DNA Analysis: सोशल मीडिया पर कितने 'असामाजिक लोग', ऐसे करते हैं महिलाओं का उत्पीड़न
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DNA Analysis: सोशल मीडिया पर कितने 'असामाजिक लोग', ऐसे करते हैं महिलाओं का उत्पीड़न

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 35 प्रतिशत महिलाएं किसी ना किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती हैं.

DNA Analysis: सोशल मीडिया पर कितने 'असामाजिक लोग', ऐसे करते हैं महिलाओं का उत्पीड़न

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 35 प्रतिशत महिलाएं किसी ना किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती हैं. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि Social Media पर दुनिया की करीब 60 प्रतिशत महिलाओं के के साथ किसी प्रकार की हिंसा होती है.

  1. सोशल मीडिया पर आते ही स्वछंद हो जाते हैं पुरुष
  2. दुनिया में 60 प्रतिशत महिलाएं सोशल मीडिया पर हिंसा पीड़ित
  3. वर्चुअल प्लेटफार्म पर हिंसा असल जिंदगी जितनी खतरनाक

सोशल मीडिया पर आते ही  स्वछंद हो जाते हैं पुरुष
यह आंकड़ा देखकर आप कह सकते हैं कि Real Life यानी असल जीवन में कानून के डर की वजह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वाले पुरुषों की संख्या भले ही कम हो. लेकिन जैसे ही ये पुरुष सोशल मीडिया पर आते हैं, ये पूरी तरह से स्वछंद हो जाते हैं और खुलेआम महिलाओं के साथ हिंसा करने लगते हैं. ये हिंसा भले ही शारीरिक ना हो .लेकिन इस Online हिंसा का शिकार हुई महिलाओं की मानसिक स्थिति भी शारिरिक हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं जैसी हो जाती है.

दुनिया में 60 प्रतिशत महिलाएं सोशल मीडिया पर हिंसा पीड़ित
Planet International नाम की एक संस्था की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 60 प्रतिशत महिलाएं Social Media पर किसी ना किसी प्रकार की हिंसा का सामना करती है. इस वजह से 20 प्रतिशत महिलाओं को अपना Social Media Account बंद भी करना पड़ता है.

22 देशों में किया गया सर्वे
ये सर्वे भारत समेत 22 देशों की 14 हज़ार से ज्यादा महिलाओं के बीच किया गया है. सर्वे में शामिल महिलाओं की उम्र 15 से 25 वर्ष के बीच थी. इस सर्वे के मुताबिक 39 प्रतिशत महिलाओं के साथ Online हिंसा की घटनाएं facebook पर होती हैं, जबकि Instagram पर हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं की संख्या 23 प्रतिशत है. 14 प्रतिशत महिलाओं के साथ Whatsapp के माध्यम से Online हिंसा की जाती है, जबकि Snapchat पर 10 प्रतिशत, Twitter पर 9 प्रतिशत और Tik tok पर 6 प्रतिशत महिलाओं के हिंसा का सामना करना पड़ता है.

दिल्ली-एनसीआर में भी सोशल मीडिया पर महिलाओं से हिंसा
इसी वर्ष दिल्ली और आस पास के शहरों में किए गए एक सर्वे में पता चला था कि इंटरनेट पर महिलाओं के साथ हिंसा के मामले 36 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. जबकि Online हिंसा के मामलों में सजा की दर 40 प्रतिशत से घटकर 25 प्रतिशत रह गई है. अगर 100 पुरुष Social Media या Internet पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा करते हैं तो उसमें से सिर्फ 25 को ही सज़ा मिल पाती है. जबकि महिला के साथ रेप के मामलों में सज़ा की दर 27 प्रतिशत है.  Online हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं की स्थिति असल जिंदगी में हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं से भी खराब है. ये बहुत चिंताजनक स्थिति है.

