पश्चिम बंगाल के संदर्भ में वर्ष 2006 के विधान सभा चुनाव के बाद से एग्जिट पोल कभी गलत साबित नहीं हुए. वर्ष 2006 में ममता बनर्जी पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर रही थीं और उन्हें उम्मीद थी कि चुनाव के नतीजे उन्हीं के पक्ष में आएंगे.
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नई दिल्ली: आज एग्जिट पोल के नतीजों को देखकर आपके मन में ये सवाल भी होगा कि एग्जिट पोल कितने सही होते हैं? इस सवाल का जवाब अगर पश्चिम बंगाल के संदर्भ में तो वर्ष 2006 के विधान सभा चुनाव के बाद से एग्जिट पोल कभी गलत साबित नहीं हुए. वर्ष 2006 में ममता बनर्जी पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर रही थीं और उन्हें उम्मीद थी कि चुनाव के नतीजे उन्हीं के पक्ष में आएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तब सभी एग्जिट पोल एकमत से लेफ्ट पार्टियों को जीता रहे थे और चुनाव के नतीजे भी ऐसे ही रहे.
इसी तरह 2011 के विधान सभा चुनाव के एग्जिट पोल में ये अनुमान लगाया गया था कि 34 वर्षों का लेफ्ट शासन पश्चिम बंगाल में समाप्त हो जाएगा और TMC की सरकार बनेगी. जब नतीजे आए तो ये एग्जिट पोल सही निकले.
इसके बाद 2016 के विधान सभा चुनावों में भी ऐसा ही हुआ. और 2019 के लोक सभा चुनाव में भी ज्यादातर एग्जिट पोल यही बता रहे थे कि बीजेपी और TMC के बीच कांटे की टक्कर होगी और ऐसा ही हुआ. यानी पश्चिम बंगाल के संदर्भ में देखें तो यहां एग्जिट पोल सही साबित होते आए हैं. हालांकि ये ट्रेंड इस बार भी बरकरार रह पाता है या नहीं, ये 2 मई को ही साफ हो पाएगा.
अब हम आपको ये बताते हैं कि 2016 के विधान सभा चुनाव में क्या हुआ था और फिर 2019 के लोक सभा चुनाव में तस्वीर कैसे बदल गई. इसे हम आपको वोट शेयर और सीटों के आधार पर बताएंगे. पहले वोट शेयर के आधार पर 2016 और 2019 के चुनावों का विश्लेषण करते हैं. क्योंकि इन्हीं दोनों चुनावों में मौजूदा चुनावों के नतीजे भी छिपे हो सकते हैं.
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2016 के विधान सभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी का वोटर शेयर 45.6 प्रतिशत था. तब TMC अकेली ऐसी पार्टी थी, जिसका वोटर शेयर 25 प्रतिशत से ज्यादा रहा था. मतलब बाकी सभी पार्टियों को इससे कम वोट मिले थे और यही वजह है कि ममता बनर्जी ने 2016 के विधान सभा में 294 सीटों में से 211 सीटें जीती थीं. जबकि 20.1 प्रतिशत वोट शेयर के साथ CPM दूसरे स्थान पर, कांग्रेस तीसरे स्थान पर और BJP चौथे स्थान पर रही थी.
उस समय BJP का वोट शेयर 10.3 प्रतिशत था और उसको 294 में से केवल तीन सीटों पर जीत मिली थी. इस हिसाब से देखें तो आज से पांच वर्ष पहले BJP, TMC तो दूर कांग्रेस और CPM के भी आसपास नहीं थी. बड़ी बात ये है कि पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में BJP का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी 3 सीट ही है. लेकिन आज BJP पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने का दावा कर रही है. क्यों? इसे अब आप 2019 के लोक सभा चुनाव के नतीजों से समझिए...
2016 के विधान सभा चुनाव में 3 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर जीती. जबकि ममता बनर्जी की पार्टी TMC को 22 सीटों पर जीत हासिल हुई. लेकिन इन नतीजों को अगर विधान सभा के लिहाज से देखें तो 121 विधान सभा सीटों पर बीजेपी को जीत मिली और 164 सीटों पर ममता बनर्जी की पार्टी जीती.
सबसे अहम 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 40 प्रतिशत था और TMC का वोट शेयर लगभग 43 प्रतिशत था. यानी दोनों के बीच केवल 3 प्रतिशत वोट का अंतर था, जबकि 2016 में ये अंतर लगभग 35 प्रतिशत था. लेकिन बीजेपी ने इस अंतर को सिर्फ 3 वर्षों में भर दिया. आज हम यहां आपको एक और दिलचस्प आंकड़ा बताना चाहते हैं, जो कहीं ना कहीं ये संकेत देता है कि पश्चिम बंगाल में इस समय वही हो रहा है, जो आज से 10 वर्ष पहले हुआ था.
ममता बनर्जी 2011 में पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं. लेकिन उन्होंने सत्ता की नींव दो साल पहले 2009 के लोक सभा चुनावों में ही डाल दी थी. तब आम चुनाव में TMC ने पहली बार लेफ्ट को तगड़ा झटका देकर 19 सीटें जीती थीं और यही नतीजे फिर 2011 के विधान सभा चुनाव का आधार भी बने. लेकिन समझने वाली बात ये है कि जो 2009 के लोक सभा चुनाव में हुआ, वैसा ही कुछ 10 साल बाद 2019 के लोक सभा चुनाव में भी हुआ.
बस अंतर इतना है कि तब ममता बनर्जी ने लेफ्ट के 34 वर्षों के शासन को टक्कर देते हुए 19 सीटें जीती थी, और 2019 में बीजेपी ने उनके 10 साल के शासन को टक्कर देते हुए लोक सभा की 18 सीटें जीती और हमें लगता है कि 2 मई को जब नतीजे आएंगे, तब सीटों का यही विश्लेषण आपको देखने को मिल सकता है.