Family Politics in India: क्या वर्ष 2024 में होने वाले देश के अगले आम चुनावों का एजेंडा तय हो गया है. पीएम मोदी ने जिस तरह लाल किले से भाषण दिया, उससे स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी ने अगला चुनाव जीतने के लिए क्या मुद्दे तय कर लिए हैं.
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Family Politics in India: आजादी के 75 वर्षों के दौरान हमने अनगिनत चुनौतियों पर विजय पाई है. लेकिन आज भी भारत के समाज, सिस्टम और सियासत में ऐसी कई बुराइयां हैं. जिनके हम आज भी गुलाम हैं. लालकिले की प्राचीर से सोमवार को नौवीं बार देश को संबोधित कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने ऐसी ही दो बुराइयों का जिक्र किया, जो हमारे देश को दीमक की तरह खा रही हैं.
पहली बुराई, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने किया वो है-भ्रष्टाचार. जो सियासत से लेकर सिस्टम तक में घुन की तरह चिपकी हुई है. दूसरी बुराई है परिवारवाद या भाई-भतीजावाद. जो सिर्फ राजनीतिक बीमारी नहीं है बल्कि सामाजिक बीमारी भी है. असल में देश के सिस्टम में परिवारवाद ही भ्रष्टाचार का टॉनिक बनता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने सोमवार को इन दोनों मुद्दों पर चोट की. इन दोनों बुराइयों से देश के शुद्धिकरण का मंत्र दिया है.
परिवारवाद की बाद करने से बौखला गई कांग्रेस
DNA में सबसे पहले हम प्रधानमंत्री के इन शुद्धिकरण मंत्रों को डिकोड करेंगे. ये वो दो बुराइयां हैं, जो एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से इन दोनों बुराइयों को जड़ से मिटाने का आह्वान किया है .
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर जो मंत्र दिया, उसमें ना तो किसी राजनीतिक दल का नाम लिया और ना किसी नेता का नाम लिया. लेकिन ऐसा लगा मानो कांग्रेस को बुरा लग गया.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी का भाषण खत्म होते ही एक बयान जारी किया और मोदी (Narendra Modi) सरकार को आत्ममुग्ध सरकार बता दिया. इसके बाद कांग्रेस मुख्यालय से 30 जनवरी मार्ग तक कांग्रेस ने आजादी मार्च निकाला. जिसमें प्रियंका गांधी और राहुल गांधी भी शामिल हुए. इस पैदल मार्च को भी प्रियंका और राहुल ही लीड कर रहे थे. ये भी अपने आप में कांग्रेस के अंदर मौजूद परिवारवाद का ही उदाहरण है. कांग्रेस, बिना गांधी परिवार के एक पैदल मार्च तक नहीं निकाल सकती. कांग्रेस के इसी परिवारवाद के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को एकजुट होने का मंत्र दिया है. अब इसका Referrence Point भी समझिए.
देश की राजनीति में परिवारवाद की जनक है कांग्रेस
प्रधानमंत्री का इशारा सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड केस में चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग केस की तरफ था. जब इन दोनों से ED ने पूछताछ की तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओँ से लेकर छुटभैये नेता तक गांधी फैमिली के प्रति अपनी वफादारी का सबूत देने के लिए सड़कों पर उतर आए थे. ऐसे विरोध जताया था मानो देश में उससे बड़ा कोई मुद्दा बचा ही नहीं था. ये कांग्रेस के DNA में मौजूद परिवारवाद का उदाहरण नहीं था तो और क्या था?
कांग्रेस की इसी परिवारवादी परंपरा पर प्रधानमंत्री ने सोमवार को सवाल उठाए, जिनका कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है .
गांधी परिवार के पास कांग्रेस में परिवारवाद का बचाव करने के लिए कोई तर्क नहीं हैं. लेकिन कांग्रेस को अगर परिवारवाद की जननी कहा जाए तो गलत नहीं होगा. कांग्रेस ने देश की सियासत में परिवारवाद का जो बीज बोया था, वो अब बरगद बन चुका है. अकेले कांग्रेस ही परिवारवाद से पीड़ित नहीं है. देश में ऐसे कई राजनीतिक दल हैं, जिनका अस्तित्व ही परिवारवाद पर टिका है. लेकिन परिवारवाद है क्या?
