पंजाब में गांधी परिवार का 'सेल्फ गोल', PM मोदी की नकल के चक्कर में कर लिया नुकसान?
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पंजाब में गांधी परिवार का 'सेल्फ गोल', PM मोदी की नकल के चक्कर में कर लिया नुकसान?

पंजाब (Punjab) में कांग्रेस नेतृत्व का निर्णय 'सेल्फ गोल' भी साबित हो सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की नकल के चक्कर में कांग्रेस ने बड़ी गलती कर ली है.

पंजाब में गांधी परिवार का 'सेल्फ गोल', PM मोदी की नकल के चक्कर में कर लिया नुकसान?

नई दिल्ली: पंजाब (Punjab) की राजनीति इन दिनों चर्चा में है. कांग्रेस नया सीएम बनाकर भले ही 2022 में बढ़त की उम्मीद लगा रही हो लेकिन असल में गांधी परिवार ने पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की नकल करने के चक्कर में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) को मुख्यमंत्री के पद से हटा कर अपना बड़ा नुकसान कर लिया है. पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कांग्रेस में मतभेद बने हुए हैं. आज पंजाब में कांग्रेस के इंचार्ज हरीश रावत के उस बयान पर खूब हंगामा हुआ, जिसमें उन्होंने ये कहा कि पंजाब का अगला विधान सभा चुनाव नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. इस पर कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ ने सिद्धू का विरोध किया और कांग्रेस पार्टी में फिर से खींचतान शुरू हो गई.

  1. चन्नी की चाबी सिद्धू के पास या सोनिया के पास?
  2. पंजाब में कांग्रेस का दलित वाला दांव कितना सही?
  3. क्या कांग्रेस बीजेपी की तरह बनना चाहती है?
  4.  

चन्नी के सहारे दलित वोट पर कांग्रेस की नजर

कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को मुख्यमंत्री बनाया है, जबकि सुखजिंदर रंधावा और ओम प्रकाश सोनी को उनका डिप्टी बनाया गया है. चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं. पूरे देश में दलितों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पंजाब में है. पंजाब की कुल आबादी में 32 प्रतिशत दलित हैं लेकिन इसके बावजूद अब तक पंजाब में कोई दलित मुख्यमंत्री नहीं बना था. चन्नी ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं इसलिए कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा राज्य की उन 34 सीटों पर हो सकता है, जो दलितों के लिए आरक्षित हैं. 32 में से 14 प्रतिशत दलित रवि-दासिया समुदाय से आते हैं और चन्नी भी इसी समुदाय से हैं इसलिए चन्नी दलित वोटों को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकते हैं.

पंजाब के सहारे UP के समीकरण साधने की कोशिश?

कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश के चुनावों पर भी है. 2022 में पंजाब और उत्तर प्रदेश में एक साथ चुनाव होंगे और सभी पार्टियों की नजर दलित वोटों पर होगी. उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांशीराम दलितों के सबसे बड़े नेता थे लेकिन उनका जन्म पंजाब के रोपड़ जिले में हुआ था. कांशीराम जब सक्रिय राजनीति में थे, तब बहुजन समाज पार्टी को पंजाब में काफी दलित वोट मिले और इस दौरान कांशीराम ने पंजाब में दलित मुख्यमंत्री की भी मांग की. यानी कांग्रेस पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी इस बात पर वोट मांग सकती है कि उसने कांशीराम के सपने को पूरा किया है. हालांकि कांग्रेस के लिए ये सब इतना भी आसान नहीं है. पंजाब में दलित वोटों के लिए मुकाबला त्रिकोणीय है. कांग्रेस के अलावा बीजेपी और आम आदमी पार्टी भी इस रेस में हैं और शिरोमणि अकाली दल ने भी दलित वोटों के लिए पंजाब में बीएसपी के साथ गठबन्धन कर लिया है.

