Rabindranath Tagore's house in Kalimpong: कलिम्पोंग जिले में गौरीपुर हाउस है. इसी गौरीपुर हाउस में वर्ष 1938 से 1940 तक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर रहा करते थे. राजनीति की बेरुखी ने इस घर को खंडहर बना दिया है.
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नई दिल्ली: आज हम पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग जिले से एक ऐसी तस्वीर लेकर आए हैं जिसे देखने के बाद आप नेताओं की कथनी और करनी में आसानी से फर्क समझ जाएंगे. ये कलिम्पोंग स्थित रवीन्द्रनाथ टैगोर के घर की तस्वीर है, जिसे राजनीति की बेरुखी ने खंडहर बनने पर मजबूर कर दिया.
कलिम्पोंग जिले में गौरीपुर हाउस है. इसी गौरीपुर हाउस में वर्ष 1938 से 1940 तक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर रहा करते थे. यहीं से उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना 'जन्मदिन' लिखी. गौरीपुर हाउस देखने में विशाल है, लेकिन अब इसकी दीवारें दरकने लगी हैं. सारे के सारे दरवाजे और खिड़कियां टूट चुके हैं. बारिश के दिनों में इसकी छत से पानी टपकता है.
पश्चिम बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर हर पार्टी वोट मांग रही है. ममता बनर्जी ने वादा किया था कि इस घर में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का म्यूजियम बनाया जाएगा, लेकिन ममता बनर्जी खुद इस वादे को भूल चुकी हैं. पश्चिम बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर वोट मांगने वाले दलों का असली चेहरा इस एक तस्वीर से पता चल जाता है.
2017 में ममता बनर्जी ने जल्दबाजी में कलिम्पोंग को एक अलग जिला घोषित कर दिया था. इससे पहले ये दार्जिलिंग जिले की सिर्फ एक विधानसभा सीट हुआ करती था. लेकिन इस सीट से कभी भी TMC का कोई उम्मीदवार नहीं जीता. कलिम्पोंग में पांचवें चरण में यानी 17 अप्रैल को चुनाव है. टैगोर के नाम पर वोट मांगने वाली ममता बनर्जी को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की कितनी फिक्र है, ये जानने के लिए जब Zee News की टीम कलिम्पोंग के गौरीपुर हाउस पहुंची, तो दंग रह गई.
वहां पूरा एक दिन गुजारने के बाद हमने जाना कि ममता बनर्जी हों या लेफ्ट, बंगाल की हर सरकार ने रवीन्द्रनाथ टैगोर को सिर्फ एक वोट बैंक बना दिया है. खुद को बंगाली अस्मिता की झंडाबरदार बताने वाली ये पार्टियां रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम तभी लेती हैं, जब उन्हें बंगाल के लोगों का वोट हासिल करना होता है.
कलिम्पोंग में गौरीपुर हाउस ये दिखाता है कि महापुरुषों के नाम पर राजनीति तो बहुत की जाती है. वोट बैंक की सियासत भी होती है और बंगाली अस्मिता के साथ भावनाओं को जोड़ने की कोशिश भी हो जाती है. लेकिन गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के इस प्रमुख जगह को भुला दिया गया.
वैसे तो रवीन्द्रनाथ टैगोर बंगाल के रग रग में रचते बसते हैं और यहां की राजनीति में भी. 10 साल से बंगाल की कुर्सी पर बैठी ममता बनर्जी टैगोर के नाम पर वोट तो मांग रही हैं, लेकिन इन 10 सालों में उन्हें ये तस्वीरें दिखी ही नहीं. गौरीपुर हाउस के कोने-कोने में आज भी रवीन्द्रनाथ टैगौर की यादें जिंदा हैं. 1938 में रवीन्द्रनाथ टैगौर पहली बार इस इमारत में रहने के लिए आए. इन्ही दरों दीवारों के बीच उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना जन्मदिन लिखी.
यहां अतीत के सुनहरे पन्ने आबाद तो हैं, लेकिन सरकार की बेरुखी से अब वो पन्ने धुंधला रहे हैं. ये ऐतिहासिक इमारत आज ICU में है. इन 10 सालों में ममता सरकार को कभी भी इस ऐतिहासिक इमारत की मरम्मत करवाने की फुर्सत नहीं मिली. वोट लेने के लिए ममता ने वादा किया था कि इस इमारत की मरम्मती होगी और यहां गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर का म्यूजिम बनेगा, लेकिन ममता वादा करके भूल गईं.
यहां की खिड़कियां टूटी हुईं हैं. दरवाजे टूटे हुए हैं. किसी तरह पर्दा लगाकर कर यहां के केयरटेकर इस ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा करते हैं. आज इस इमारत पर इतिहास का भारी भरकम बोझ है, लेकिन इमारत उस बोझ को सह पाने की हालत में नहीं.
यहीं पर हुई 'जन्मदिन' कविता की रचना
1938 से लेकर 1940 तक इन दो साल तक वो लगातार यहां रहे. उसके बाद हर साल गर्मियों के मौसम में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर इसी इमारत में आकर रहते थे. यहां रहते हुए गुरुदेव ने जन्मदिन कविता की रचना की. अपने जीवन काल के अंतिम दिनों में जब रवीन्द्रनाथ टैगोर बीमार पड़े तो इसी इमारत में आकर रहने लगे.
इस कैंपस में गुरुदेव ने दो पेड़ लगाए, जो आज भी हरे-भरे हैं. संजीता शर्मा यहां की केयर टेकर हैं. वो खुद के दम पर इतनी बड़ी इमारत में साफ-सफाई रखती हैं और गुरुदेव के कमरे की देखभाल करती हैं. उन्हें सरकार से एक रुपए की मदद नहीं मिलती. उनसे पहले उनकी मां के पास ये जिम्मेदारी थी. संजीता के परिवार की तीन पीढ़ियां इस इमारत की देखभाल करती आई हैं. उनकी छोटी सी बेटी भी अब इस काम में हाथ बंटा रही है.
वह कहती हैं, 'इस इमारत में आज भी कुछ लोग रहा करते हैं जो देखभाल किया करते हैं. मेरी मां ने बहुत दुख उठाया इसकी देखभाल के लिए अभी गुजर गई तो मैं देखभाल कर रही हूं. कितनी सरकारें बदल गईं, लेफ्ट का शासन था, फिर ममता दीदी आईं, लेकिन गौरीपुर हाउस की किसी को याद नहीं आई.'
रवीन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति के बहुत करीब रहा करते थे. 1941 में टेगौर का देहांत हुआ. इस बात को 78 से 79 साल बीत चुके हैं, लेकिन रवीन्द्रनाथ टैगोर पर बस सियासत होनी है. गौरीपुर हाउस के जिस कमरे में रवीन्द्रनाथ टैगौर रहते थे, उसके सारे शीशे, खिड़कियां टूटी हुई हैं. दीवारों में दरार आ चुकी है. अगर सरकार इस घर की स्थिति को सुधारना चाहती है, तो इसके लिए एक मेगा एक्शन प्लान तैयार करना होगा.