क्षेत्रीय पार्टियों में भी परिवारवाद का बोलबाला
सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस पर राहुल गांधी का ही कब्जा रहेगा, ये परिवारवाद है. मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव का ही समाजवादी पार्टी पर कंट्रोल रहेगा, ये परिवारवाद है. लालू प्रसाद यादव के बाद उनके बेटे ही RJD पर राज करेंगे, ये परिवारवाद है. शिवसेना, जब ठाकरे परिवार की प्राइवेट लिमिटेड पार्टी की तरह चलने लगे तो ये परिवारवाद है.
ये तो सिर्फ कुछ उदाहरण है. किसी भी राज्य में चले जाइये. राजनीतिक दलों में फैमिली फर्स्ट वाला कल्चर आपको मिल जाएगा. पंजाब में बादल परिवार, कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला परिवार, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह परिवार, बिहार में लालू यादव परिवार, हरियाणा में हुड्डा परिवार, राजस्थान में सिंधिया परिवार, महाराष्ट्र में बाल ठाकरे परिवार, शरद पवार परिवार, दक्षिण के राज्यों में भी कुछ परिवार, यानी क्षेत्रीय पार्टियों पर परिवारवाद हावी है.
खुद सोचिए, राजनीति में जब जनहित के बजाय एक परिवार का हित सर्वोपरि हो जाए तो ये अच्छी बात तो नहीं है. परिवारवाद वाली पार्टियों का असली मकसद जनता की सेवा नहीं, अपने परिवार की सेवा करना होता है. इससे अगर देश को नुकसान होता है तो होता रहे. किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है कि कुछ ही परिवार मिलकर देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करें. ये इसलिए भी गलत है क्योंकि परिवारवाद में योग्यता मायने नहीं रखती बल्कि एक खास परिवार का सदस्य होना मायने रखता है. इसका नुकसान ये होता है कि देश को एक अयोग्य नेतृत्व मिलता है, जो देश की भलाई से पहले अपने स्वार्थ को पूरा करने को प्राथमिकता देता है.
देश को खोखला कर रहे परिवारवाद और भ्रष्टाचार
परिवारवाद के समर्थक अक्सर कहते हैं कि राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को जब तक जनता वोट देती है, तब तक किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. ये कोई तर्क नहीं बल्कि कुतर्क है क्योंकि सब जानते हैं कि परिवारवादी सियासत में पार्टियां सिर्फ एक खास परिवार की गुलाम बनकर रह जाती हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को देश को इसी परिवारवाद वाली राजनीति से सावधान किया है. ये बात परिवारवादी पार्टियों को चुभ रही है.
परिवारवाद और भ्रष्टाचार, ये दोनों बुराइयां सियासत और सिस्टम में साथ-साथ चलती हैं. कांग्रेस में गांधी परिवार के हुकुम के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता. उसी गांधी परिवार की मुखिया सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर हेराल्ड केस में करप्शन के चार्ज हैं. लेकिन ये सिर्फ इकलौता उदाहरण नहीं है.
नोटों का एक बड़ा ढेर, बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के घर में मिला है. पार्थ चटर्जी ने शिक्षा मंत्री रहते हुए शिक्षक भर्ती में कितना भ्रष्टाचार किया, वे नोट इसकी गवाही दे रहे हैं. टीएमसी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाने वालीं ममता बनर्जी को अपने मंत्री के इस भ्रष्टाचार के बारे में पता नहीं होगा, ये मानना मुश्किल है. लेकिन अपने मंत्री के भ्रष्टाचार का बचाव करना ममता बनर्जी के लिए मुश्किल हो गया है.
करप्शन के कई मामलों की जांच कर रही है ED
जब किसी पार्टी की सियासत में ही भ्रष्टाचार हो तो सोचिये अगर वो पार्टी, सत्ता में आ जाए तो फिर सिस्टम को भ्रष्ट होने से कौन रोक सकता है? यही वो Nexus है, जिसके बारे में सोमवार को प्रधानमंत्री ने बात की है. अगस्त 2021 में प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 51 पूर्व या मौजूदा सांसदों और 71 विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के केस दर्ज हैं, जिनकी वो जांच कर रही है.
