देश में अक्सर लोग एक बात कहते हैं कि ऑफिस का काम घर के बाहर छोड़ कर आना चाहिए, लेकिन जब से कोरोना वायरस आया है, तब से बहुत से लोगों के लिए उनका घर ही उनका ऑफिस बन गया है और घर वाले इस ऑफिस में काम तय घंटों के हिसाब से नहीं होता.
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नई दिल्ली: आज हम दफ्तर और घर के बीच खींची उस लाइन के बारे में आपको बताएंगे, जिसे वर्क फ्रॉम होम ने लगभग मिटा दिया है. हमारे इस विश्लेषण का आधार है, यूरोपियन पार्लियामेंट में पेश हुआ एक प्रस्ताव, जो ये कहता है कि अगर कोई कर्मचारी कंपनी के तय घंटों से ज्यादा काम करता है, तो इसे उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा.
इसमें ये भी लिखा है कि हर कर्मचारी को ये अधिकार होना चाहिए कि वो अपने काम के घंटों के बाद दफ्तर से आई फोन कॉल और ई मेल का जवाब न दे और किसी भी कर्मचारी का इस आधार पर आकलन न किया जाए कि उसने अपनी शिफ्ट के बाद वर्चुअल मीटिंग्स में हिस्सा नहीं लिया.
हमारे देश में अक्सर लोग एक बात कहते हैं कि ऑफिस का काम घर के बाहर छोड़ कर आना चाहिए, लेकिन जब से कोरोना वायरस आया है, तब से बहुत से लोगों के लिए उनका घर ही उनका ऑफिस बन गया है और घर वाले इस ऑफिस में काम तय घंटों के हिसाब से नहीं होता, बल्कि ज्यादातर कंपनियां और बॉस यही मानते हैं कि आप अपनी शिफ्ट के बाद भी उनके काम के लिए उपलब्ध रहेंगे और इसी वजह से अब कई लोगों के लिए दफ्तर और घर के बीच संतुलन बिठाना मुश्किल हो गया है.
-लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें वर्किंग आवर्स खत्म होने के बाद भी अक्सर ऑफिस से आई फोन कॉल्स उठानी पड़ती हैं.
-ड्राइविंग के दौरान गाड़ी रोकर ईमेल का जवाब देना पड़ता है.
-और छुट्टी वाले दिन भी उन्हें कंपनी द्वारा स्टैंड बाय पर रखा जाता है और ऐसा नहीं है कि ये किसी एक देश में हुआ है.
पिछले वर्ष जब ब्रिटेन में कोरोना वायरस की वजह से पहला लॉकडाउन लगा था, उससे पहले तक वहां के दफ़्तरों में कर्मचारी औसतन हर दिन 9 घंटे काम करते थे लेकिन जनवरी 2021 में आई एक रिपोर्ट कहती है कि अब वर्क फ्रॉम होम की वजह से ब्रिटेन में लोगों को 9 की जगह 11 घंटे काम करना पड़ता है.
इसी तरह अमेरिका में पहले लोग दफ़्तरों में औसतन 8 घंटे काम करते थे लेकिन अब वहां भी वर्क फ्रॉम होम में लोगों को 11-11 घंटे काम करना पड़ता है.
यही हाल नीदरलैंड्स का है, जहां काम के घंटे 9 से बढ़ कर 10 हो गए हैं और ऑस्ट्रिया में भी इसी तरह की स्थिति है.
इसके अलावा फ्रांस, इटली और स्पेन में लोगों को पहले की तुलना में औसतन एक घंटा ज्यादा काम करना पड़ रहा है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लोग एक हफ्ते में 48 घंटे दफ्तर का काम करते हैं और ये इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के नियमों के खिलाफ है. इस विषय को लेकर कुछ समय पहले टेक्नोलॉजी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने भी दुनियाभर के कर्मचारियों पर एक सर्वे किया था, जिसमें अधिकतर कर्मचारियों ने ये बात मानी थी कि वर्क फ्रॉम होम करने से उनके काम के घंटे और कंपनी का दबाव उन पर काफी बढ़ गया है.
-इसी सर्वे में तब ये बात भी सामने आई थी कि वर्क फ्रॉम होम के दौरान वीकली मीटिंग्स का समय 148 प्रतिशत तक बढ़ गया.
-फरवरी 2020 के मुकाबले फरवरी 2021 में कर्मचारियों के ईमेल अकाउंट्स पर लगभग 4 हज़ार करोड़ ज्यादा ई मेल्स आईं.
-और हर हफ़्ते होने वाली टीम चैट्स प्रति व्यक्ति 45 प्रतिशत तक बढ़ गई.
-इसके अलावा भारत में भी कई कर्मचारियों ने इस सर्वे में घर से ज्यादा काम करने पर नाराजगी जताई थी.
हालांकि अब आप सोच रहे होंगे कि इसका समाधान क्या है? तो यूरोपियन पार्लियामेंट में कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित रखने के ही लिए ही ये प्रस्ताव लाया गया है.
इसके अलावा फ्रांस पहला ऐसा देश है, जिसने वर्ष 2016 में काम के घंटों को लेकर सख्त गाइडलाइंस बनाई थी और इनका उल्लंघन करने पर वर्ष 2018 में वहां की एक Pest Control Firm पर भारी जुर्माना भी लगाया गया था.
आयरलैंड में भी इसे लेकर कानून बना हुआ है, जिसे Right To Disconnect Act कहा जाता है.
इटली और स्पेन भी इसे लेकर कड़ा कानून है और ब्रिटेन में भी ट्रेड यूनियन्स इस तरह के कानून की मांग कर रही हैं.
एक दिलचस्प जानकारी ये भी है कि भारत में ज्यादातर लोग दफ्तर में ज़्यादा घंटे तक काम करने में और छुट्टी वाले दिन भी ऑफिस जाने में गर्व महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि ज़्यादा काम ही उनकी तरक्की की वजह बनेगा, जबकि ऐसा नहीं है.
एक स्टडी कहती है कि तय घंटों से ज्यादा काम करने पर कोई भी व्यक्ति प्रोडक्टिव नहीं रहता और शायद यही वजह है कि भारत में इसे लेकर वर्ष 2018 में Right To Disconnect Bill संसद में पेश किया गया, लेकिन ये बिल पास नहीं हो पाया.