वर्चुअल प्लेटफार्म पर हिंसा असल जिंदगी जितनी खतरनाक
हिंसा अगर किसी Virtual Platform पर हो रही है तो भी वो असल जिंदगी में होने वाली हिंसा जितनी ही खतरनाक है. Via sat Savings.Com नाम की एक Website के सर्वे के मुताबिक इसी हिंसा और छेड़छाड़ की वजह से facebook पर 74 प्रतिशत महिलाओं को किसी ना किसी को Block करना पड़ता है. इंस्टाग्राम पर पुरुषों के मुकाबले दोगुनी महिलाएं किसी ना किसी को Block करती हैं. आप अपने घर को तो सुरक्षित बना सकते हैं, घर के आस पास ऊंची ऊंची दीवारें खड़ी कर सकते हैं, CCTV कैमरे लगा सकते हैं. लेकिन Social Media Accounts को सुरक्षित बनाने के ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं है. Social Media Platforms का मकसद वैसे तो आपको दूसरे लोगों के करीब लाना होता है.

महिलाएं सोशल मीडिया पर अकाउंट प्राइवेट रखना पसंद करती हैं
लेकिन Online हिंसा और छेड़छाड़ के बढ़ते मामलों की वजह से अब करीब 59 प्रतिशत महिलाएं अपने Social Media Accounts को प्राइवेट रखना ही पसंद करती हैं. जबकि Social Media Account को प्राइवेट रखने वाले पुरुषों की संख्या सिर्फ 44 प्रतिशत है. यानी ज्यादातर पुरुष चाहते हैं कि उनके Account पर जो भी Post किया जा रहा है उसे ज्यादा से ज्यादा लोग देखें, जबकि महिलाओं ऐसा नहीं चाहती. महिलाओं के प्रति असुरक्षा और भेदभाव की  जो स्थिति हमने अपने असली समाज में पैदा की है, वही स्थिति अब सोशल मीडिया की आभासी दुनिया पर भी हावी होने लगी है.

अधिकतर महिला कभी न कभी सोशल मीडिया पर हिंसा का शिकार हुई
कुल मिलाकर महिलाओं के साथ Eve Teasing जैसी घटनाएं अब सिर्फ घर के बाहर ही नहीं होती बल्कि सोशल मीडिया पर भी महिलाओं को उसी तरह से सताया जाता है. इसलिए आगे बढ़ने से पहले आपको उन महिलाओं की बात सुननी चाहिए जो कभी ना कभी Online हिंसा का शिकार हुई हैं या जिन्हें इस हिंसा की आशंका है.

सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ भेदभाव
आज से 20 वर्ष पहले जब अलग अलग Social Media Platforms की शुरुआत हुई थी तो कहा गया था कि ये Virtual दुनिया सबको बराबरी का मौका देगी. यहां महिलाओं और पुरुषों के बीच कोई भेदभाव नहीं होगा. लेकिन आज की हकीकत ये है कि Social Media ही समाज के अलग अलग वर्गों के साथ भेदभाव का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है.

18-30 वर्ष की महिलाओं के साथ ज्यादा हिंसा
एक अंतर्राष्ट्रीय Website की रिपोर्ट के मुताबिक 18 से 30 वर्ष की महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा Online हिंसा की आशंका होती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक Online हिंसा की 26 प्रतिशत घटनाओं के पीछे Facebook जिम्मेदार होता है. मोबाइल फोन के जरिए Online हिंसा की 19 प्रतिशत घटनाओं को अंजाम दिया जाता है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि Online हिंसा के सिर्फ 33 प्रतिशत मामलों में ही Service Provider की तरफ से कोई कार्रवाई की जाती है और जिन मामलों की जानकारी Authorities को दी जाती है. उनमें से सिर्फ 41 प्रतिशत मामलों की ही जांच हो पाती है .

