DNA Analysis: द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के क्या हैं मायने? उनकी शपथ में छिपे संदेशों को ऐसे करें डिकोड
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DNA Analysis: द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के क्या हैं मायने? उनकी शपथ में छिपे संदेशों को ऐसे करें डिकोड

DNA on India First Tribal President Droupadi Murmu: झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने देश की पंद्रहवीं राष्ट्रपति बन गई हैं. उन्होंने शपथ ग्रहण के बाद संसद में अपना पहला भाषण दिया, जिसमें कई गहरे अर्थ छिपे हुए हैं. 

DNA Analysis: द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के क्या हैं मायने? उनकी शपथ में छिपे संदेशों को ऐसे करें डिकोड

DNA on India First Tribal President Droupadi Murmu: झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने सोमवार को देश के पंद्रहवीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेकर कार्यभार संभाल लिया. देश की पहली महिला राष्ट्रपति होने का गौरव प्रतिभा पाटिल को हासिल है. इस लिहाज़ से द्रौपदी मुर्मू दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं. लेकिन यहां उनका आदिवासी समाज से आना ज्यादा महत्वपूर्ण है. इससे पहले कभी सोचा भी नहीं गया था कि एक आदिवासी भी कभी इस देश के राष्ट्रपति पद तक पहुंच सकेगा. इसलिये द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने में दूर तक के गहरे संदेश हैं. 

द्रौपदी मुर्मू बनीं देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति

हम क्यों इसे भारत के लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास की एक क्रांतिकारी और परिवर्तनकारी घटना बता रहे हैं, ये आप इस पूरे विश्लेषण में जानेंगे. राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के लिये द्रौपदी मुर्मू ने अपनी सुबह की शुरूआत दिल्ली में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि से की. द्रौपदी मुर्मू ने राजघाट पहुंचकर महात्मा गांधी की समाधि पर फूलमाला चढ़ाई. इसके बाद समाधि की परिक्रमा की. परिक्रमा करने के बाद एक बार फिर श्रद्धासुमन अर्पित किए.

राजघाट से द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) का काफिला राष्ट्रपति भवन की ओर रवाना हुआ. राष्ट्रपति भवन पहुंचने पर रामनाथ कोविंद ने उनका स्वागत किया. रामनाथ कोविंद और उनकी धर्मपत्नी ने द्रौपदी मुर्मू को गुलदस्ता भेंट किया. इसके बाद द्रौपदी मुर्मू और रामनाथ कोविंद के बीच राष्ट्रपति भवन में थोड़ी देर बातचीत हुई. इसके बाद दोनों संसद भवन की ओर रवाना हुए, जहां द्रौपदी मुर्मू का शपथग्रहण होना था.

राष्ट्रपति के सुरक्षा दस्ते के साथ रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू दोनों संसद भवन पहुंचे, जहां उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना संसद भवन के गेट पर उनकी अगवानी के लिये खड़े थे. उन्होंने रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू दोनों का स्वागत किया.

शपथ के बाद घुड़सवार दस्ते ने दी सलामी

प्रोटोकॉल के मुताबिक द्रौपदी मुर्मू के शपथ लेने से पहले तक रामनाथ कोविंद ही देश के राष्ट्रपति थे. इसलिए राष्ट्रपति के अंगरक्षक दस्ते ने रामनाथ कोविंद को संसद के गेट पर सलामी दी. अंगरक्षक दस्ते ने वापस जाने के लिये भी रामनाथ कोविंद से ही अनुमति मांगी. घुड़सवार दस्ते के लौटने के बाद द्रौपदी मुर्मू और रामनाथ कोविंद ने संसद के सेंट्रल हॉल की ओर प्रस्थान किया, जहां द्रौपदी मुर्मू का शपथग्रहण होना था.

संसद के सेंट्रल हाल में पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कैबिनेट के सभी मंत्रियों और दोनों सदनों के सांसदों ने राष्ट्रपति और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का अभिवादन किया. राष्ट्रगान के बाद सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमना ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई.

