'कांड' नहीं 'ट्रेन एक्शन' हुआ
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DNA Analysis: काकोरी स्टेशन से Ground Report, Kakori में 'कांड' नहीं 'ट्रेन एक्शन' हुआ

आज भी इतिहास की किताबों में काकोरी की घटना को पढ़ाया जाता है, लेकिन क्या अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों की इस वीरता को 'कांड' कहा जाना चाहिए? इसलिए अब यूपी सरकार ने फैसला लिया है कि इस क्रांतिकारी घटना को काकोरी कांड नहीं, बल्कि काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) कहा जाएगा.

अब क्रांतिकारी घटना को काकोरी कांड नहीं, बल्कि काकोरी ट्रेन एक्शन कहा जाएगा.

नई दिल्ली: साल 1920 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन (Asahyog Andolan) शुरू किया था. ये आंदोलन जब अपने चरम पर था, तभी 4 फरवरी 1922 को गोरखपुर में चौरी-चौरा कांड हो गया. असहयोग आंदोलन में शामिल कुछ प्रदर्शनकारियों ने यहां के एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए थे. इस घटना से आहत महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था.

  1. 10 क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती दी थी
  2. 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने लूटा गया पैसा वापस ले लिया था
  3. काकोरी में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी थी

आंदोलन वापस होने के बाद युवाओं का फैसला

असहयोग आंदोलन (Asahyog Andolan) ने भारत के युवाओं को बहुत प्रेरित किया था. युवाओं को इस आंदोलन में आजाद भारत का सपना दिखा था, लेकिन जब महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने आंदोलन ही वापस ले लिया तो युवाओं में निराशा फैल गई. गांधी जी के फैसले के बाद कुछ युवा क्रांतिकारियों ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई और इसमें ये तय हुआ कि अब अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने होंगे.

हथियार के लिए लूट लिया अंग्रेजों का खजाना

उस दौर में हथियार खरीदने के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल था. इसीलिए 9 अगस्त 1925 को 10 क्रांतिकारियों की एक टीम ने अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती दी. इन क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ के लिए निकली एक पैसेंजर ट्रेन रोका और उसमें रखा अंग्रेजों का खजाना लूट लिया. अंग्रेजों के खिलाफ उस समय का एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम था. जिस जगह पर इस ट्रेन को रोककर इसका खजाना लूटा गया उस जगह का नाम काकोरी है, जो लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर है.

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यूपी सरकार ने काकोरी कांड का बदला नाम

आज भी इतिहास की किताबों में इसे काकोरी कांड के नाम से पढ़ाया जाता है, लेकिन क्या अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों की इस वीरता को 'कांड' कहा जाना चाहिए? हमें लगता है कि इसे कांड कहना बिल्कुल ठीक नहीं है. इसलिए अब उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि इस क्रांतिकारी घटना को काकोरी कांड नहीं, बल्कि काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) कहा जाएगा.

किस हद तक जाने को तैयार थे युवा क्रांतिकारी

Zee News की एक टीम उसी काकोरी स्टेशन पर पहुंची, जहां रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने इस काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) को अंजाम दिया था. आज हमको बताएंगे कि देश को आजाद कराने के लिए हमारे क्रांतिकारी किस हद तक जाने के लिए तैयार थे.

क्रांतिकारियों ने उड़ा दी अंग्रेजी हुकूमत की नींद

काकोरी को याद किया जाता है, उस साहस के लिए जिसमें चंद्रशेखर आज़ाद और राम प्रसाद बिस्मिल समेत 10 क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था. 9 अगस्त 1925 को यहीं पर भारतीयों से लूटा गया पैसा अंग्रेजी खजाने से क्रांतिकारियों ने वापस ले लिया था. काकोरी में चार क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी. काकोरी ट्रेन एक्शन में मात्र 4601 रुपये ही भले ही क्यों ना लूटे गए हों, लेकिन उस एक काम ने अंग्रेजों को ये अहसास करा दिया था कि भारत में अब अंग्रेजी हुकूमत की स्थिति बिगड़ रही है और आजादी के लिए भारत के क्रांतिकारी आगे आ रहे हैं.

रेलवे स्टेशन पर बताया गया है ऐतिहासिक महत्व

काकोरी रेलवे स्टेशन (Kakori Railway Station) पर रेलवे की तरफ से एक बोर्ड भी लगाया गया है, जिसमें काकोरी का ऐतिहासिक महत्व बताया गया है. इसमें लिखा है कि 10 सदस्यों ने काकोरी स्टेशन से सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन में प्रवेश किया. एक पैसेंजेर ट्रेन जो कि सहारनपुर से आ रही थी और ट्रेन जैसे ही आगे बढ़ी राम प्रसाद बिस्लिम ने चैन खींच दिया और उसके बाद चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लहड़ी भी इसी ट्रेन में थे. इन क्रांतिकारियों ने सरकारी धनराशि को अपने कब्जे में लेकर ये बताने की कोशिश की थी कि अब अंग्रेजों को भारत छोड़ने का वक्त आ गया है और जो ये क्रांतिकारी थे. किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार थे.

इस चुनौती से परेशान हो गई थी अंग्रेजी हुकूमत

अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजों को ही मिली चुनौती से वो परेशान हो गए और करीब 50 गिरफ्तारियां की गईं. उसके बाद दिसंबर 1927 में क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र नाथ लहड़ी और ठाकुर रौशन सिंह को फांसी दे दी गई. लखनऊ में काकोरी शहीद स्मारक भी बनाया गया है जो कि काकोरी रेलवे स्टेशन से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर है और यहां पर शहीदों का मंदिर भी है, क्योंकि जिन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की उस हुकूमत में ट्रेन से सरकारी खजाने को अपने कब्जे में लिया था उनको फांसी की सजा दे दी गई थी. चार जो शहीद हुए थे, उन लोगों को दिसंबर 1927 में फांसी दे दी गई थी. राजेंद्र नाथ लहड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां को दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई थी, जबकि चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क प्रयागराज में पुलिस से लड़ते हुए वीरगति को प्रदान हो गए थे.

यूपी सरकार ने क्यों बदला काकोरी कांड का नाम

अंग्रेजों को खजाने को लूटने की घटना को इतिहासकारों ने हमेशा काकोरी कांड कहा है, लेकिन इस बार यूपी सरकार ने इसमें बदलाव किया. सरकार ने इसे काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) का नाम दिया और शहीदों का सम्मान दिया. काकोरी रेलवे स्टेशन से दो किमी. की दूरी पर ही काकोरी शहीद स्मारक बनवाया गया है और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने इस जगह पर आकर शहीदों को और क्रांतिकारियों को याद किया. उत्तर प्रदेश की सरकार ने काकोरी ट्रेन कांड का नाम बदलकर काकोरी ट्रेन एक्शन रखा है और इसके पीछे तर्क ये दिया है कि क्रांतिकारियों और शहीदों को सम्मान दिया जाए. कांड शब्द एक अच्छा प्रतीक नहीं माना जाता है.

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