लिस्ट में जिन मौजूदा और पूर्व सांसदों का नाम दिया गया है, उनमें DMK के दयानिधि मारन, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, आरजेडी के लालू प्रसाद यादव, पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के अलावा पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और वाई एस जगन मोहन रेड्डी का भी नाम शामिल है.
अब खुद सोचिए, जिस देश के कानून निर्माताओं के दामन पर ही भ्रष्टाचार के दाग हों, उनके राज में सिस्टम कितना भ्रष्ट होगा. जब भ्रष्ट नेता, सत्ता में आते हैं तो क्या होता है,ये भी समझने की जरूरत है. सरकारी योजनाओं में खर्च होने वाली राशि तो बढ़ जाती है लेकिन उसका लाभ सभी तक नहीं पहुंच पाता. सेना के लिए रक्षा उपकरणों की खरीद में कमीशनखोरी होती है, जिससे देश की सुरक्षा को खतरा होता है. सरकारी नौकरियों में भर्ती में रिश्वतखोरी बढ़ जाती है, पार्थ चटर्जी का केस इसका उदाहरण है.
चुनिंदा परिवारों के भ्रष्टाचार से जूझ रहा है देश
सरकारी ठेकों में सत्ताधारी, पारिवारिक पार्टी के सदस्यों का कब्जा हो जाता है. परिवारवाद से पीड़ित राजनीतिक दलों की कमान सिर्फ चुनिंदा लोगों के हाथों में होती है, जिनकी महत्वाकांक्षाएं इतनी ज्यादा होती हैं कि वो सत्ता में आते ही अपना पूरा ध्यान अपनी जेब भरने में लगाते हैं. फिर भ्रष्टाचार, पूरे सिस्टम का अभिन्न अंग बन जाता है. भारत आज परिवारवाद और भ्रष्टाचार के इसी नापाक गठबंधन से जूझ रहा है. इसके कुछ आंकड़े आपको बता देते हैं.
Corruption Perception Index 2021 की 180 देशों की लिस्ट में भारत 85वें नंबर पर है. एक स्टडी के मुताबिक 43 फीसदी से ज्यादा भारतीय मानते हैं कि सरकार और सिस्टम में भ्रष्टाचार से वो निराशा महसूस करते हैं. India Corruption Survey 2019 के मुताबिक 51 प्रतिशत भारतीयों ने माना है कि उन्होंने कभी ना कभी रिश्वत दी है. रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझ कर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना. ये सब भ्रष्टाचार के जरिए हैं. जो अब एक ऐसी समस्या बन चुका है, जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती.
अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक 46 फीसदी लोगों ने माना कि पुलिस सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं. इसके अलावा 42 प्रतिशत लोगों का मानना है कि सांसद सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं. 41 प्रतिशत लोगों को लगता है कि सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार है. जबकि 20 प्रतिशत लोगों ने कहा कि जज और मजिस्ट्रेट भी भ्रष्ट हैं. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की आजादी के 75वें वर्ष पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है.
पीएम मोदी ने देश को दिए पांच मंत्र
प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने आजादी के अमृत वर्ष पर देश को परिवारवाद और भ्रष्टाचार से मुक्ति का मंत्र दिया. देश को अगले 25 वर्षों के लिए भारत के राष्ट्र निर्माण का ब्लूप्रिंट भी बताया. इसके लिए उन्होंने हर नागरिक से पांच प्रण लेने की अपील की. पहला प्रण - विकसित भारत के लिए बड़े संकल्प. दूसरा प्रण - गुलामी की मानसिकता से मुक्ति. तीसरा प्रण - विरासत पर गर्व का अहसास. चौथा प्रण - एकता और एकजुटता और पांचवां - नागरिकों का कर्तव्य.
ये वो पांच प्रण हैं, जो आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर देश को विकसित देश बनाने के लिए जरूरी हैं. जिनका महत्व भी सोमवार को लालकिले से प्रधानमंत्री ने देश को समझाया है.
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