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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात सरकार (Gujarat Government) को अगले विधान सभा सत्र के पहले दिन रिटायर्ड जस्टिस डी.ए. मेहता की अध्यक्षता वाले जांच आयोग की एक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा, जिसने राजकोट और अहमदाबाद के अस्पतालों में आग की दो घटनाओं की जांच की थी. आग की इन घटनाओं में 13 मरीजों की मौत हो गई थी.
जस्टिस न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम.आर. शाह की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह गुजरात सरकार को अदालत की राय से अवगत कराएं, ताकि रिपोर्ट सदन में पेश की जा सके. मेहता ने कहा कि यह उचित होगा कि किसी को भी रिपोर्ट देने से पहले उसे सदन में पेश करने की अनुमति दी जाए, अन्यथा यह गलत मिसाल कायम करेगा. मेहता ने कहा, ‘अगला सत्र सितंबर में होना है. मैं सरकार से जल्द से जल्द रिपोर्ट सदन में पेश करने का अनुरोध करूंगा.’ साथ ही तीन हफ्ते का समय देने का भी अनुरोध किया.
पीठ ने कहा कि आग की घटना के पीड़ितों के वकील आयोग की रिपोर्ट मांग रहे हैं, जिसे सदन में पेश किए जाने तक देना उचित नहीं होगा. कुछ पीड़ित परिवारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि उन्हें मुआवजा दिया जाए और आयोग की रिपोर्ट भी उनके साथ साझा की जाए, ताकि वे अपना जवाब दाखिल कर सकें. दवे ने कहा कि आयोग ने पीड़ितों से बात किए बिना ही रिपोर्ट तैयार कर ली और उन्हें रिपोर्ट की जानकारी नहीं है. शीर्ष अदालत का आदेश कोविड-19 मरीजों के उचित इलाज और अस्पतालों में शवों के सम्मानजनक निस्तारण पर एक स्वत: संज्ञान लिए गए मामले की सुनवाई पर आया है. कोर्ट ने पिछले साल अस्पतालों में आग की घटनाओं के बारे में संज्ञान लिया था.
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सुनवाई के दौरान, पीठ ने गुजरात सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनीषा लवकुमार से पूछा कि राज्य द्वारा यह अधिसूचना किन प्रावधानों के तहत अस्पतालों के लिए भवन उप-नियमों के उल्लंघन को सुधारने के वास्ते तीन महीने तक बढ़ा दी गई, और कैसे यह अधिसूचना टिक सकती है. अधिवक्ता ने जवाब दिया कि गुजरात नगर नियोजन और शहरी विकास कानून की धारा 122 के तहत अधिसूचना जारी की गई और कहा कि सरकार ने कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया. बता दें कि धारा 122 के तहत नगर नियोजन और शहरी विकास कानून के कुशल प्रशासन के लिए राज्य सरकार के पास आदेश पारित करने की शक्ति निहित है. पीठ ने लवकुमार से कहा कि अधिसूचना द्वारा जिस भवन के पास वैध अनुमति नहीं थी या जो उप-नियमों या विकास नियंत्रण नियमों का उल्लंघन कर रहे थे, उन्हें माफ कर दिया गया तथा नगर निकायों को उनके खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया गया.
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सुप्रीम कोर्ट ने ने 19 जुलाई को कहा था कि अस्पताल कोविड-19 त्रासदी की स्थिति में मानवता की सेवा करने के बजाय विशाल रियल एस्टेट उद्योगों की तरह हो गए हैं, जबकि आवासीय कॉलोनियों में 2-3 कमरों के फ्लैटों से चलने वाले नर्सिंग होम को बंद करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने अस्पतालों के लिए भवन उप-नियमों के उल्लंघन को सुधारने के लिए अगले साल जुलाई तक की समय सीमा बढ़ाने को लेकर राज्य सरकार की खिंचाई की थी. शीर्ष अदालत ने पिछले साल गुजरात के राजकोट के कोविड-19 अस्पताल में आग की घटना का संज्ञान लिया था जिसमें पांच मरीजों की मौत हो गई थी. पीठ ने इसका संज्ञान लिया था कि गुजरात सरकार ने उदय शिवानंद अस्पताल, राजकोट में आग की घटना की जांच के अलावा, श्रेय अस्पताल, नवरंगपुरा, अहमदाबाद में आग के संबंध में जांच करने के लिए जस्टिस डी.ए. मेहता के नेतृत्व वाला आयोग नियुक्त किया है.
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