पश्चिम बंगाल में रहने का दर्द, 8 साल पहले हुए दंगों पर लोगों ने कही ये बात; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट
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पश्चिम बंगाल में रहने का दर्द, 8 साल पहले हुए दंगों पर लोगों ने कही ये बात; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

West Bengal 19 February 2013 Riots: 19 फरवरी 2013 को इस गांव में 200 से ज्‍यादा हिंदू परिवारों के घर जला दिए गए थे. 8 साल तक इस घटना की चर्चा पूरे देश में कहीं भी नहीं हुई. इसे दबा दिया गया, लेकिन यहां के लोगों के जख्म आज साल 2021 में भी ताजा हैं.

पश्चिम बंगाल में रहने का दर्द, 8 साल पहले हुए दंगों पर लोगों ने कही ये बात; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

नई दिल्‍ली: आज हम आपको बताएंगे कि पश्चिम बंगाल में रहने का दर्द क्या होता है?  19 फरवरी 2013 को कोलकाता से लगभग 110 किलोमीटर दूर दक्षिण 24 परगना के नलियाखली गांव में 200 से ज्‍यादा हिंदू परिवारों के घर जला दिए गए थे. लेकिन बाद में इस गांव को भुला दिया गया और इसकी फिर कभी चर्चा नहीं हुई. आज हमने इस गांव से आपके लिए एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. 

सरकार से मुआवजे की मांग  

नलियाखली गांव के बारे में आपमें से बहुत से लोगों ने नहीं सुना होगा, लेकिन जो लोग पश्चिम बंगाल में रहते हैं, वो नलियाखली की उस घटना को जरूर याद करते हैं जो 19 फरवरी 2013 को हुई थी. पश्चिम बंगाल का रहने वाला कोई भी व्‍यक्ति उस घटना को भूल नहीं सकता, क्योंकि उस दिन 200 से ज्‍यादा हिंदुओं के घर जला दिए गए थे. इसके पीछे क्या कारण था, यह आज तक किसी को नहीं पता चला है. आज भी इस हादसे के पीड़ित लोग सरकार से इंसाफ मांग रहे हैं, सरकार से मुआवजा मांग रहे हैं. 

यहां सवाल ये है कि इस घटना को अब तक क्यों दबा कर रखा गया, क्या आपने 2013 से लेकर 2021 तक इस घटना के बारे में कुछ पढ़ा, कुछ सुना या किसी टीवी न्यूज़ चैनल पर इस घटना की कोई खबर देखी, इतनी बड़ी घटना जहां सैकड़ों की संख्या में घर जला दिए गए हों, उस खबर को दबा दिया गया. लेकिन आज जब हम पश्चिम बंगाल पहुंचे तो हमने यह फैसला किया कि हम नलियाखली गांव पहुंचेंगे और देखेंगे कि यहां क्या हुआ था. 

हिंसा का परिणाम क्या होता है, अगर आपको जानना है तो इसका जवाब यहां के लोगों की आंखों में आपको मिल जाएगा. इस गांव में एक धर्म विशेष के लोगों ने कैसे तांडव मचाया था, वो अब तक हिंदू परिवारों को याद है.

मीडिया को आने से क्‍यों रोका गया?

नलियाखली पश्चिम बंगाल का वो गांव है जो कि 2013 में सबसे ज्‍यादा हिंसा का शिकार हुआ था, यहां पर सैकड़ों की संख्या में घर जला दिए गए थे.  दंगाइयों ने इस गांव में न सिर्फ घरों को जलाया था, बल्कि कई मंदिरों को भी नुकसान पहुंचाया था. स्थानीय लोगों ने हमारे संवाददाता को बताया कि नलियाखली गांव के पास से गुजरने वाली इस सड़क के किनारे कई दुकानें थीं, जिन्हें 2013 में जला दिया गया था.

19 फरवरी 2013 को नलियाखली गांव को जला दिया गया, मंदिर तोड़ दिए गए. लोग किसी तरह से अपनी जान बचाकर यहां से भागे. 10-15 दिन बाद फिर वापस आए. इतनी बड़ी घटना हो गई लेकिन मीडिया का ध्यान इस घटना की तरफ नहीं गया, यहां मीडिया को आने से रोका भी गया था, ऐसा भी हमें स्थानीय लोगों ने बताया.

आखिर क्या वजह थी कि तब मीडिया ने इस घटना की कवरेज नहीं की, ये जानने के लिए हमने स्थानीय पत्रकार प्रसनजीत सरदार से बातचीत की, जो इस वक्त हमारे सहयोगी चैनल ज़ी 24 घंटा के संवाददाता भी हैं. उस वक्त जब वो इस घटना को कवर करने के लिए पहुंचे थे, लेकिन प्रशासन ने उन्हें काम करने नहीं दिया. प्रशासन ने कैमरा बंद करा दिया, 3 महीने तक हमें नलियाखली गांव में नहीं आने दिया. पुलिस प्रशासन ने घटना को कवर नहीं करने दिया. 

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पुलिस और प्रशासन से सवाल

हिंसा में जिन हिंदुओं ने अपना सबकुछ गंवाया, उनके कई सवालों का जवाब आज भी पुलिस और प्रशासन के पास नहीं है. 

हमने स्थानीय अधिकारियों से इस मामले में उनका पक्ष जानने की भी कोशिश की. लेकिन उन्होंने कैमरे के सामने कुछ नहीं बताया. बाद में ये ज़रूर कहा कि नई पोस्टिंग की वजह से उन्हें इस केस की जानकारी नहीं है.  हमने उस वक्त बीजेपी के नेता और बाद में मेघालय के राज्यपाल रहे तथागत रॉय से बात की. वो उन चंद नेताओं में थे जो नलियाखली गांव पहुंचे थे.

नलियाखली गांव के लोगों को इंसाफ क्यों नहीं मिला क्या वो सियासत के भुक्तभोगी बने? ये जानने के लिए हमने बंगाल के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों से बात करने की कोशिश की.  हमने टीएमसी विधायकों का भी पक्ष जानना चाहा. 

इस घटना को लेकर सच छिपाने की भले ही लाख कोशिशें की गई हों लेकिन ज़ी न्यूज़ से बातचीत के दौरान नलियाखली गांव के लोगों ने अत्याचार की पूरी कहानी बयां कर दी. लोगों ने बताया कि 2013 में उनके साथ क्या हुआ था और आज नलियाखली गांव के लोग अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग कर रहे हैं, गांव के लोग यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें रहने, जीने और खाने का मौलिक अधिकार तो सरकार से जरूर मिले और इस बात की भी गारंटी कि भविष्य में ऐसी घटना नहीं होगी और वो एक सुरक्षित माहौल में यहां रह सकें.

'प्राचीन मंदिर को पेट्रोल डालकर जला दिया'

नलियाखली गांव का मंदिर, जहां पर गांव के लोग पूजा पाठ किया करते थे,  इस मंदिर को भी नहीं छोड़ा गया. मूर्तियां सड़क पर फेंक दी गई थी और सबकुछ जला दिया गया. 

स्थानीय लोगों ने बताया कि 2013 में प्राचीन मंदिर को पेट्रोल डालकर जला दिया था, इस पवित्र स्थल को लोग आज भी मानते हैं, यहां पर माथा लगाकर ही आगे बढ़ते हैं. मंदिर भले न बचा हो लेकिन लोगों की आस्था आज भी है. लोगों ने ये भी बताया कि नलियाखली गांव के पास से गुजरने वाली इस सड़क के किनारे कई दुकानें थीं, जिन्हें 2013 में जला दिया गया था. गांव में रहने वाले भास्कर हलदार दिव्यांग हैं. दंगाइयों की आग ने इनकी दुकान को जला दिया था, किसी तरह भास्‍कर की जान बच गई थी. 

नलियाखली गांव की अनिमा अधिकारी ने रोते हुए कहा कि सब जला दिया, ठाकुर जी को फेंक दिया, सरकार ने कुछ भी नहीं दिया. मुझे कोई घर नहीं मिला. वहीं गांव के निवासी गोपाल अधिकारी ने कहा कि एक धर्म विशेष के लोगों ने हमारे घर जला दिए. उन्‍होंने कहा कि बंगालियों को मारो, 200 से ज्‍यादा घर जला दिए गए,  बहुत नुकसान हुआ, घर जल गए. सरकार ने कोई मदद नहीं दी. सरकार ने उन्हीं लोगों की मदद की जिन लोगों ने हमारा घर जलाया.

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