शपथ ग्रहण के बाद द्रौपदी मुर्मू देश की नई राष्ट्रपति बन चुकी थीं तो रामनाथ कोविंद ने उन्हें राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के लिये आमंत्रित किया. शपथ से पहले जिस जगह कोविंद बैठे थे, वहां द्रौपदी मुर्मू बैठीं और रामनाथ कोविंद उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठ गए. राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने हस्ताक्षर किये और इसके बाद बतौर राष्ट्रपति अपना पहला संबोधन दिया.

महात्मा गांधी ने कहा था कि असली भारत गांवों में बसता है. गांव की उन्ही पगडंडियों से होते हुए द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) भारत के सबसे उच्च संवैधानिक पद तक पहुंचीं हैं. लोगों के अभिवादन के लिए उनके मुंह से निकला 'जोहार'...सिर्फ एक शब्द नहीं है, ये उस भारत का सम्मान है जिसके लिये राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचना किसी सपने से कम नहीं है. एक जनजातीय परिवार का प्रतिनिधित्व करने वालीं द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति भवन तक पहुंचना भारत के लोकतंत्र की शक्ति को दर्शाता है.

राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद ने बदली कुर्सी

भारत में राष्ट्रपति के शपथग्रहण और शक्ति हस्तांतरण की बाक़ायदा एक प्रक्रिया है. इसमें आपको भारत के एक वैभवशाली राष्ट्र होने की झलक के साथ इसकी विशालता और आदर-सत्कार-सम्मान की भारतीय परंपरा भी दिखाई देती है. संसद भवन में द्रौपदी मुर्मू का शपथ ग्रहण पूरा हुआ तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संसद के सेंट्रल हॉल में सबका अभिवादन स्वीकार करते हुए संसद भवन के गेट तक पहुंचे.

अब चूंकि द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) देश की राष्ट्रपति बन चुकी थीं, शपथ ले चुकी थीं, इसलिए संसद भवन के गेट पर राष्ट्रपति के अंगरक्षक दस्ते ने उन्हें सलामी दी. इसके बाद राष्ट्रपति मुर्मू और रामनाथ कोविंद का काफिला राष्ट्रपति भवन की ओर रवाना हो गया. राष्ट्रपति भवन पहुंचने पर एक बार फिर द्रौपदी मुर्मू को सलामी दी गई. उनके साथ पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी थे. सुरक्षा दस्ते की सलामी के बाद दोनों राष्ट्रपति भवन में दाखिल हुए. द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन में ही मौजूद दफ्तर की तरफ चली गईं. कुछ देर बाद चेयर बदलने की परंपरा हुई. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बिठाया और खुद उनके बगल में खड़े हो गए. 

तीनों सेनाओं ने सुप्रीम कमांडर को किया सेल्यूट

शक्ति हस्तांतरण की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक बार फिर राष्ट्रपति भवन से बाहर आईं. यहां उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत सरकार के सभी मंत्री मौजूद थे. राष्ट्रपति भवन के बाहर सेना के तीनों अंगों ने अपनी सर्वोच्च कमांडर के तौर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पहला गार्ड ऑफ ऑनर दिया.

गार्ड ऑफ ऑनर के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उनके नए सरकारी आवास तक छोड़ने गईं. दिल्ली का 12 जनपथ अब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का निवास होगा. इस तरह देश के सबसे उच्च संवैधानिक पद पर शक्ति का हस्तांतरण पूरा हुआ.

द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) का राष्ट्रपति बनना पूरी दुनिया में नए भारत की सच्ची तस्वीर दिखाने वाला है....आज़ादी के 75 वें साल देश ने ये इतिहास रचा है...और इसका संदेश समझना भी उतना ही ज़रूरी है. द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं. इसका सीधा मतलब है कि भारत में हर धर्म, हर समाज और हर वर्ग के लोगों के लिए एक समान अवसर हैं. इससे देश की महिलाओं और आदिवासी समाज का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. 

