DNA with Sudhir Chaudhary: सांसद-विधायकों को इलेक्ट होते ही जिंदगीभर मिलती है पेंशन तो सैनिकों पर सवाल क्यों? युवा मांग रहे जवाब
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DNA with Sudhir Chaudhary: सांसद-विधायकों को इलेक्ट होते ही जिंदगीभर मिलती है पेंशन तो सैनिकों पर सवाल क्यों? युवा मांग रहे जवाब

DNA on Agneepath Scheme Controversy: सांसद-विधायकों को चुने जाते ही जीवनभर के लिए पेंशन मिलना तय हो जाता है, उसके बाद चाहे वे कभी चुनाव लड़ें या नहीं. ऐसे में सैनिकों की पेंशन पर इतने सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं. 

DNA with Sudhir Chaudhary: सांसद-विधायकों को इलेक्ट होते ही जिंदगीभर मिलती है पेंशन तो सैनिकों पर सवाल क्यों? युवा मांग रहे जवाब

DNA on Agneepath Scheme Controversy: देश की सेनाओं पर बढ़ते पेंशन खर्च को कम करने के लिए सरकार ने नई अग्निपथ स्कीम (Agneepath Scheme) लॉन्च की है. इस स्कीम में तीनों सेनाओं में केवल 4 साल के लिए सैनिकों को भर्ती कर वापस घर भेज दिया जाएगा. हम अपने देश की सरकारों से भी एक बात कहना चाहते हैं. सरकार सेना के जवानों को पेंशन नहीं देना चाहती, ठीक है. लेकिन हम सरकार से कहेंगे कि वो भी नेताओं को पेंशन देना बन्द कर दे. हमारे यहां लोक सभा और राज्य सभा सांसदों को पेंशन दी जाती है. 2018 में हमारे देश के पूर्व लोक सभा और राज्य सभा सांसदों को पेंशन देने पर 70 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसके अलावा हमारे देश मे विधायकों को भी पेंशन दी जाती है. ऐसे में सरकार को पेंशन की ये व्यवस्था खत्म करके एक मिसाल पेश करनी चाहिए.

देश में 21 करोड़ बेरोजगार युवाओं की लंबी लाइन

हमारे देश में 17 से 24 साल के लगभग 21 करोड़ युवा हैं. जबकि सेना के तीन अंगों में रिक्त पदों की संख्या डेढ़ लाख के आसपास है. यानी इस हिसाब से देखें तो सेना की एक नौकरी के लिए हमारे देश में 17 से 24 साल के 1400 युवा योग्य हैं. अब अगर हम ये मान लें कि इनमें से एक तिहाई युवा भी सेना में जाना चाहते हैं तो इस हिसाब से सेना की हर नौकरी के लिए 466 लोगों की लाइन होगी. यानी ये लाइन बहुत लम्बी है. कोई भी युवा सेना के साथ कई कारणों से जुड़ना चाहता है.

हर साल सरकारी नौकरी के लिए जुटते हैं 3 करोड़ युवा

ग्रामीण इलाक़ों के जो युवा सेना में भर्ती होना चाहते हैं, वो शारिरिक रूप से तो फिट होते हैं. लेकिन Skilled नहीं होते. यानी इसके पीछे किसी कौशल में कुशल ना होना भी एक बड़ी वजह है. अभी सेना में 10वीं और 12वीं कक्षा पास करने वाले युवा नौकरी के लिए आवेदन दे सकते हैं. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़, इस समय देश में हर साल 12वीं कक्षा पास करने वाले छात्रों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. वर्ष 2000 में 99 लाख छात्र 12वीं कक्षा में पास हुए थे. जबकि अब हर साल लगभग तीन करोड़ बच्चे 12वीं पास करके नौकरी की तैयारी में जुट जाते हैं. इसे आप ऐसे समझिए कि आज ये साढ़े तीन करोड़ छात्र सेना में खाली पड़े एक लाख से ज्यादा रिक्त पदों के लिए योग्य हैं.

भारत में युवाओं के पास कौशल विकास की कमी

हालांकि यहां समस्या ये है कि, भारत में जिन छात्रों के पास Graduation की डिग्री है या जिन्होंने 12वीं कक्षा पास की हुई है, उनमें से काफी छात्र Skilled नहीं है. यही वजह है कि ऐसे छात्र सेना में और भारतीय रेल की नौकरियों के लिए ज्यादा प्रयास करते हैं. इसकी वजह ये है कि इनमें कठिन परीक्षा नहीं है, खास Skills की जरूरत नहीं होती और ये Non Technical Jobs होती हैं और सबसे बड़ी बात ये पक्की नौकरी होती हैं. यानी ये वो छात्र हैं, जिनके पास डिग्री तो है, लेकिन उनकी इस डिग्री का प्राइवेट सेक्टर में ज्यादा महत्व नहीं है.  इसीलिए वो सरकारी नौकरी की तरफ जाते हैं.

तमाम सरकारी नौकरियों के लिए लंबी लाइनें

यहां बात सिर्फ सेना की नहीं है. रेलवे, सरकारी बैंक, सरकारी विभाग और राज्य सरकारों की नौकरियों के लिए भी हमारे देश के युवाओं के बीच जबरदस्त रेस लगी हुई है. जबकि सच ये है कि हमारे देश में सरकारी नौकरियां ज्यादा नहीं है. इस समय केन्द्र सरकार से जुड़ी लगभग 32 लाख नौकरियां हमारे देश में हैं. जबकि अलग अलग राज्यों में सरकारी नौकरियों की संख्या एक करोड़ 20 लाख के आसपास है. अगर इन दोनों को जोड़ दें तो भारत में सरकारी नौकरियों की संख्या डेढ़ करोड़ होती है. हमने आपको बताया कि भारत में हर साल साढ़े तीन करोड़ छात्र 12वीं कक्षा पास करके नौकरियों और उच्च शिक्षा की तैयारी करते हैं.

हालांकि ये विडंबना ही है कि हमारे देश में लोग अक्सर सरकार की आलोचना करते हैं, उसे नाकाम बताते हैं और हमेशा सरकार से नाराज़ रहते हैं. फिर यही लोग नौकरी भी सरकारी ही करना चाहते हैं.

हरिवंश राय बच्चन की कविता का जानें सार

मशहूर लेखक हरिवंश राय बच्चन ने एक कविता लिखी थी और इस कविता का शीर्षक था अग्निपथ. इसमें ये बताया गया है कि जीवन संघर्ष का ही नाम है. इस संघर्ष से घबराकर कभी रुकना नहीं चाहिए, बल्कि कर्मठतापूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए. ये कविता ये भी सिखाती है कि अगर हम किसी से मदद ले लेंगे, तो हम कमजोर पड़ जाएंगे और हम जीवन-रूपी संघर्ष को जीत नहीं पाएंगे. खुद के परिश्रम से सफलता प्राप्त करना ही इस कविता का प्रमुख लक्ष्य है. लेकिन आज हमारे देश में इसके बिल्कुल विपरीत हो रहा है.

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