आज हम कुछ ऐसे लोगों की कहानियां आपको बताएंगे, जिन्होंने अपने जीवन में बहुत सारा पैसा नहीं कमाया, बड़ा घर और बड़ी गाड़ी नहीं खरीदी लेकिन उनके पास ऐसी जमा पूंजी थी, जिसे वो अपनी मृत्यु के बाद भी खर्च कर सकते थे. और ये जमा पूंजी विश्वास से जोड़े गए अपने लोगों की है.
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आप गरीब हैं या अमीर, ये बात इस पर निर्भर नहीं करती कि आपके बैंक अकाउंट में कितना पैसा है, आपका कितना बड़ा और आलीशान घर है और आपके पास कितनी महंगी गाड़ी है. असल में हम लोग बड़े-बड़े मकानों, बंगले और फ्लैट्स में नहीं रहते. हम लोग अपने कानों के बीच जो ये 6 इंच की जगह है, जिसे हम मस्तिष्क कहते हैं, हम इसी मस्तिष्क में रहते हैं. इस मस्तिष्क में असीमिक विचार हैं, असीमित शक्तियां हैं और असीमित संसाधान हैं. ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं. इसलिए आप ऐसा मत सोचिए जिस मकान, बंगले, फ्लैट्स और झोपड़ी में आप रहते हैं, वो आपका घर है.
कड़वा सच तो ये है कि मृत्यु के बाद पैसा किसी के काम नहीं आता. पैसा काई की तरह सड़ने लगता है लेकिन रिश्ते मृत्यु के बाद एक करेंसी की तरह काम करते हैं और यही आपकी असली जमा पूंजी होती है.
इसलिए आज हम कुछ ऐसे लोगों की कहानियां आपको बताएंगे, जिन्होंने अपने जीवन में बहुत सारा पैसा नहीं कमाया, बड़ा घर और बड़ी गाड़ी नहीं खरीदी लेकिन उनके पास ऐसी जमा पूंजी थी, जिसे वो अपनी मृत्यु के बाद भी खर्च कर सकते थे. और ये जमा पूंजी विश्वास से जोड़े गए अपने लोगों की है.
आगरा की तस्वीर
ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के आगरा की है, जहां एक ऑटो रिक्शा में बैठी महिला अपने बीमार पति को मुंह से सांस देने की कोशिश करती दिखी. लेकिन वो ऐसा करके भी उसे बचा नहीं पाई और उसके पति ने उसकी गोद में ही दम तोड़ दिया.
ये तस्वीर अपने आप में हजार सवाल बयान करती है. इस व्यक्ति को चार प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए ले जाया गया, लेकिन किसी भी अस्पतालों में इसे भर्ती नहीं किया गया क्योंकि वहां जगह थी ही नहीं. इसके बाद सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की, लेकिन सरकारी अस्पताल में भी बेड नहीं मिला. अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन के लिए संघर्ष किया, लेकिन ऑक्सीजन का सिलिंडर भी नहीं मिला और आखिरकार इस व्यक्ति ने दम तोड़ दिया.
यहां मृत्यु की कठोरता ने जीवन की सांसों को इससे छीन लिया. लेकिन ये महिला अपने पति के साथ बैठी रही. पति की सांसें थम गईं तो उसे अपने मुंह से सांस देनी की कोशिश की और अपने पति का आखिरी दम तक साथ नहीं छोड़ा.
यूनान के महान विचारक अरस्तु से जब पूछा गया था कि मित्रता क्या है? सच्चा रिश्ता क्या होता है? तो उन्होंने कहा था 'Single Soul Dwelling In Two Bodies' यानी जब एक आत्मा दो शरीरों में निवास करती है तो वो सच्चा रिश्ता होता है और ये तस्वीर हमें यही बताती है.
इस महिला की बेबसी से आज आप इस बात को भी समझ सकते हैं कि हमारे देश में गरीब होना कितना बड़ा अभिशाप है. सोचिए मरने के बाद भी एक गरीब व्यक्ति दो गज जमीन के लिए संघर्ष करता रहता है, लेकिन ये भी उसे आसानी से नसीब नहीं होती.
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ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के जौनपुर की है, जहां एक व्यक्ति साइकिल पर ही अपनी पत्नी का शव लेकर उसका अंतिम संस्कार करने नदी के किनारे चल पड़ा. आरोप है कि पत्नी की मौत कोरोना की वजह से हुई थी इसलिए न तो पुलिस से कोई मदद मिली और ना ही प्रशासन ने शव को श्मशान घाट तक पहुंचाने के लिए ऐम्बुलेंस की व्यवस्था की और जब गांव के लोगों ने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए, तब इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी से किया वादा निभाया.
वो साइकिल पर ही उसके शव को लाद कर नदी किनारे चल पड़ा लेकिन कुछ दूर के बाद साइकिल ने भी जवाब दे दिया. ये तस्वीर आज आपको मानसिक तौर पर विचलित कर सकती है. ये व्यक्ति सिस्टम से हार कर भी अपनी पत्नी को मोक्ष दिलाने के लिए संघर्ष करता रहा और यही कहानी आज हमारे देश के कई लोगों की है.
कहते हैं कि मुश्किल समय एक सख्त टीचर की तरह होता है और सख्त टीचर हमेशा कुछ सीखा कर ही जाता है. ये तस्वीरें हमें अपनों के साथ और गरीबी के अभिशाप की याद दिला रही हैं और इसलिए हम चाहते हैं कि आज आप इन तस्वीरों को बिल्कुल ना भूलें.
रामायण में जब भाई लक्ष्मण के प्राण निकलने वाले थे तो भगवान राम ने युद्ध की परवाह किए बिना उनकी जान बचाने का संकल्प लिया था. वो अपनों के लिए खड़े रहे थे और आज हमारे देश में ऐसे कई परिवार और मित्र हैं, जो अपनों के साथ खड़े हुए हैं और इसे आप इस कहानी से समझ सकते हैं.
ये कहानी झारखंड के एक व्यक्ति की है, जो अपने दोस्त की जान बचाने के लिए झारखंड के बोकारो से ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर 1400 किलोमीटर दूर नोएडा पहुंच गया और इस व्यक्ति का नाम है देवेंद्र.
झारखंड के इस व्यक्ति ने अपने दोस्त की जान बचाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर 1400 किलोमीटर का सफर तय किया. बोकारो से नोएडा सिर्फ 24 घंटों में पहुंच गया. उसका दोस्त इस वक्त अस्पताल में कोरोना से लड़ रहा है और उसे ऑक्सीजन दी जा रही है.
आज हम आपको एक और बात बताना चाहते हैं. आज कल ट्विटर पर आप कई लोगों को ऑक्सीजन, Remdesivir Injection और Plasma के लिए मदद की गुहार लगाते देखते होंगे. बड़े Influencer, बड़े पत्रकार और नेता आज कल मदद मांगने वाले लोगों के Messages ट्वीट करके उनकी मदद कर रहे हैं.
ये लोग जब ट्वीट करते हैं तो सरकारें भी सोचती हैं कि पहले इनका काम हो जाए. इन लोगों ने जिनके लिए मदद मांगी है, उन्हें इलाज मिल जा. यानी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके शोर माचने वाले लोगों को मदद मिल जाती है. लेकिन इस मदद का दूसरा पहलू ये है कि इससे उन आम लोगों के अधिकार खत्म हो जाते हैं, जो घंटों इलाज के लिए लाइनों में लगे रहते हैं और जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है.
आज हमने आपको जिन लोगों की कहानियां बताईं, ये सभी लोग ट्वीट नहीं कर सकते थे, इसलिए उनकी कहीं कोई सुनवाई भी नहीं हुई. भारत में ट्विटर यूजर्स की संख्या 1 करोड़ 75 लाख है और देश की आबादी 135 करोड़ है. अब आप खुद सोचिए कि जो लोग ट्विटर पर नहीं हैं, और जो ट्वीट करके मदद नहीं मांग सकते, वो आखिर कहां जाएंगे? हमें लगता है कि घर में एयर कंडीशनर कमरों में बैठकर मदद के लिए ट्वीट करना तो आसान है लेकिन ऐसा करते समय ये सोचना भी जरूरी है कि जो लोग ट्विटर पर नहीं हैं वो कहां जाएंगे?
आज ट्विटर पर मदद मांगने वाले व्यक्ति को तो किसी तरह सिफारिश से अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है और हम मानते हैं कि उन्हें इलाज मिलना चाहिए. लेकिन एक बार उन लोगों के बारे में सोचिए जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है. जो ट्वीट नहीं कर सकते. जो सिर्फ अस्पतालों के बाहर मरीजों के इलाज के लिए धक्के खा सकते हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्हें इलाज नसीब नहीं होता. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि भारत में अब भी 60 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं. तो क्या इसका मतलब ये है कि इन 60 करोड़ लोगों की कोई मदद नहीं होगी ?
ये हालात तब हैं, जब देश का हर व्यक्ति हेल्थ Cess के रूप में चार प्रतिशत टैक्स भरता है और इनमें वो लोग भी हैं, जिनकी कहानियां आज हमने आपको दिखाईं. लेकिन सोचिए टैक्स भरने वाले गरीब और आम आदमी को अस्पताल में इलाज नहीं मिलता और ट्विटर पर वो मदद मांग नहीं सकते.
आज इस कहानी में सिक्के का दूसरा पहलू भी है और वो ये कि वायरस तो एक है लेकिन मौत अलग-अलग तरह से मिल रही है. कोई अस्पताल के बाहर इलाज के लिए तड़प-तड़प कर मर गया, कोई इसलिए मर गया क्योंकि वो अस्पताल तक नहीं पहुंच पाया, कई लोगों की जान इसलिए चली गई क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली और कुछ इसलिए मर गए क्योंकि उनके पास ऑक्सीजन का सिलिंडर नहीं था. यानी वायरस तो एक है लेकिन मौत का रूप अलग अलग है.
शहीद ए आजम भगत सिंह ने एक बार कहा था कि ''क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है, ये एक सजा है और आज इसी सजा को हमारे देश के कई लोग भुगत रहे हैं.