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शोपियां: शोपियां का इतिहास बहुत कुख्यात रहा है, पिछले कई सालों से जिन कारणों से कश्मीर का ये जिला चर्चा में रहा उनमें पत्थरबाजी सबसे अहम थी. धारा 370 हटने से पहले शोपियां ज्यादातर समय गलत कारणों से चर्चा में रहता था, कश्मीर में जब भी अशांति शुरू होती, इसका केंद्र साउथ कश्मीर का शोपियां होता.
1989 के दौर में हर दिन यहां 55-60 हैंड ग्रेनेड फेंके जाते थे. शोपियां को आतंकवाद का गढ़ माना जाता था. लेकिन इसके पीछे के कारण क्या थे?
सेब के बागान
शोपियां सेब के बागानों से भरा हुआ है, कश्मीर में सेब के बागान घने होते हैं और अपने आप को छिपाना आसान होता है. ऐसे में ये बागान आतंकियों के लिए सुरक्षित होते थे.
शोपियां का युवा
यहां के ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. यहां का युवा हमेशा से महत्वकांक्षी रहा है और मौका न मिलने और सियासत के ककारण युवा इतने निराश हो गए कि उन्हें लगने लगा कि हमारे लिए कुछ है ही नहीं. ऐसे में उनके बीच अशांति, असंतोष, गुस्सा बढ़ा, और इसका फायदा आतंकवादियों ने उठाया. धीरे धीरे ये इलाका आतंकियों का गढ़ बनने लगा.
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पाकिस्तान से लगती सीमा
शोपियां से 40-45 किमी दूर ही पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है, यानी यहां की भौगोलिक स्थिति भी कुछ ऐसी है कि यहां घुसपैठ होती ही रहती थी. यहां के युवाओं में इतनी नफरत थी कि वे लोग आर्मी पर पत्थरबाजी कर अपना गुस्सा दिखाते.
लेकिन धारा 370 हटाए जाने के बाद सरकार ने युवाओं के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की. नोटबंदी हुई तो सीमा पार से पैसे आने बंद हो गए और फिर धीरे-धीरे सरकार लोगों को स्टार्ट अप, अलग-अलग योजनाओं में शामिल करने लगी.
यहां के लोगों ने भी इस बदलाव को सराहा और सरकारी योजनाओं में दिलचस्पी लेनी शुरू की. अब यहां के युवा पत्थरबाजी छोड़ रोजगार की राह पर चल पड़े हैं. किसी ने अपना रेस्टोरेंट शुरू किया है तो किसी ने अपना शोरूम खोल लिया है. सरकारी मदद से ये युवा खुद तो आगे बढ़ रहे हैं साथ ही आस-पास के गांव के लोगों को नौकरी भी दे रहै हैं. कोई अस्पताल में काम कर रहा है तो कोई अपना फूड वैन चला रहा है. कुल मिलाकर कहा जाए कि शोपियां अब पूरी तरह से बदल चुका है तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी.