नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी हमला करते हैं तो उनके तेवर तल्ख हो जाते हैं. यह स्वाभाविक बात है. विपक्ष के नेता के सुर में नरमी क्यों आए. हालांकि सवाल यह है कि उनके धारदार सवाल पीएम मोदी के खिलाफ जमीन पर असर नहीं दिखा पाते हैं. इन सवालों और उनके जवाबों को समझने की कोशिश करेंगे.
Trending Photos
Rahul Gandhi News: याद करिए साल 2018 का था और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी रॉफेल के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयानों के तीर चला रहे थे. कांग्रेस को यकीन था कि मोदी सरकार की हार में यह ट्रंप कार्ड बनेगा. यह बात अलग है कि 2019 में नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुए. 2019 के चुनावी नतीजों में कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक के सबसे खराब प्रदर्शनों में एक रहा. राहुल गांधी ने जिम्मेदारी ली और कांग्रेस अध्यक्ष के पद को छोड़ दिया. सियासत अपनी चाल चलते हुए अगले आम चुनाव की तरफ है. जाहिर सी बात है कि लोकतंत्र में जहां संख्या बल ही सरकार का निर्धारण करती है वहां विरोधी दल द्वारा सरकार को घेरने की प्रक्रिया स्वाभाविक है. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के एप्पल फोन की हैंकिंग पर सवाल खड़ा करने के बाद राहुल गांधी मीडिया के जरिए जनता से मुखातिब हुए और एक खास लाइन के जरिए, 'हम किसी से डरते नहीं' पीएम मोदी की घेरेबंदी की. अब सवाल यह है कि इतने संगीन आरोप लगाने के बाद भी जनता में राहुल गांधी भरोसा क्यों नहीं जता पा रहे हैं. इसे समझने से पहले राहुल गांधी ने एक कहानी सुनाई.
राजा, तोता, मोदी और राहुल गांधी
पुराने समय में एक राजा था, जिसकी आत्मा एक तोते में बसती थी.उसी तरह नरेंद्र मोदी जी की आत्मा अडानी के अंदर बसती है.यह बात विपक्ष को पता चल चुकी है.इसलिए अडानी को हमने ऐसा घेरा है कि वो बचकर नहीं निकल सकते. राहुल गांधी यही नहीं रुके. उन्होंने कहा कि पहले यह कहा जाता था कि इस सरकार में मोदी नंबर 1, अमित शाह नंबर 2 हैं,हालांकि सच कुछ और ही अडानी नंबर 1, मोदी नंबर 2 और अमित शाह नंबर तीन है. राजा, तोता के साथ नंबर 1, नंबर 2 और नंबर तीन की उपाधि से समझ सकते हैं कि जुबानी हमला कितना तीखा था. अब यहीं से सवाल उठता है कि अगर अडानी के इशारे पर ही सरकार चल रही है तो देश की जनता राहुल गांधी के आरोपों पर ऐतबार क्यों नहीं कर पा रही है, यहां हम तीन खास मुद्दों का जिक्र करेंगे. पहला मुद्दा भ्रष्टाचार, दूसरा मुद्दा राम मंदिर और तीसरा मुद्दा फोन हैंकिंग या टैपिंग से जुड़ा है. भ्रष्टाचार के मुद्दे को समझने के लिए करीब 33 साल पीछे चलना होगा.
बोफोर्स मुद्दा
1989 में बोफोर्स का मुद्दा छाया हुआ था, राजीव गांधी के विश्वासपात्र रहे वी पी सिंह साक्ष्यों का हवाला देकर कांग्रेस की सरकार को घेर रहे थे. वो दौर भारतीय इतिहास में अलहदा ही था. जनता के दिल और दिमाग में यह बात अच्छी तरह से बैठ गई कि कांग्रेस और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक हैं यानी चोली दामन का साथ है. यही नहीं जब 2010-11 में दिल्ली की सड़कों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन तेजी से आगे बढ़ा और कोल स्कैम, स्पेक्ट्रन स्कैम, राष्ट्रमंडल जैसे घोटाले सामने आने लगे तो लोगों को यकीन होने लगा कि कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार की गंगोत्री है. ऐसे में जब कभी कांग्रेस के नेता इस विषय पर सरकार को घेरने की मुहिम चलाते हैं तो मामला बैकफायर कर जाता है. जब वो अपने इस मिशन में मोदी पर सीधे आरोप लगाते हैं तो बीजेपी की तरफ से बताया जाता है कि जो गांधी परिवार करप्शन के मामलों में बेल पर है उसे आरोप लगाने का नैतिक आधार नहीं है.
फोन टैपिंग
इसके अलावा जब बात फोन हैकिंग या टैपिंग की आती है तो भी कांग्रेस का दांव उलटा पड़ जाता है. केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार रही तो विपक्ष की तरफ से आरोप लगाया जाता था कि गृहमंत्रालय विरोधी दल के नेताओं के फोन को टैप करता है. इस विषय पर जानकार कहते हैं कि अब इस तरह की स्थिति में जब कांग्रेस के नेता खासतौर से राहुल गांधी जब आरोप लगाते हैं तो वो सच से काफी दूर नजर आता है. कांग्रेस के आरोपों पर सत्ता पक्ष के नेता तर्क भी देते हैं कि अगर कांग्रेस के लोग इतने पाक साफ रहे होते तो हम केंद्र की सत्ता पर दोबारा काबिज नहीं होते. राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें नहीं बनती. यह बात ठीक है कि विपक्षी नेता के तौर पर राहुल गांधी के आरोप 100 टका सच हो सकते हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर उनके आरोप लोगों के दिल और दिमाग में जगह नहीं बना पा रहे हैं.