Algorithm में भी महिलाओं से दूसरे दर्जे का व्यवहार
Social Media पर होने वाला ये भेदभाव यहीं तक सीमित नहीं है . Technology कंपनियां जिस Algorithm के सहारे पूरी दुनिया जीतने का सपना देखती है वो Algorithm ही सोशल मीडिया पर अलग अलग वर्गों के साथ भेदभाव का हथियार बन चुका है. इस भेदभाव का पता लगाने के लिए अमेरिका की North Eastern University ने Facebook पर नौकरियों के कुछ विज्ञापन Post किए. और ये पता लगाने की कोशिश की कि अलग अलग नौकरियों के विज्ञापन समाज के किस हिस्से तक पहुंचते हैं . इस रिपोर्ट का दावा है कि चौकीदार और ड्राइवर जैसे विज्ञापन सबसे ज्यादा उन लोगों तक पहुंचाए गए जो अल्पसंख्यक हैं. जबकि नर्स और सेक्रेटरी जैसे ज्यादातर विज्ञापन महिलाओं को दिखाए गए. जब किसी घर की बिक्री से संबंधित विज्ञापन Post किया गया तो उसे उन लोगों तक पहुंचाया गया जिनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहतर है. यानी समाज में भेदभाव की दीवारें गिराने का दावा करने वाला सोशल मीडिया खुद समाज को रंग, Gender, जाति और धर्म के आधार पर बांट रहा है. 

महिलाओं से हिंसा के लिए फेक अकाउंट जिम्मेदार
महिलाओं के साथ जो हिंसा होती है उसके पीछे बड़ी संख्या में बनने वाले Fake Accounts भी हैं. कई बार कुछ पुरुष महिलाओं के नाम से Fake Account बना लेते हैं और धोखा देकर महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं.

- वर्ष 2019 के पहले तीन महीनों में फेसबुक ने 220 करोड़ Fake Accounts हटाए.

- चिंता की बात ये भी है कि ये Fake Accounts सिर्फ तीन महीनों में बनाए गए थे.

- कुल मिलाकर इस समय फेसबुक पर जितने असली Accounts हैं लगभग उतने ही Fake Accounts भी हैं.

- ये Fake Accounts सोशल मीडिया पर सबसे बड़ा खतरा हैं. इन Fake Accounts से ऑनलाइन हिंसा की जाती है, Fake न्यूज़ फैलाई जाती है और धोखाधड़ी की कोशिशें भी होती हैं. इंटरनेट की दुनिया पर कौन असली है और कौन नकली इसकी पहचान करना बहुत मुश्किल हो चुका है .

महिलाओं को क्रेडिट देने में लोग करते हैं संकोच
सोशल मीडिया पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आंकड़े देखने और विशेषज्ञों की बातें सुनने के बाद आप समझ गए होंगे कि महिलाएं ना असली समाज में सुरक्षित हैं और ना ही Social Media की आभासी दुनिया में सुरक्षित हैं . महिलाएं दोनों ही जगहों पर भेदभाव का शिकार होती हैं. Russia के Higher School Of Economics की एक रिसर्च के मुताबिक जब कोई व्यक्ति अपने बेटों के बारे में सोशल मीडिया पर कुछ लिखता है तो उसे डेढ़ गुना ज्यादा Likes मिलते हैं. जब कोई महिला अपनी बेटी के बारे में सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट लिखती है तो उसे महिलाओं से औसतन 7 Likes मिलते हैं जबकि औसतन सिर्फ एक पुरुष ही इसे Like करता है. 

महिलाएं भी दूसरी महिलाओं के साथ करती हैं भेदभाव
महिलाओं के साथ इस तरह का भेदभाव सिर्फ पुरुष ही नहीं करते हैं बल्कि महिलाएं भी भेदभाव करती है. जब कोई महिला अपने पुत्र के बारे में सोशल मीडिया पर कुछ लिखती है तो उसे औसतन 11 महिलाएं Like करती हैं. जब कोई पुरुष अपनी बेटी के बारे में कुछ लिखता है तो औसतन उसे 5 महिलाएं Like करती हैं..लेकिन जब कोई पुरुष अपने बेटे के बारे में कुछ लिखता है तो उसे Like करने वाली महिलाओं की संख्या 5 से बढ़कर 7 हो जाती है. Likes में होने वाला ये भेदभाव बताता है कि हमारा समाज आज भी कैसे बेटियों के मुकाबले बेटों को ज्यादा पसंद करता है. इसी रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं करियर में अच्छे खासे मुकाम पर पहुंच जाती है उनके भी Followers की संख्या पुरुषों
 के मुकाबले बहुत कम होती हैं.