देश की सबसे युवा राष्ट्रपति बनने का नया रिकार्ड

द्रौपदी मुर्मू देश की सबसे युवा राष्ट्रपति बन गई हैं. शपथ लेते समय द्रौपदी मुर्मू की उम्र 64 साल 1 महीना और 8 दिन थी. भारत के राजनीतिक इतिहास में इस उम्र को बहुत ज्यादा नहीं माना जाता है. ये आम धारणा रही है कि राष्ट्रपति का पद सिर्फ बुजुर्गों के लिये है और उन्हें ही दिया जाता है जिन्हें सक्रिय राजनीति से रिटायर मान लिया जाता है. द्रौपदी मुर्मू से पहले नीलम संजीव रेड्डी देश में सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति थे. वर्षों बाद द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से ये धारणा भी बदलने की उम्मीद की जा सकती है.

द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) का जन्म  20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था. द्रौपदी मुर्मू पहली राष्ट्रपति हैं जिन्होंने आज़ाद भारत में जन्म लिया था. इससे पहले नरेन्द्र मोदी वर्ष 2014 में देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने थे, जिनका जन्म आज़ादी के बाद हुआ था. यानी द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के दो शीर्ष संवैधानिक पदों पर ऐसे नेता बैठे हैं जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ है. ये एक बहुत बड़ा परिवर्तन है.

हालांकि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से लेकर डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम और अब द्रौपदी मुर्मू तक सबके संघर्ष की अपनी कहानी है. इनमें से लगभग सभी संघर्ष के पथ पर तपते हुए शीर्ष पद तक  पहुंचे हैं. सभी की कुछ ना कुछ विशेषता रही है. लेकिन द्रौपदी मुर्मू का इस पद तक पहुंचना इन मायनों में अलग है क्योंकि भारत में बसी जनजातियों में से पहली बार इस पद पर किसी को प्रतिनिधित्व मिला है. 330 एकड़ में फैले और 340 कमरों वाले विशाल राष्ट्रपति भवन में द्रौपदी मुर्मू का होना इस बात का प्रमाण है कि भारतीय लोकतंत्र में ये किसी के लिये भी संभव है. इसमें शहर और गांव, पुरुष या महिला किसी के लिये कोई भेदभाव नहीं है. द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना इस सोच को भी मजबूत करता है कि सत्ता और संवैधानिक पद सिर्फ बड़े परिवारों या घरानों में जन्म लेने वालों के लिये नहीं हैं. अपनी मेहनत, लगन, देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा से कोई भी इस पद तक पहुंच सकता है.

पहले संबोधन से देशवासियों के दिल को छुआ

राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) ने अपने पहले संबोधन में जो कहा वो बताता है कि शक्ति पाकर भी सरल और सहज कैसे रहा जाता है.  द्रौपदी मुर्मू ने अपने राष्ट्रपति चुने जाने को देश के हर गरीब की उपलब्धि बताया. उन्होंने कहा कि उनका इस पद पर चुना जाना देश की जनजातियों में नया उत्साह और नया आत्मविश्वास पैदा करेगा. नई राष्ट्रपति ने भारत की लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ स्वदेशी, स्वराज, स्वच्छता और सत्याग्रह की भी बात की. उन्होंने संथाल क्रांति और भील क्रांति से लेकर जल, जमीन, जंगल और Vocal For Local से लेकर Digital India का भी जिक्र किया. उनके जीवन के उद्देश्य को आज पहले संबोधन के दौरान उनके द्वारा पढ़ी गई कवि भीम भोई की एक कविता से भी समझ सकते हैं. उस कविता का सार है कि अपने जीवन के हित-अहित से भी बड़ा काम,  जगत कल्याण के लिए काम करना होता है.

भारतीय राजनीति में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है. नए नियम और क़ानून बनाने की शक्तियां सरकार के पास होती हैं. संसद की अपनी सर्वोच्चता है. लेकिन किसी भी क़ानून पर अंतिम मुहर राष्ट्रपति की होती है. राष्ट्रपति संसद के लाए हुए बिल को कानून बनने से रोक सकते हैं. उसे पुनर्विचार के लिये सरकार के पास भेज सकते हैं. उसे रोक भी सकते हैं.

राष्ट्रपति के हाथों में होती हैं बहुत शक्तियां

संविधान संशोधन बिल के अलावा किसी भी बिल को राष्ट्रपति नामंजूर भी कर सकते हैं. लेकिन कुछ एक मामलों को छोड़ दें तो राष्ट्रपति ने ऐसा किया नहीं है. इसके पीछे ये धारणा मानी जाती है कि चूंकि कोई फैसला संसद से पारित हुआ है और संसद में जो जनप्रतिनिधि होते हैं उन्हें सीधे तौर पर जनता का मत मिला हुआ होता है.

