Internet Ban से परेशान किसान: कभी Tractor पर Loudspeakers रखकर, तो कभी Bike से घूमकर पहुंचाई जानकारी
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Internet Ban से परेशान किसान: कभी Tractor पर Loudspeakers रखकर, तो कभी Bike से घूमकर पहुंचाई जानकारी

मोबाइल इंटरनेट की अनुपस्थिति में जानकारी का एकमात्र स्रोत रहा अखबार. आंदोलन स्थलों पर अखबारों की करीब 5,000 प्रतियां आ रही हैं, जिसका भुगतान आयोजक द्वारा किया जाता है. इंटरनेट के बिना किसान संगठनों के लिए लाइव प्रसारण भी मुश्किल हो गया था. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली: किसान आंदोलन (Farmers Protest) के नाम पर 26 जनवरी को हुई हिंसा के मद्देनजर सरकार ने प्रदर्शन स्थलों के आसपास इंटरनेट बैन (Internet Ban) कर दिया था. हालांकि, किसानों का कहना है कि रविवार से नेटवर्क कनेक्टिविटी में सुधार आया है, लेकिन बार-बार होने वाले इंटरनेट ब्लैकआउट से उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. खासकर, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाले अपने परिवारों से संपर्क करना उनके लिए मुश्किल हो गया है. इसके अलावा, उन्हें अपने खिलाफ फैलाई जा रहीं अफवाहों का जवाब देने का मौका भी नहीं मिल पा रहा है. 

  1. हिंसा के बाद सरकार ने लगा दिया था बैन
  2. किसानों ने सरकार के इस कदम का किया था विरोध
  3. कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं किसान

कई बार जारी हुए Order
 

26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद दिल्ली की सीमाओं पर इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया था. इसके बाद जब 29 जनवरी को स्थानीय लोगों और किसानों के बीच भिड़ंत हुई तब भी बैन संबंधी आदेश जारी दिए गए. 6 फरवरी को किसानों के चक्का जाम को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर इंटरनेट सेवाएं बाधित की गईं, लेकिन आधी रात को उन्हें पुन: बहाल कर दिया गया. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नेटवर्क कनेक्टिविटी में अब सुधार हो रहा है. 

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Wi-Fi कनेक्शन नहीं मिला
 

मोहाली के बारी गांव में रहने वाले गुरजंत सिंह (36) ने बताया कि जब उन्होंने व्हाट्सऐप पर अपने परिवार को संदेश भेजा तो उन्होंने राहत की सांस ली. सिंह ने कहा कि गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद परिवार के साथ संपर्क मुश्किल हो गया था. आंदोलन को लेकर कई तरह की अफवाहें फैलाई जा रहीं हैं, लेकिन उनका जवाब देने के लिए  हमारे पास इंटरनेट नहीं है. हमने वाईफाई कनेक्शन लेने की कोशिश की, लेकिन इंटरनेट सेवा प्रदाताओं ने हमें बताया कि प्रशासन सिंघु बॉर्डर पर नए कनेक्शन की अनुमति नहीं दे रहा है.

News Paper रहा एकमात्र सोर्स
 

मोबाइल इंटरनेट की अनुपस्थिति में जानकारी का एकमात्र स्रोत रहा अखबार. आंदोलन स्थलों पर अखबारों की करीब 5,000 प्रतियां आ रही हैं, जिसका भुगतान आयोजक द्वारा किया जाता है. इंटरनेट के बिना किसान संगठनों के लिए लाइव प्रसारण भी मुश्किल हो गया था. वो पहले अपनी बातों को रिकॉर्ड करते फिर बाद में उन्हें वाईफाई हॉट स्पॉट द्वारा अपलोड किया जाता. ये वाईफाई लगभग एक महीने पहले कुछ किसान समूहों द्वारा सेटअप किए गए थे. एक किसान ने बताया कि इंटरनेट नहीं होने की वजह से स्वयंसेवकों को सोशल मीडिया इस्तेमाल करने और आंदोलन से जुड़ी खबरें जानने के लिए प्रदर्शन स्थल से कई किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है.

इस तरह पहुंचाते हैं Information
 

पंजाब के रूपनगर जिले के 28 वर्षीय किसान सुखविंदर सिंह ने कहा, ‘हम में से कुछ के पास मोटरसाइकिल हैं, इसलिए हम सोशल मीडिया एक्सेस करने और ताजा खबरों को जानने के लिए आसपास के ऐसे इलाकों में चले जाते हैं, नेटवर्क आता है. हालांकि, आंदोलन स्थल पर स्थानीय लोगों द्वारा प्रदान किए गए कुछ वाई-फाई कनेक्शन हैं, लेकिन फिर भी हमें यहां-वहां जाना पड़ता है. अब स्थिति सुधर रही है, उम्मीद करते हैं अब हमें इंटरनेट सेवा मिलती रहेगी’. उन्होंने आगे कहा कि इंटरनेट के अभाव में हम जानकारी एकत्र करते और फिर बाद में आने वाले किसानों को उन्हें मौखिक रूप में बताते. हमारी टीम के सदस्यों को बार-बार पंजाब के विभिन्न जिलों जैसे कि भटिंडा, पटियाला, रूपनगर, और अनंतपुर साहिब जाना पड़ता. ताकि वहां के लोगों से जानकारी प्राप्त की जा सके और गलत खबरों के बारे में उन्हें अवगत कराया जा सके.

काफी परेशानी उठानी पड़ी

मोहाली निवासी 27 वर्षीय जतिंदर पाल सिंह सिंघु बॉर्डर पर सिक्योरिटी वॉलेंटियर हैं. उन्होंने बताया कि इंटरनेट के बिना काफी परेशानी उठानी पड़ी है. हम ट्रैक्टर पर लाउडस्पीकर कर घूमते थे, ताकि आंदोलन स्थल पहुंचने वाले किसानों को गतिविधियों से अवगत कराया जा सके. किसान अलग-अलग समय पर पहुंचते हैं, ऐसे में उन्हें जानकारी देने का यही एकमात्र तरीका हमारे पास बचा था. अपनी नोटबुक दिखाते हुए, जिसमें किसान आंदोलन का समर्थन करने वालीं अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के नाम हैं, सिंह ने कहा, ‘इंटरनेट के बिना, लोगों को जानकारी देने, अफवाहों का जवाब देने और अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में हमें काफी मशक्कत करनी पड़ी. क्योंकि सोशल मीडिया हमारे संचार का मुख्य माध्यम है’. 

Trolley Times के प्रकाशन में हुई देरी
 

29 वर्षीय नवकिरण नट  ट्रॉली टाइम्स के संपादकों में से एक हैं. ये एक साप्ताहिक अखबार है, जिसे आंदोलन के बारे में जानकारी शेयर करने के लिए एक्टिविस्ट द्वारा शुरू किया गया है. नवकिरण ने बताया कि मोबाइल इंटरनेट पर बैन ने उनका काम भी प्रभावित किया है. उन्होंने कहा, ‘चूंकि अधिकांश किसान प्रदर्शन स्थलों पर रहते हैं, ऐसे में उनके साथ संवाद करना मुश्किल हो गया था. इंटरनेट न होने की वजह से अखबार के प्रकाशन में भी देरी हुई. कोई दूसरा साधन नहीं होने की स्थिति में हमने भी खुली जीप में घूम-घूमकर प्रदर्शनकारियों तक जानकारी पहुंचाई. 

 

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