कांग्रेस ने अपने पैरों पर मारी कुल्हाड़ी 

मुख्यमंत्री के नाम के लिए चन्नी का नाम दूर-दूर तक नहीं था लेकिन कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी की नकल करने के चक्कर में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा कर अपना बहुत बड़ा नुकसान कर लिया. बीजेपी ने पिछले दिनों उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात में इसी तरह के फैसले लेते हुए पुराने मुख्यमंत्रियों को हटा दिया था और ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने पंजाब में यही तरीका अपनाया और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. असल में बीजेपी के पास सबसे बड़े नेता के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जो चुनाव में अपने नाम पर पार्टी को वोट भी दिला सकते हैं और चुनाव भी जितवा सकते हैं. इसी ताकत की वजह से बीजेपी पर प्रधानमंत्री मोदी का पूरा नियंत्रण है और वो मुख्यमंत्री बदलने से लेकर किसी राज्य की पूरी कैबिनेट बदलने जैसे फैसले भी ले सकते हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी में ये ताकत गांधी परिवार के पास नहीं है. गांधी परिवार ना तो अपने नाम पर पार्टी को वोट दिला सकता है और ना ही चुनाव जिता सकता है. इसलिए पार्टी पर उसका वैसा नियंत्रण नहीं है, जैसा प्रधानमंत्री मोदी का बीजेपी पर है.

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पुराना है ये फॉर्मूला

दूसरा पॉइंट ये है कि, बीजेपी अनुशासन और कैडर बेस पार्टी है जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं है. कांग्रेस में क्षेत्रीय दलों और नेताओं का काफी प्रभाव है इसलिए कांग्रेस पार्टी में वैसे फैसले लेना आसान नहीं है, जैसे बीजेपी में लिए जाते हैं. किसी राज्य के सीएम को उसके कार्यकाल के दौरान बदलने का ये फॉर्मूला पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का था. इंदिरा गांधी कांग्रेस शासित राज्यों में मुख्यमंत्री तो अपनी पसंद और भरोसे का बनाती थीं लेकिन मुख्यमंत्री के साथ सरकार या संगठन में शीर्ष पद पर एक ऐसे नेता को भी मौका दिया जाता था, जो मुख्यमंत्री के लिए सीधी चुनौती हो. इंदिरा गांधी के समय मुख्यमंत्रियों को ये कहा जाता था कि वो उन्हें चुनौती देने वाले नेता से सावधान रहें और इस दौरान कांग्रेस हाईकमान उनके साथ है जबकि चुनौती देने वाले नेता को कहा जाता था कि वो मुख्यमंत्री पर दबाव बना कर रखें, अगले सीएम वही होंगे.

इंदिरा गांधी ने कई राज्यों में अपनाया ये फॉर्मूला

1980 में वी.पी. सिंह उत्तर प्रदेश के सीएम बने थे. उन्हें संजय गांधी और इंदिरा गांधी का भरोसेमंद नेता कहा जाता था और मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेताओं ने उनका विरोध किया तो पार्टी हाईकमान ने उन्हें यही कहा कि इंदिरा गांधी उनके साथ हैं. लेकिन फिर इंदिरा गांधी के ही आदेश पर उन्हें चुनौती देने वाले श्रीपति मिश्रा को उनसे रिप्लेस कर दिया गया. जब श्रीपति मिश्रा को लगा कि इंदिरा गांधी उनके साथ हैं तो 1984 में उन्हें भी हटा दिया गया और उनकी जगह एन.डी. तिवारी को दे दी गई, जो इंदिरा गांधी के भरोसेमंद थे. इंदिरा गांधी ने ये फॉर्मूला महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में अपनाया और कई बड़े नेताओं को इसकी वजह से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.

