DNA with Sudhir Chaudhary: काशी विश्वनाथ मंदिर के कानूनी विवाद में क्यों महत्वपूर्ण है 1998 का साल?
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DNA with Sudhir Chaudhary: काशी विश्वनाथ मंदिर के कानूनी विवाद में क्यों महत्वपूर्ण है 1998 का साल?

DNA with Sudhir Chaudhary: वर्ष 1809 में बनारस में बड़े पैमाने पर हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे. इस दंगे में कई लोग मारे गए. तब भारत में अंग्रेजों का शासन था.

DNA with Sudhir Chaudhary: काशी विश्वनाथ मंदिर के कानूनी विवाद में क्यों महत्वपूर्ण है 1998 का साल?

DNA with Sudhir Chaudhary: काशी विश्वनाथ मंदिर के कानूनी विवाद में 1998 का साल सबसे महत्वपूर्ण है. तब वाराणसी की कोर्ट ने एक फैसला दिया था, जिसमें कहा गया कि इस विवाद को सुलझाने के लिए पहले ये तय करना जरूरी है कि विवादित स्थल का धार्मिक स्वरूप क्या है? क्योंकि 1991 में बने Places of Worship Act यानी उपासना स्थल कानून के अनुसार देश में धार्मिक स्थलों पर 15 अगस्त 1947 के दिन की यथास्थिति लागू है. सिर्फ अयोध्या को इसका अपवाद माना गया था.

प्राचीन शिवलिंग वहीं पर मौजूद है

वाराणसी जिला कोर्ट के जज चाहते थे कि पहले ये तय हो कि आजादी के दिन विवादित स्थल पर मंदिर था या मस्जिद. कोर्ट ने ये भी माना कि काशी विश्वनाथ मंदिर का प्राचीन इतिहास है और ये मामला जनता की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है. इसलिए मेरिट के आधार पर इस विवाद का अंतिम हल जल्द से जल्द निकाला जाना चाहिए. हिंदू पक्ष को इस फैसले से कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि उनका दावा है कि ज्ञानवापी परिसर का धार्मिक स्वरूप कभी नहीं बदला और वो 15 अगस्त 1947 के दिन भी मंदिर ही था. क्योंकि प्राचीन शिवलिंग वहीं पर मौजूद है. लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी. जिस पर उन्हें स्टे ऑर्डर मिल गया. और ये मामला किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा. इसके अलावा काशी विश्वनाथ विवाद में अभी जो मुकदमा चल रहा है, उसकी शुरुआत 1991 में हुई थी. यानी ये लगभग 30 साल पुराना मुकदमा है. लेकिन ये कानूनी विवाद कई दशक पुराना है.

1937 में इस पर फैसला आया

स्वतंत्रता से पहले 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था. तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी. और ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि पूरे ज्ञानवापी परिसर को मस्जिद की जमीन घोषित की जाए. 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया. लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई. इस मुकदमे में हिंदू पक्ष को पार्टी नहीं बनाया गया था. लेकिन इस मुकदमे में कई ऐसे सबूत रखे गए थे, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं.

कुछ हिस्से में मस्जिद बना दी गई

इसी केस की सुनवाई के दौरान अंग्रेज अफसरों ने 1585 में बने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर का नक्शा भी पेश किया. वो नक्शा अभी मेरे हाथ में है. इसमें बीच का जो हिस्सा है वही पर प्राचीन मंदिर का गर्भगृह बताया जाता है. यह नक्शा जब कोर्ट में पेश किया तो अंग्रेज अफसरों ने बताया कि इसके ही कुछ हिस्से में मस्जिद बना दी गई है. इस पूरे मामले को इतिहासकार अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं. हमने इस विवाद पर कुछ इतिहासकारों से भी उनकी राय जानी.