अब इसे राजनीतिक तौर पर देखें तो बीते कुछ वर्षों में एक ट्रेंड सा बना है जिसमें राष्ट्रपति को रबर स्टांप साबित करने की कोशिशें भी हुई हैं और ये राजनीतिक दलों की ओर से ही हुई हैं. इस तरह के नैरेटिव गढ़ने के भी प्रयास हुए हैं कि चूंकि राष्ट्रपति इस सर्वोच्च पद पर आने से पहले किसी विशेष राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं इसलिये उनके फ़ैसलों में उस दल का राजनीतिक हित भी होता है. 

पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी इसी तरह का एक प्रयास आज किया जब उन्होंने आर्टिकल 370 को ना रोके जाने को लेकर निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की आलोचना की. महबूबा मुफ्ती ने ये भी नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की कि अगर सत्ताधारी पार्टी की ओर से कोई राष्ट्रपति चुना जाएगा तो उसके फैसले उसी के मुताबिक़ होंगे. हांलाकि महबूबा मुफ्ती ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का नाम नहीं लिया.

विनम्र लेकिन दृढ़ इरादों वाली हैं नई राष्ट्रपति

फिर भी यहां हम उन्हें नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) का एक परिचय देना चाहेंगे जो उन्हें मेमोरी में दर्ज करना चाहिए. द्रौपदी मुर्मू के जानने वाले बताते हैं कि वो बचपन से ही सच को लेकर मजबूती से डटी रहती थीं. जो बात उन्हें गलत लगी उसका विरोध किया और जो ठीक लगा, उसका पूरी ताकत से साथ दिया. राजनीति में आने के बाद भी उनकी ये आदत नहीं बदली.

साल 2016 में द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल थीं. तब राज्य में बीजेपी की सरकार थी और रघुवर दास मुख्यमंत्री थे . बीजेपी सरकार CNT यानी छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम 1908 और SPT  यानी संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम 1949 में संशोधन विधेयक लेकर आई थी. इन विधेयकों के जरिए सरकार आदिवासी जमीन के व्यापारिक इस्तेमाल और भूमि अधिग्रहण की शर्तों को आसान बनाना चाहती थी, लेकिन द्रौपदी मुर्मू ने दोनों ही संशोधन विधेयकों को आदिवासियों के खिलाफ बताते हुए लौटा दिया था. 

सोचिए, उन्होंने ये फैसला तब लिया जब प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार थी और राज्यपाल बनने से पहले द्रौपदी मुर्मू बीजेपी की ही नेता थीं. इसी तरह साल 2017 में उन्होंने दो अहम बिलों को मंजूरी भी दी थी. इसमें एक बिल था भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक, इसमें ज़मीन लिए जाने के 6 महीने के अंदर मुआवज़ा देने का प्रावधान था. जबकि इसी तरह उन्होने धर्म की स्वतंत्रता विधेयक 2017 को भी मंज़ूरी दी थी. इस कानून के तहत जबरन धर्म परिवर्तन करने को दंडनीय अपराध बनाया गया. 

राष्ट्रपति देश का होता है, दल का नहीं

राष्ट्रपति के पद पर बैठा व्यक्ति देश का राष्ट्रपति होता है, किसी पार्टी का नहीं, ये बात समझनी चाहिए. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की भी कई मुद्दों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से अहमति थी. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से असहमति हुई थी. जबकि ये दोनों राष्ट्रपति इस सर्वोच्च पद पर पहुंचने से पहले कांग्रेस के ही सदस्य थे. इसी तरह प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बनने से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे. इंदिरा गांधी की सरकार के लेकर मनमोहन सिंह की सरकार तक मंत्री रहे थे. लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उनके और प्रधानमंत्री मोदी के बीच जो अटूट विश्वास था, पूरा देश उसका साक्षी है. प्रणब मुखर्जी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न तब मिला, जब मोदी ही प्रधानमंत्री थे. जबकि राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो दोनों एकदम विपरीत राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे.

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