जनाधार वाले नेताओं को निपटा रही कांग्रेस

इंदिरा गांधी के समय की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में काफी अंतर है. जब किसी राज्य में झगड़े की वजह से मुख्यमंत्री को बदलने की बात आती थी तो पार्टी के सबसे सीनियर लीडर को उस राज्य में नेताओं से बात करने के लिए भेजा जाता था लेकिन अब कांग्रेस के पास सीनियर लीडर बचे ही नहीं हैं. जो सीनियर नेता हैं भी, वो सारे G-23 समूह में हैं, जिन पर गांधी परिवार भरोसा नहीं करता. पहले किसी कांग्रेस शासित राज्य के मुख्यमंत्री को बदला जाता था तो उसे राज्यपाल या फिर केन्द्र सरकार में लाने का भरोसा दिया जाता था. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के मामले में ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि गांधी परिवार को पता है कि अब उसके पास ये ताकत नहीं बची है. पहले अंदरूनी झगड़ों में गांधी परिवार सीधे तौर पर दखल नहीं देता था लेकिन पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ विधायकों से चिट्ठियां भी लिखवाई गईं और मुख्यमंत्री के चुनाव में भी सीधे दखल दिया गया. मौजूदा कांग्रेस में गांधी परिवार हर उस नेता को मिटाने में लगा है, जिसका अपना जनाधार है.

एक परिवार का शासन कब तक?

इस समय कांग्रेस का नियंत्रण राहुल गांधी के पास है, जो गांधी नेहरू परिवार की चौथी पीढ़ी के नेता हैं. इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिनसे आप ये जान सकते हैं कि एक परिवार की विरासत चौथी पांचवीं पीढ़ी तक या तो समाप्त होने लगती है या कमजोर हो जाती है. फिर चाहे वो राजशाही परिवार हो या लोकतंत्र में एक परिवार का शासन हो. जैसे दिल्ली सल्तनत का तुगलक राजवंश चौथी पीढ़ी आते आते समाप्त हो गया था. फिरोजशाह तुगलक, तुगलक वंश की तीसरी पीढ़ी के शासक थे. लेकिन वर्ष 1388 में उनकी मृत्यु के 10 साल बाद ही तैमूर ने भारत पर हमला कर दिया और तुगलक वंश हमेशा के लिए समाप्त हो गया. इसी तरह लोदी राजवंश की तीसरी पीढ़ी के शासक इब्राहिम लोदी वर्ष 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई बाबर से हार गए थे और इसके बाद लोदी राजवंश हमेशा के लिए खत्म हो गया था. मुगल सल्तनत भी छठी पीढ़ी आते आते बिखरने लगी थी.

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लोकतंत्र में भी हैं कई उदाहरण

लोकतंत्र में भी ऐसा कई बार देखा गया है. जैसे पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो का परिवार तीसरी पीढ़ी आते आते काफी कमजोर हो गया. अमेरिका में भी एक समय क्लिंटन, बुश और Kennedy परिवार मजबूत हुआ करता था लेकिन इनका प्रभाव भी ज्यादा समय तक नहीं रहा और कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. 

कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या करेंगे?

अब बड़ा सवाल ये है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या करेंगे? कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह का जो अपमान किया है, उसके बाद वो बीजेपी के काफी काम आ सकते हैं. अगर अमरिंदर सिंह बीजेपी में ना जा कर बाहर से उसकी मदद करते हैं तो चुनाव में उनका रोल सबसे ज्यादा अहम होगा. अमरिंदर सिंह जाट सिख हैं, जिनकी पंजाब में कुल आबादी 14 से 18 प्रतिशत है. बीजेपी उनके साथ मिल कर अकाली दल की कमी को पूरा कर सकती है और उसे खत्म भी कर सकती है. हालांकि अगर अमरिंदर सिंह बीजेपी में आते हैं तो शायद इससे उन्हें और बीजेपी को ज्यादा फायदा ना हो. कैप्टन अमरिंदर सिंह की उम्र 79 वर्ष है इसलिए इस उम्र में वो कितनी ताकत के साथ लड़ाई लड़ पाएंगे, ये भी एक बड़ा सवाल है.

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