प्रोफेसर AS आल्टेकर का बयान

वर्ष 1937 में वाराणसी जिला अदालत का जो फैसला आया था, उसमें एक जगह जज ने कहा है कि ज्ञानकूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का मंदिर है, क्योंकि कोई दूसरा ज्ञानवापी कूप बनारस में नहीं है. जज ने यह भी लिखा है कि एक विश्वनाथ मंदिर है और वो ज्ञानवापी परिसर के अंदर ही है. इसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर AS आल्टेकर का बयान दर्ज किया गया था, जिसमें उन्होंने स्कंद पुराण समेत कई प्राचीन ग्रंथों को quote करते हुए बताया था कि ज्ञानवापी कूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग है.

मुस्लिम पक्षकार इस दावे को सही नहीं मानते

आपमें से बहुत सारे लोग काशी विश्वनाथ के मौजूदा मंदिर में दर्शन के लिए गए होंगे. तो आपने ज्ञान कूप और नंदी को देखा होगा, ये दोनों आसपास में ही बने हुए हैं. इस नंदी का मुंह ज्ञानवापी परिसर की तरफ है, जिसके अंदर शिवलिंग के होने का दावा किया जाता है. लेकिन अभी यहां पर मस्जिद बनी हुई है. इस स्केच में नंदी के बगल में ज्ञानकूप है और इसी ज्ञानकूप को प्राचीन मंदिर का सबसे बड़ा सबूत बताया जाता है. हालांकि मुस्लिम पक्षकार इस दावे को सही नहीं मानते और अब इस मामले में मुस्लिम पक्षकार ने हाई कोर्ट जाने का ऐलान किया है. इसके अलावा इस पूरे विवाद को लेकर अब हमारे देश में राजनीति भी शुरू हो गई है. अयोध्या विवाद की तरह ही काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े विवाद में भी कई बार खूनखराबा हुआ है.

बड़े पैमाने पर हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे

वर्ष 1809 में बनारस में बड़े पैमाने पर हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे. इस दंगे में कई लोग मारे गए. तब भारत में अंग्रेजों का शासन था. कलकत्ता की Vice President in Council ने बनारस के तब के मजिस्ट्रेट वॉटसन से दंगों का कारण पूछा. वॉटसन ने ब्रिटिश हुकुमत को जो जानकारी भेजी, उसमें दंगे का मुख्य कारण औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने को बताया गया. वॉटसन ने विवाद सुलझाने के लिए एक सुझाव भी दिया, जिसमें उन्होंने साफतौर पर लिखा कि ज्ञानवापी से मुसलमानों को हटा देना चाहिए.

जैसे Akbar The Great.. औरंगजेब की मजार

हालांकि कलकत्ता की Vice President in Council ने  वॉटसन के सुझावों को खारिज कर दिया. माना जाता है कि ये फैसला 'फूट डालो, राज करो' की नीति के तहत किया गया था. बड़े अंग्रेज अफसर नहीं चाहते थे कि विवाद खत्म हो. वर्ष 1936 में वाराणसी जिला कोर्ट में जो मुकदमा चला था उसमें इस तथ्य की जानकारी दी गई थी. कुल मिलाकर भारत के नेताओं और इन नेताओं के दरबारी इतिहासकारों ने कभी आपको पूरा सच नहीं बताया और हमेशा विदेशी आक्रमणारियों को महान बताने की कोशिश की और उनके नाम के सामने Great लगा दिया गया. जैसे Akbar The Great .. औरंगजेब की मजार. जबकि विदेशी इतिहासकार और लेखक खुलकर इन आक्रमणकारियों का सच दुनिया को बताते रहे हैं  .

इतिहास की सबसे खूनी दास्तान

उदाहरण के लिए मशहूर अमेरिकी इतिहासकार Will Durant (विल डुरैंट )ने अपनी किताब The Story Of Civilization में लिखा है कि भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा की गई हिंसा..इतिहास की सबसे खूनी दास्तान है. भारत में अपना ज्यादातर समय बिताने वाले फ्रांस के पत्रकार  फ्रांसुआ गोतिए अपनी किताब Rewriting Indian History में लिखते हैं कि.. मुसलमानों ने भारत में जिस प्रकार की हिंसा और नरसंहार किया..उसका उदाहरण इतिहास में कहीं और नहीं मिलता.

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