टूटने लगा है इंटरनेट पर बराबरी का सपना
दुनिया ने Internet पर Instant बराबरी का जो सपना देखा था वो अब टूटने लगा है. जिस तरह असल जीवन में आज भी लड़कियों से तमाम सवाल पूछे जाते हैं, पूछा जाता है कि तुम इतनी रात को कहां गईं थी? तुमने इस तरह के कपड़े क्यों पहने, किसके साथ गई थी.. उसी तरह के सवाल सोशल मीडिया पर भी पूछे जाते हैं. पहले महिलाओं को गली के लड़के छेड़ते थे..लेकिन अब सोशल मीडिया पर Eve Teasing की जाती है. सोशल मीडिया पर महिलाओं से पूछा जाता है कि तुम इतनी रात गए Online क्या कर रही हो. तुमने फलां पुरुष के साथ तस्वीर क्यों खिचवाई , तुम्हारी राजनैतिक विचारधारा ऐसी क्यों है और ना जाने ऐसे कितने ही सवाल महिलाओं से पूछे जाते हैं.

महिलाओं को उत्पाद की तरह देखना लगा है समाज
हमारा असली समाज ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया भी महिलाओं को एक Product की तरह देखने लगा है. इंटरनेट कंपनियों के Algorithm ना सिर्फ महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं बल्कि महिलाओं को एक उत्पाद में भी बदलना चाहते हैं. जो महिला सोशल मीडिया पर ज्ञान विज्ञान की बातें करती है उसके Followers की संख्या उतनी नहीं होती जितनी एक Model के Followers की होती हैं. अश्लील Content इसी Algorithm के सहारे तेज़ी से प्रमोट होते हैं जबकि ज्ञान भरे Content को ज्यादा लोगों तक पहुंचने में अधिक समय लगता है. Social Media पर Views और Likes की तुलना आप टीवी चैनलों की TRP से कर सकते हैं और दोनों में जो एक बात सामान्य है वो ये है कि आपका Content जितना Cheap यानी घटिया होगा आपको TRP और Followers भी उतने ही ज्यादा मिलेंगे.

क्या महिला विरोधी हो गया है समाज
एक समाज हमने ज़मीन पर बसाया और उसका बड़ा हिस्सा महिला विरोधी हो गया,एक समाज हमने हवा में बसाया और सोचा कि कम से कम ये डिजिटल दुनिया तो महिलाओं का सम्मान करना सीख लेगी. लेकिन अफसोस ये है कि डिजिटल दुनिया में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और उनका अपमान अब सारी सीमाएं लांघने लगा है .

आप ऐसे दर्ज करवा सकते हैं अपनी शिकायत सभी बड़े Social Media Platforms पर Online Harrassment की रिपोर्ट करने का विकल्प होता है. जहां पर आप अपने साथ हुई ऐसी घटनाओं की सूचना दे सकते हैं. 

- लगभग हर एक राज्य में एक Cyber Cell Department होता है. हालांकि आप चाहें तो National Cyber Crime Reporting Portal पर भी ऐसी जानकारी दे सकते हैं.

- आप चाहें तो भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय को E-mail करके भी इसकी ख़बर दे सकते हैं. ये E-mail Address आप आपकी स्क्रीन पर देख सकते हैं.

- राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के साथ हुई Online हिंसा के मामलों पर खुद संज्ञान लेकर जांच शुरु कर सकता है. राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट पर आप Online शिकायत भी कर सकते हैं, E-mail कर सकते हैं या फिर उनके Helpline Number पर भी कॉल कर सकते हैं.

- इन सबके अलावा आप अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर F.I.R भी दर्ज कर सकते हैं. याद रखिए कि पुलिस के लिए आपकी F.I.R को रजिस्टर करना अनिवार्य है.

लेकिन सबसे जरूरी बात ये है कि आप अपने Social Media Account की Privacy Setting को ज्यादा से ज्यादा मजबूत रखें. अनजाने और अनचाहे लोगों को अपनी फ्रेंड लिस्ट का हिस्सा ना बनने दें क्योंकि जैसा कि हमने कहा फ्रेंड का फ्रेंड.. फ्रेंड नहीं होता.

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